
दोस्तो,मित्रों आज एक बार फिर आपका सबका स्नेही कॉलम “ये घुंघरू जो बजते नही-पर सुनाई देते है”को लेकर आपके साथ हु । कहते है ऊपर वाले की लाठी में आवाज नही होती है,देख लो,जो आज लाठी पड़ी क्या उसकी आवाज सुनाई दी..नही, क्यो , क्योकि जब अति होती है तो उसका अंत भी सुनिश्चित है,भाग्य ने किसी को पद से बड़ा बनाया, कोई अच्छी कुर्सी पा कर बढ़ा बना, कोई अपनी काबिलियत से बड़ा बना पर कभी सोचा की हम बड़े कैसे, क्यों बने, कभी विचार किया कि सैकड़ो नही लाखो लोगो मे,से मेरा ही इस कुर्सी के लिये,इस पद के लिये चयन क्यो हुआ.?

क्योंकि पहला कारण तो ये कि ये आपके पिछले जन्म में किये अच्छे कार्यो,उस जन्म में की गई पुण्याई उसके साथ अच्छी भावना,अच्छे कर्म,अच्छे सहयोग,अच्छे मिले संस्कार,अच्छी हुई परवरिश,सहित कई अच्छाइयों का जब पूरा गुलदस्ता आपके साथ होता है, तब जा कर किसी व्यक्ति को बड़ा पद,बडा कद,पैसा,सोहरत,इज्जत,प्यार, सहयोग सब कुछ मिलता है । ये सब कुछ मिला ये इतना विशेष विषय नही है,मुख्य विषय एवं कड़ी परीक्षा तब शुरू होती है जब पुण्य से,भाग्य से,किये अच्छे कर्मों के कारण जो मिला है उसका उपयोग आप कैसे करते है..?

जो पद मिला है,जो कार्य मिला है उस पद ओर मिले कार्य से आप लोगो के दुख,दर्द सुन कर उसे दूर कर उनकी दुआएं भी प्राप्त कर सकते है और कार्य के बदले हाथों की खुजाल मिटा कर बददुआएँ भी प्राप्त कर सकते है । मिली जिम्मेदारी के दौरान आप अपने ही कार्यो से,कलम से पाप भी कमा सकते है और पुण्य भी कमा सकते है,

बस तय आपको करना है की आप जब कूच करेंगे तो साथ पाप ले जाना चाहेंगे या पुण्य की गठरी । आज जिले में ऐसे एक नही कई लोग है जो भाग्य से भाग्यशाली है,लेकिन पुण्यों से मिले पद, कद, कुर्सी ये सब उनके सिर पर चढ़ कर बोल रहे है,सब एक जैसे नही है कई ऐसे भी है जिनका पुण्य थोड़ा कमजोर होने से उनेह पद, कद, कुर्सी भले ही छोटी मिली हो लेकिन वे अपने उत्तम-सेवा भाव के कारण बड़ो को भी छोटे होने के बाद भी पीछे छोड़ रहे है ।

पद, कद, कुर्सी मिलने के बाद जो केवल ओर केवल पैसों के पीछे ही भागता है,जिसने सब कुछ पैसों को ही अपना भगवान मान लिया हो उसके क्या हाल है,उसकी क्या हालत है,उसका क्या मान, सम्मान है ये सब कुछ यही देखा जा सकता है ।

जब अति हो जाती है,जब अन्याय बढ़ जाता है तो परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो प्रकृति पर ही नही सब तरफ ये लागू होता है,जो देखा जा सकता है,सुना जा सकता है,ओर कल पढ़ा भी जा सकता है । आपने एक विज्ञापन जो बहुत पहले टीवी पर आता था “तेरी साड़ी मेरी साड़ी से सफेद क्यो..?”

ये विज्ञापन भले ही किसी डिटर्जेंट कम्पनी ने अपने साबुन-सर्फ को बेचने के लिये,लोगो को अपने उत्पाद की ओर आकर्षित करने के लिये बनाया,चलाया हो,लेकिन ये बहुत बड़ा संदेश भी पद, कद, कुर्सी पाने वाले को भी देता है ये विज्ञापन संदेश देता है की तेरी कमाई मेरी कमाई से ज्यादा क्यो,तेरा मान सम्मान मेरे से ज्यादा क्यो..आदि आदि ।


जब खुठे से बंध कर रहोगे तो एक दिन खूंटा उखड़ना आज की तरह कटु सत्य है । इस लिये अति मत करो,अन्याय मत करो,गरीबो,पीड़ितों,दुखियों की सुनो मिले पद, कद, कुर्सी के माध्यम से हम कितना, किसका, कितना ज्यादा से ज्यादा कार्य कर सकते है,उसे राहत दे सकते है,उसको न्याय दे सकते है, दे-जो आज अच्छा बोओगे निश्चित भविष्य में अच्छा ही काटोगे । नही तो रवानगी के रूप में परिणाम हम सब के सामने है ।

आज अति का,अन्याय का,भाषा शैली के कारण जो घुंघरू बजे है भले ही उसकी खनक सुनाई ना दे,लेकिन उसकी गूंज दूर तक जरूर जायेगी। बस ये घुंघरू जो बजते नही है… लेकिन उसको सुनने के लिये दिव्य कानो की जरूरत है । अगर आप ने,हमने,सबने बिना बजे घुंघरू की आवाज सुन ली तो निश्चित भाग्य से जो मिला वो सार्थक सिद्द होगा,नही तो रवानगी के रूप में परिणाम सबके सामने है ।
