आष्टा। गृहस्थ वह है जो भगवान,देव,शास्त्र और गुरु तथा अपने परिवार से ही प्रीति करता है।पड़ोसी का भी पूरा ध्यान रखें,वह दुःख में है तो उसकी सेवा करें, भले ही मंदिर मत जाना लेकिन पड़ोसी का संकट दूर करें। धर्मात्मा जब कहलाओगे जब धर्मात्मा की सेवा करोगे।एक विचार धारा के हो, एक साथ रहें।आज स्थिति यह है कि चार व्यक्ति को रौंदकर व्यक्ति आगे निकलता है। उसके मन में करुणा नहीं है।
जैन धर्म में एक को मानते हैं लेकिन अपने वाले को आगे नहीं बढ़ाते हैं। धर्म नीति कहती है कि सभी को आगे बढ़ाएं।पूजन करना गुलामी नहीं,जैन कभी गुलाम नहीं होते।पहले झुकना सीखें।जो नमता है ,वह परमात्मा को जमता है। सभी के साथ धीमे चले, औरों के साथ चले तो धीमें चलें, अकेले भले ही तेज चलों।लंबा चलना है तो धीमें चलें। तीन लोक के सभी जीव साधर्मी है। विश्व के सभी जीव साधर्मी है। वर्तमान पर्याय ही नहीं भूत और भविष्य की पर्याय भी देखें।जीनवाणी का महत्व है। अपने परिवार या साधर्मी को किनारा करके आगे निकल जाएं,यह उचित नहीं है।आज लोगों की संवेदनाएं मर चुकी है।
आज समाज में एकता की कमी है। व्यक्ति के प्रति करुणा और प्रेम नहीं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव प्रखर प्रवचनकार मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा समाज को एकजुट होना चाहिए।आज व्यक्ति स्वार्थी,मतलब परस्त हो गया है।
समाज से अपेक्षा लेकिन समाज के प्रति आपके दायित्व व कर्तव्य का निर्वहन करें। समाज के प्रति दायित्व व कर्तव्यों को आप भूल गए हैं।जैन दर्शन विस्तृत है,इसे समझने वाले के लिए संसार छोटा हो जाता है। संसार मार्ग और मोक्ष मार्ग पर मुनिश्री ने प्रकाश डाला।मोक्ष मार्ग में प्रशस्त मार्ग होता है।मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए संकल्प लेना होगा। अपने साथ वाले का भी कल्याण करें। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा ज्ञान सागर महाराज ने अपने कल्याण के साथ -साथ सभी का कल्याण करने की भावना भाई।
इसी लिए अपना आचार्य पद युवा मुनि जो आपका शिष्य विद्यासागर महाराज को सौंपा। आचार्य भगवंत ने सैकड़ों युवाओं को दीक्षा देकर आत्म कल्याण के मार्ग पर अग्रसर किया।जैन दर्शन वंदे गुण लब्धाए।आज आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज गुरुदेव के कारण इतने मुनि राज देश में है। गृहस्थ और मोक्ष मार्ग पर एक साथी को ओर अवश्य लाएं।धर्म और गुरु से ओरों को भी जोड़ना चाहिए।नये व्यक्ति को प्रोत्साहित करें।मैं के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
जैन दर्शन कहता है आगे बढ़ो और दूसरे को भी आगे बढ़ाएं। व्यक्ति धन की वसीयत के साथ धर्म की वसीयत भी सौंपे।धन के पहले धर्म देवें।आठ वर्ष के बच्चे के हाथ में भगवान का कलश दे दोगे तो वह कभी भी गलत मार्ग पर नहीं जायेगा। उसके हाथ में कभी भी शराब की बाटल नहीं आएगी। धर्म से ही धन आता है। कर्माधीन व्यवस्था है।
पुरुषार्थ भी करता है। अगर भाग्य में नहीं है और अशुभ कर्म उदय में है तो हीरा भी हाथ में आते- आते कोयला बन जाता है। हमेशा उपकारी भाव रखना चाहिए। आचार्य भगवंत ने अपना कल्याण किया और हमारा भी कल्याण कर इस मार्ग पर आगे बढ़ाया। मुनिश्री ने कहा सम्यकदृष्टि जीव संसार के कल्याण की भावना रखता है।
साधर्मी व दूसरे के प्रति वात्सल्य भाव रखें।एक दूसरे के प्रति वात्सल्य भाव रखें।समाज में एकता, एकजुटता होना चाहिए। भगवान महावीर को गौतम गणधर मिले तो उनके बताए मार्ग से सभी को आपने अवगत करवाया। परकल्याण की भावना वाले तीर्थंकर वंद करते हैं । भगवान महावीर के साथ गौतम गणधर का भी कल्याण हुआ।
“श्रावकगण और साधुगण धर्म के दो पहलू हैं –मुनिश्री निष्काम सागर महाराज
24 नवम्बर को होगा पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम”
श्रावक गण और साधु गण धर्म के दो पहलू हैं। भगवान और गुरु की भक्ति का फल मिलता है। गुरु की भक्ति जो पागलों की तरह करते हैं उन पर गुरु की कृपा बरसती है बारिश की तरह। सफलता नहीं मिलती है तो व्यक्ति हताश हो जाता है। गुरु चरणों में सफलता प्राप्त होगी। व्यक्ति को कभी भी हताश नहीं होना चाहिए गुरु हमें भगवान से परिचित कराते हैं और भगवान से जुड़ने का मार्ग बताते हैं। भगवान के स्वरूप से अवगत कराते हैं।
गुरु बड़े की गुरु की वाणी देव, शास्त्र और गुरु का अस्तित्व पता चलता है। गुरु के आचरण, वचन के माध्यम से भगवान से जुड़ते हैं। गुरु बीज का काम करते हैं।जिस प्रकार मां अपने बच्चे का लालन-पालन कर जीवन संवारती है ठीक उसी प्रकार गुरु मां की तरह आपके जीवन को संवारते हैं। जब आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो का इतना अधिक प्रभाव तो प्रत्यक्ष का कितना महत्व व प्रभाव रहा होगा।भुज में भयंकर भूकंप आने के बाद भी आचार्य भगवंत के भक्त का आफिस व भवन सुरक्षित रहा, क्योंकि दीवार के चारों तरफ आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के फोटो लगे हुए थे।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा पचास साल पहले विधान करना नहीं जानते थे, आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने बड़े -बड़े पंडितों को बताया। उसके बाद विधान होने लगें।
प्रभु भक्ति से आत्मा का कल्याण निश्चित है।श्रद्धान का नाम ही सम्यकदर्शन है आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने यह बताया है। किसी मूर्ति के अगर अंग खंडित हैं तो आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते हैं कि वह मूर्ति खंडित है और ऐसी मूर्तियां पूज्यनीय नहीं होती है। धर्म गुरु के फोटो हर मंदिर में लगाने चाहिए। सभी की मान्यताएं एक जैसी नहीं। मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मन भेद नहीं होना चाहिए। कभी भी मनभेद नहीं हो।
प्रभु के साथ गुरु चरणों में भी आस्था बनाएं रखें। समाज के गरीब वर्गों के लिए आश्रय दान करें।
मुनिश्री ने कहा 24 नवंबर को चारों मुनिराज का पिच्छिका परिवर्तन होगी। पिच्छिका का जुलूस नेमिनगर सांई कॉलोनी से समाज के बच्चों को प्रोत्साहित करते हुए आप लोग दिव्य घोष के साथ निकालें। बच्चों को प्रोत्साहित करना चाहिए। समाज से युवा पीढ़ी को जोड़े।