
मॉडर्न पब्लिक हा.से.स्कूल मैं एक पेड़ मां के नाम के तहत फलदार वृक्ष जामुन, आवला, नींबू के पौधे छात्र-छात्राओं द्वारा संस्था के प्रांगण में लगाए गए । संस्था के प्राचार्य शैलेंद्र सिंह ठाकुर द्वारा छात्र-छात्राओं को वृक्षों के महत्व के बारे में समझाया ।

फलदार वृक्षों का महत्व अनेक दृष्टियों से है। ये न केवल हमें फल प्रदान करते हैं, बल्कि पर्यावरण, स्वास्थ्य और आर्थिक रूप से भी महत्वपूर्ण हैं। फलदार वृक्षों से हमें ताज़े फल मिलते हैं जो पोषण का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं।



इसके अतिरिक्त, ये वृक्ष पर्यावरण को शुद्ध करते हैं, मिट्टी के कटाव को रोकते हैं और वन्यजीवों के लिए आवास प्रदान करते हैं। प्राचार्य ठाकुर द्वारा बच्चों को एक पेड़ माँ के नाम” के बारे में बताया की यह एक प्रयास है जो हमारी मातृभूमि और प्रकृति के प्रति हमारे सम्मान और समर्पण को दर्शाता है।

इस अभियान का उद्देश्य माँ के नाम पर एक पेड़ लगाना और एक स्थायी स्मृति बनाना है,जो न केवल पर्यावरण की रक्षा करेगा बल्कि एक हरे और अधिक समृद्ध भविष्य के निर्माण में भी योगदान देगा। संचालक मंडल व शाला परिवार के मार्गदर्शक शंकर लाल परमार, कुंवर लाल परमार, भीम सिंह ठाकुर एवं


समिति अध्यक्ष अभिषेक परमार, प्राचार्य शैलेन्द्र सिंह ठाकुर, उपप्राचार्य विकास चौरसिया, बी.एल. मालवीय, रवि पाठक, राजेश बड़ोदिया, रजत धारवां, संदीप ठाकुर, अनीता परमार, निमर्ला सारसिया, करिश्मा चौपड़ा, अंजली चौरसिया,

अंजु नावड़े, नीता सक्सेना, इशा जैन, पायल ठाकुर, अवनि जैन, पूजा ठाकुर, सना अली, अपेक्षा पेरवाल, तेजू मेवाड़ा, विधि चौहान, आयुषी जैन, लक्ष्मी चौरसिया, ज्योति राजपूत आदि उपस्तिथ थे
“माही कंडारे ने आष्टा का नाम रोशन किया”

खेलो इंडिया अभियान के अंतर्गत राज्य स्तरीय वेटलिफ्टिंग प्रतियोग्यता का आयोजन सीहोर में आयोजित हुआ जिसमें प्रदेश की सभी जिलों से खिलाड़ियों ने भाग लिया और अपना जोहर दिखाया नगर की बेटी माही कण्डारे ने वेटलिफ्टिंग में भाग लिया

जिसमे 44 किलो वजन में प्रथम स्थान प्राप्त कर नगर का नाम रोशन किया आज नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनधि राय सिंह मेवाडा द्वारा माही को मिठाई खिला कर एवम पट्टिका से सम्मानित किया और अपनी और से प्रोत्साहन राशि प्रदान कि ।


बालिका को आगे भी हर सम्भव मदद देने का वादा किया उंन्होने कहा माही अब सफलता के मार्ग पर तुम आ गयी हो अब पीछे मुड़ना नही रुकना नही सफलता में भी सीखते रहना चाहिए जो सफलता में सीखता जाता है

वो आगे शिखर पर चढ़ता चला जता है तुम भी आगे बढ़ते रहना नगर का नाम रोशन करना अपने माता पिता का नाम रोशन करना तुम से बहुत उम्मीदें है सबको इस अवसर पर उनके प्रशिक्षक अशोक साहू, कुशलपाल लाला, बंटी कण्डारे आदि उपस्तिथ थे
“जो जीव भाव मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं और संसार में जिनका भाव नहीं है वे जीव अनंत सुख का अनुभव करते हैं –श्रमण मुनि श्री प्रवर सागर”

धर्मनगरी अरिहंतपुरम अलीपुर के श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य विनिश्चय सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज ने धर्मसभा को संबोधित करते हुए कहा कि जो जीव संसार में रहते हैं

लेकिन जिनकी रुचि संसार में नहीं है ,ऐसे जीव अनंत सुख का अनुभव कर रहे हैं और जो जीव संसार में हैं जिनके निरंतर संसार को बढ़ाने के भाव चल रहे हैं वे जीव इंद्रिय सुख का ही अनुभव कर रहे हैं। जहां पर पुण्य और पाप बनता है ,वहां संसार का भाव होता है और जहां पर पुण्य – पाप को ग्रहण करने का भाव समाप्त हो जाता है वहां मोक्ष का भाव प्रकट होता है।


प्रत्येक जीव संसार में रहकर पुरुषार्थ करके मोक्ष भाव को प्रकट कर सकता है। मुनिश्री ने भूमि के बारे में बताते हुए कहा कि जिस भूमि पर हम सभी रह रहे हैं ये कोई सामान्य भूमि नहीं यह तो भरत क्षेत्र जहां 24 तीर्थंकर हुए जिन्होंने

भाव मोक्ष को प्राप्त करके इस औदारिक एवं परम औदारिक शरीर में अनंत सुख का अनुभव कर लिया। अर्थात इस बात की सत्यता को जानते हुए कह सकते हैं कि यह जीव संसार में रहकर एक अच्छा इंसान नहीं बन सकता और वे एक अच्छे इंसान से भगवान बन गए।

मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज ने कहां जहां पर मोक्ष मार्ग प्रारंभ होता है ,वहीं से मोक्ष पुरुषार्थ प्रारंभ होता है।सम्यक दर्शन,सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र से ही मोक्ष मार्ग की उत्पत्ति हो सकती है।अनंतकाल के बीत जाने के बाद भी इस संसार में क्षणिक भी अनंत सुख का अनुभव नहीं हुआ। अभिमानी रावण ने अपनी सोने की लंका,अपनी शक्ति, धन और प्रतिष्ठा का अभिमान किया जिससे उसका पुण्य घट गया।


सीता का हरण कर घोर पाप किया,जिससे वह सोने की लंका भी राख में परिवर्तित हो गई। धर्म की महिमा को बताते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति रात्रि भोजन का संकल्प पूर्वक त्याग करता है तो 6 माह के उपवास का फल मिलता है ।

दिगंबर जैन संतों की त्याग और तपस्या को बताते हुए कहा कि जो आचार्य आदिसागर मुनिराज थे 8 दिन में एक बार भोजन में सिर्फ मट्ठा ग्रहण करते थे, ऐसे और भी कई आचार्यों के त्याग की महिमा बताई दिगंबर संतों का जो आहार होता है वो यदि नीरस भी हो उसे सरस समझ कर अनाशक्त भाव से ग्रहण करते हैं।
