व्यक्ति की तृष्णा समाप्त नहीं होती,यह हनुमान जी की पूंछ की तरह बढ़ती ही जाती है,हम मात्र क्षणिक सुखों के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं –मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज
आष्टा। व्यक्ति की तृष्णा समाप्त नहीं होती।यह हनुमान जी की पूंछ की तरह है तृष्णा जो बढ़ती ही जाती है। हम मात्र क्षणिक सुखों के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर…