
आष्टा ।संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ससंघ का 6 मार्च गुरुवार को
प्रातः 8 बजे इन्दौर नाका से अरिहंतपुरम श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर अलीपुर में एक जुलूस के रूप में मंगल नगर प्रवेश होगा ।


मुनिश्री के सानिध्य में जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभु भगवान का मोक्ष कल्याणक महोत्सव मनाकर मोक्ष फल निर्वाण लाडू चढ़ाया जाएगा।
संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य मुनि श्री निष्कंप सागर जी पूज्य मुनि श्री निष्काम सागर जी महाराज ससंघ के सानिध्य में अरिहंतपुरम जैन मंदिर के मूलनायक 1008 चंद्रप्रभ भगवान का मोक्ष कल्याणक पर्व भव्यता के साथ मनाया जाएगा। जैन परंपरा के अनुसार जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु के पिता का नाम राजा महासेन तथा माता का नाम सुलक्षणा था।


जैन धर्म के आठवें तीर्थंकर चन्द्रप्रभु जी वाराणसी चंद्रपुरी के सम्राट राजा महासेन एवं रानी सुलक्षणा के सुपुत्र थे।उनके जन्म के समय चंद्रमा के समान रंग होने के कारण आपका नाम चंद्रप्रभु रखा गया।आठवें तीर्थंकर भगवान चन्द्रप्रभु को गर्भ के समय से ही ‘मति ज्ञान, श्रुत ज्ञान और अवधी ज्ञान’ इन 3 प्रकार का आध्यात्मिक ज्ञान था।उन्होंने पौष कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को दीक्षा ग्रहण की थी।
भगवान चन्द्रप्रभु जी को फाल्गुन कृष्ण सप्तमी को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई थी।जैन धर्मावलंबियों के अनुसार चन्द्रप्रभु जी के प्रतीक चिह्न- अर्द्धचन्द्र, चैत्यवृक्ष- नागवृक्ष, यक्ष- अजित, यक्षिणी- मनोवेगा है।आसमान में तड़कती बिजली को देखकर प्रभु के मन में विचार आया कि यह जीवन क्षणभंगुर है। अतएव इस नश्वर राजपाट को त्याग कर वैराग्य धारण कर आत्म कल्याण करना चाहिए।
