
आष्टा। सांसारिक जीवन को छोड़कर संयम के मार्ग पर चलकर आत्म कल्याण करने वाले साधु-संतों का अपने सांसारिक परिजनों व रिश्तेदारों से मिलना कब होगा, निश्चित नहीं है। नगर में चातुर्मास करने के लिए समाज की विनती पर अपने – अपने आचार्य भगवंत के आदेश पर पधारे तीन मुनिराजों में दो सांसारिक रिश्ते में मामा-भांजे है।

नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजमान आचार्य आर्जव सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज एवं श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर

अरिहंतपुरम अलीपुर में चातुर्मास हेतु विराजमान आचार्य विनिश्चय सागर मुनिराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज सांसारिक रिश्ते में मामा-भांजे है।


मुनिश्री सानंद सागर जी एवं मुनिश्री प्रवर सागर मुनिराज ने जैसे ही एक – दूसरे को देखा तो उन्हें अपने सांसारिक मिलन की याद ताजा हो गई। दोनों का मिलन हुआ और सानंद सागर जी ने अपने मुनिश्री सजग सागर मुनिराज से परिचय करवाकर मिलवाया।

दो मुनि संघ के मुनियों के आत्मीय मिलन को देखकर उपस्थित समाजजन भाव विभोर हो गए। अनेकों श्रद्धालुओं ने उक्त पल को अपने – अपने मोबाइलों में कैद किया । मुनिश्री सानंद सागर मुनिराज ने आशीष वचन देते हुए कहा कि आज चातुर्मास के साथ हमने अपनी सीमाएं बांध ली है।चातुर्मास में मनुष्य पर्याय को सार्थक करने के लिए धर्म की क्रियाएं कर अपनी दृष्टि सम्यकदृष्टि बनाएं।


चारित्र ही धर्म है और ज्ञान की शोभा चारित्र है।वह दर्शन और चारित्र को संभालता है। भगवान के पास संसार के निमित्त से नहीं आएं। हमारे भगवान तो वीतरागी है और हम अहिंसा के उपासक हैं।सब जीवों पर रक्षा के भाव बनाए। ऐसा पुरुषार्थ करें कि आने वाले समय में हम महाव्रती बन कर मोक्ष प्राप्त करें।मुनिश्री ने कहा सबसे ज्यादा हिंसा जल के माध्यम से होती है।

विवेक लगाकर हिंसा से बचें। व्रती की एक -एक क्रिया धर्म युक्त होती है।हम तो आपको जगाने आएं हैं।प्राप्त ज्ञान को आचरण में लाएं।पाषाण की नौका कभी पार नहीं लगाती, वह तो बैठने वाले को डूबा देती है।ज्ञान का अहंकार नहीं आना चाहिए।अहिंसा को गले लगाने पर ही मुक्ति होगी।


जिनदर्शन अवश्य करें। भगवान के दर्शन नहीं कर पाएं, उससे अभागा व्यक्ति इस संसार में नहीं।भगवान की नित्य पूजा करें।सामूहिक विधान का अनुष्ठान कने से बहुत पुण्य अर्जित होगा।

पाप से बचने के लिए धर्म पुरुषार्थ करें। श्रावक वहीं जब भी अवसर मिले पुण्य अर्जित करें और पापों से बचें। स्वयं विवेक से क्रिया करें, जीवों की वीरादना से बचें। द्रव्य को सौदन करके घोए।पुण्य बढ़ाने की क्रियाएं विवेक पूर्वक करें।

