आष्टा। प्रति वर्ष अनुसार इस वर्ष भी दसलक्षण पर्यूषण पर्वाधिराज महापर्व के सातवें दिन बुधवार की दोपहर को श्री नेमिनाथ दिगंबर जैन मंदिर नेमि नगर से मुनिश्री सजग सागर जी, सानंद सागर जी एवं प्रवर सागर मुनिराज के परम सानिध्य में श्रीजी की भव्य जलयात्रा

गाजे-बाजे के साथ नगर के प्रमुख मार्गों से झमाझम बारिश के बीच निकाली गई। बच्चों के दिव्य घोष ने समां बांधा। वहीं समाज द्वारा बनवाई गई रजत पालकी में श्रीजी की प्रतिमा विराजमान कर श्रावक सोले के वस्त्र धारण कर अपने कंधों पर लेकर चल रहे थे। एकाएक साढ़े तीन बजे के करीब झमाझम बारिश होने लगी, लेकिन बारिश श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं कर पाई।


नृत्य करते हुए जलयात्रा निकली। जलयात्रा की जानकारी समाज के नरेन्द्र गंगवाल ने देते हुए बताया कि इस अवसर पर मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज जी ने आशीष वचन देते हुए कहा कि तप से आत्मा ही परमात्मा बनती है।

एक गरीब व्यक्ति था, उसे सेठ ने मंदिर का काम करने के लिए रखा और उसे भोजन अपने घर पर कराते थे, वेतन भी देते थे,वह पढ़ा- लिखा नहीं था।उसे संत के आने पर उनकी सेवा करने के लिए भेजा वह बोला मैं पढ़ा- लिखा नहीं हूं कैसे मुनि की सेवा करुंगा।सेठ ने कहा जैसा मुनिश्री कहे वैसा करना।

वह मुनिश्री के साथ चला गया और उसका पुण्य जागा तो वह व्यक्ति
मक्खु से मरुसागर मुनिराज बन गए।लिखे पढ़ें नहीं थे, ग्रंथ लिखा और शानदार समाधि मरण हुआ।देव,शास्त्र और गुरु पर अटूट विश्वास और श्रद्धा रखें। गुरु अपने शिष्य को महान बनाना चाहते हैं, कभी भी बुरा नहीं चाहते हैं।मुनि बनने के लिए शिक्षित होना जरूरी नहीं, गुरु का सानिध्य मिलने पर अपार ज्ञान आ जाता है।

मुनिश्री सजग सागर मुनिराज ने कहां तप का प्रभाव की जलयात्रा के दौरान बारिश हो गई। जितना अधिक तप करोंगे उतना ही पुण्य अधिक अर्जित होगा।मुनियों के तप से मुनि केवली भगवान बन जाते हैं।पैसा किसी के साथ नहीं जाएगा, धर्म ही साथ जाएगा।एक पल का भरोसा नहीं,जो करना है धर्म के लिए अभी कर लो, कर्म करने वाला है।

प्रतिमा ले लो घर वाले नहीं करेंगे तो हम आपकी व्यवस्था कराएंगे, हमारे साथ आ जाएं। परिवार का सदस्य मुनि बनता है तो आपका यश बढ़ेगा। मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज ने कहां इंद्रिय सुख का अनुभव करने वाले कर्म सरोवर को सुखाने का पुरुषार्थ चल रहा है।

कई जन्मों के पुण्य के कारण भगवान का अभिषेक और पूजा- अर्चना करते हैं। पुण्य से ही मुनिश्री आते हैं और चातुर्मास होते हैं।बारह साल बाद सानंद सागर मुनिराज एवं प्रवर सागर मुनिराज का चातुर्मास हम दोनों का एक साथ हो रहा है।

नेमिनाथ भगवान की बारात के दौरान बारिश हुई थी और आज भी। जिनेंद्र भगवान की पालकी का इंद्र देवता ने भी स्वागत किया। त्याग करें, धर्म प्रदर्शन से नहीं भाव से होता है।आचार्य ज्ञान सागर जी ने विद्या- धर को आचार्य विद्यासागर बना दिया। सम्यकदृष्टि आगम को स्वीकार करता है। व्रती एवं श्रावकों को प्रतिदिन स्वाध्याय और अभिषेक करना चाहिए।

मंदिर में प्रवेश करने के दौरान पुरुष वर्ग टोपी पहन कर और महिलाओं को सीर ढंककर आना चाहिए। भगवान के अभिषेक -शांतिधारा सीर ढंककर करें, तीन लोक के नाथ का अविनय नहीं करें।जिन मुद्रा का अपमान नहीं करें। धर्म महामंत्र से शुरू होता है।विनय मोक्ष का द्वार है। सभी दिगंबर संत पूज्यनीय है।आगम की मानोगे तो मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा।


नवीन रजत विमान पालकी में श्रीजी विराजमान करने एवं पूजन करने के लाभार्थी महिपाल जैन पुजारी रहे।प्रथम बार पालकी उठाने का सौभाग्य मनोज गोपी सेठी ,संतोष जैन, शरद जैन एवं राजेन्द्र जैन ने प्राप्त किया।प्रथम अभिषेककर्ता भूपेंद्र, प्रवीण ,नितिन जैन , शांतिधाराकर्ता अशोक कुमार अखिलेश जैन रहे।

जलयात्रा में रजत कलश लेकर चलने के लाभार्थी नेमिनाथ महिला मंडल,नेमिनाथ जिन मंदिर महिला सेवा संघ एवं रजनी जैन सुरेंद्र पोरवाल रही। तीनों मुनिश्री को शास्त्र भेंट करने के लाभार्थी नितेश कुमार जैन,पवन -अवि जैन अलीपुर,मनोज गोपी सेठी परिवार रहा।
























