आष्टा। व्यक्ति की तृष्णा समाप्त नहीं होती।यह हनुमान जी की पूंछ की तरह है तृष्णा जो बढ़ती ही जाती है। हम मात्र क्षणिक सुखों के लिए अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हैं। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे कि रत्नात्रय को धारण करने वाला व्यक्ति भोग विलास में उलझा हुआ है।
प्रतिमानीयोग्य आपका वैराग्य बढ़ाता है। युवा अवस्था में मुनि बनने से धर्म की प्रभावना बढ़ती है। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने अनेक संपन्न परिवार के युवाओं को दीक्षा दिलाई। संसार के सुखों को छोड़कर दीक्षा ली जाती है, दुःखों के कारण नहीं।
संसार के सुखों को छोड़ना चाहिए। संसार में न तन दुखी और न ही मन दुखी, मन की तृष्णा के कारण दुखी हैं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आगे कहा कि आपके जीवन में समस्याओं का कोई अंत नहीं।एक समस्या समाप्त होती है ,तो दूसरी आकर खड़ी हो जाती है। मनुष्य कोल्हू के बैल की तरह है। बैल समझता है कि मैंने सारी दुनिया घूम ली, आंखों पर से पट्टी हटती है तो पता चला यह मेरा भ्रम है।
आप भी कोल्हू के बैल की तरह संसार में उलझे हुए हैं।आपकी तृप्ति बढ़ती ही जाती है। मुनिश्री ने कहा व्यक्ति की तृष्णा दूसरे को देख कर बढ़ती है। व्यक्ति अपने दुःख से दुःखी नहीं बल्कि दूसरे के सुख से दुःखी हैं।मौत भी लेने आए तो निवेदन करना कि मुझे जिनेंद्र भगवान का एक मंदिर का निर्माण कराना है, तो मौत भी अच्छे काम के लिए आपको छोड़ कर चली जाएगी।
सिकंदर के पास सबकुछ था लेकिन गया तो खाली हाथ, जनाजा में दोनों हाथ बाहर निकले हुए थे।पूरे विश्व को जितने वाला सिकंदर दुनिया को संदेश देकर गया।साथ में आपके संस्कार जाएगा। भारत देश की मां कभी भी अपने बच्चे को घोखा नहीं देती। परिग्रह छोड़ें बिना मोक्ष संभव नहीं।एक धागा भी आपके पास है तो मोक्ष संभव नहीं।व्यक्ति की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
संसार की विषय वासना और भोग विलासता के लिए भटकता है लेकिन आत्म कल्याण के लिए नहीं। दीपावली खुशी का त्योहार, इसमें हर वर्ग का व्यक्ति सफाई करता है। दीपावली की तरह मन की सफाई करें।नर से नारायण बनने की प्रक्रिया करें।
“गरीबों के चेहरे पर मुस्कान देखने लायक रहेंगी”
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा आपका जीवन सफल नजर आएंगा ,जब गरीबों के घरों पर जाकर चतुर्दशी के दिन आप सभी उन्हें मिठाई,कपड़े सामान सौंपेंगे।आतिशबाजी चलाने से जीव हिंसा होती है,आतिशबाजी मंदिर में नहीं चलाएं ।