आष्टा। मेरी अंतिम यात्रा कैसी होगी और अपने परिवार के लोग आपके मरने के बाद कैसा सोचेंगे, कोई दुखी होगा तो कोई खुश। व्यक्ति खाली हाथ आया है और खाली हाथी जाना है। व्यक्ति के साथ सिर्फ किया गया धर्म और कर्म ही साथ जाएगा। हमें अपनी गौरवशाली संस्कृति पर गर्व होना चाहिए। भगवान महावीर स्वामी के जीओ और जीने दो के संदेश से पूरे विश्व में शांति और सद्भावना आ सकती है।
जो इस संसार में आया है उसे एक दिन जाना ही है।जो आया है उसे जाना है,इसे सभी को समझना होगा। यह जीवन सभी के लिए सिर्फ सात दिन का है।सात दिन से ज्यादा कोई नहीं जीया है और न ही जीएगा। स्वस्थ रहने के लिए व्यक्ति के हाथों में ही सब कुछ है,वह चाहे तो हमेशा स्वस्थ रह सकता है।
उक्त बातें दो-दिवसीय अर्हम ध्यान योग शिविर के समापन अवसर पर मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहीं। अपने शिविर में आए लोगों को उनकी शवयात्रा अर्थात मेरी अंतिम यात्रा कैसी होगी।चार लोग एक दिशा में चलते हैं और जब पांचवां व्यक्ति कंधे पर हो। कोई व्यक्ति आपके मरने पर दुखी होता है तो कोई खुश। किसी को इस बात का गम है कि अब इस घर परिवार को कौन और कैसे चलाएगा, तो दूसरा परिवार का सदस्य इसलिए खुश होता है कि प्रॉपर्टी में से एक हिस्सेदार कम हुआ।
मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने मंत्रोच्चारण के साथ स्वस्थ रहने के लिए योग की विभिन्न विधाओं को कराया। आपने जीवन को पानी की बूंद की तरह बताया।पापों से ऊपर उठने के लिए आज यह वास्तविकता, यथार्थ सामने है। दुनिया का हमसे राग है या शरीर से राग है।सभी चिंतित हैं,सब कुछ यहीं करते थे अब कौन करेगा। कोई आपके मरने पर प्रसन्न हैं कि चलों एक हिस्सेदार कम हुआ। राम नाम सत्य है,सिद्ध नाम सत्य है, अरिहंत नाम सत्य है। शवयात्रा धीरे-धीरे आगे बढ़ रही है। मैं अर्थी पर लेटा हूं। आंखें जब बुंदी तो न कोई शत्रु है और न ही कोई मित्र हैं।
क्या बचा है जीवन भर दौड़ते रहे। व्यक्ति के साथ एक कोड़ी भी नहीं जाएगी। मेरे साथ सिर्फ मेरे द्वारा किया गया धर्म – ध्यान ही जाएगा।कोई यह सोचता है कि चलो एक हिस्सेदार कम हुआ, मार्ग का रोड़ा कम हुआ। आपके लिए अंतिम सेज सजाई जा रही है।
क्या तन मांजना ,यह एक दिन मिट्टी में मिल जाना है।जिंदा रहते राम का नाम, हनुमान का नाम, महावीर का नाम जप लेता तो वह काम आता।यह शरीर नश्वर है। यही स्थिति आप हम सभी के साथ होगी। सिर्फ आत्मा ही साथ रहती है। नया शरीर आत्मा धारण कर लेती है। परिवार के मोह को समझें। भवों भव की गलती है।
कोई विकल्प नहीं,शरीर छूटा है आत्मा को देखें। अर्थी उठने के पहले अर्थ को समझ लेवें। खाली हाथ आया था और जाना भी खाली हाथ ही है। जन्म से लेकर मरण तक दौड़ता है आदमी। यह दौड़ और यह होड़ कभी समाप्त होने वाली नहीं । तन,मन,धन, वैभव,यौवन, सम्पत्ति सब कुछ छूटने वाली है।
श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आशीष वचन देते हुए मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा संस्कारों की बगिया को कब विकसित करेंगे।आज का युग अलग है। पहले आमने-सामने युद्ध होता था।आज परमाणु बम पर पूरा विश्व टीका हुआ है। मानवता के ऊपर कितना भरा कुठाराघात कर रहे हैं विभिन्न देश।आप किसी को जीवन नहीं दे सकते तो जिंदगी नहीं ले सकते।आज मानवता कहा है।
आज की संस्कृति कहा जा रही है। पहले नीति और न्याय से युद्ध लड़ते थे,सारी नीति,न्याय और संस्कृति न जाने कहां चली गई। मुनिश्री ने कहा आज देश की संस्कृति कहा जा रही है। मर्यादा तो मर्यादा होती है।आज देश और युवा पीढ़ी कहा जा रही है,कब हम जागेंगे। जिनके पास न तो संस्कृति है और न ही संस्कार है।आज के संसाधन घातक है।एक मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है। आज कहा गई शील, मर्यादा व संस्कृति।आज हम विकास के पथ पर अग्रसर नहीं हो रहे, विनाश के पथ पर बढ़ रहे हैं। जीवन जीना भी एक कला है। मुनिश्री ने शील, ब्रह्मचर्य और संस्कारों की महिमा से अवगत कराया।अपने शील और चारित्र को काफी ऊंचा उठाना है। समाज की विसंगतियों को दूर करें। आप अपनी आत्मा का उत्थान कर सकते हैं।हर आत्मा में परमात्मा बनने की सामर्थ्य है।