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“गुरु आचार्य विद्यासागर महाराज ने हमारे आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया, गुरु की नजर भाग्यशालियों पर पड़ती है — मुनि निष्पक्ष सागर महाराज,गुरु पूर्णिमा महामहोत्सव पर दो दिवसीय आयोजन के साथ चातुर्मास हुआ प्रारम्भ
संगीतमय गुरु पूजन के साथ किया गुरु गुणगान”

आज उपलब्धियों से भरा गुरु पूर्णिमा दिवस है।हम भारतीय संस्कृति में जी रहे हैं। उत्सवों व पर्वों को मनाया जाता है यहां पर।इस विश्व को जियो और जीने दो का संदेश भगवान महावीर स्वामी ने दिया था। ऐसे भगवान महावीर स्वामी का शासन है।

गुरु आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने हमारे आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। अपार वैभव तीर्थंकरों के पास ही होता है।अंधा क्या चाहे दो आंखें।मानस्तंभ की अलग ही विभूति है। वीतरागी प्रभु और वीतरागी गुरु की क्या महत्ता है जाने और समझें।

हम सभी से दीक्षा वाले दिन आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने कहा था कि यह महावीर, आदिनाथ का मार्ग है।आज आप सभी ने वीतरागता की शरण ली है। अपने जीवन में कुछ करना, नहीं करना बस इतना ध्यान रखना। प्रभावना करने की आवश्यकता नहीं है, आपको देखकर वीतरागता की भावना अपने आप होगी।

आप अपनी धर्म -आराधना करना। भगवान के पास भक्तों की कमी नहीं है। गुरु की भक्ति में भारत और आष्टा की समाज पागल थी।गुरु की नजर भाग्यशालियों पर ही पड़ती है,उनकी जिस पर नजर पड़ी वह यहां मंच पर संत बनकर बैठ गए। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित

पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य निष्पक्ष सागर महाराज ने गुरु पूर्णिमा पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कही। आपने कहा कि अपनी भावनाओं में परिवर्तन लाओ,आज के दिन दशा और दिशा बदलने के लिए महावीर स्वामी गुरु बने। आपने भूतबलि सागर महाराज का भी उल्लेख किया।मुनिश्री ने कहा आत्मा के कल्याण की भावना भा रहा हूं,आष्टा जंक्शन है, वीतरागता की महिमा है। गौतम गणधर की महिमा बताई।

गणधरों का उपकार है।इस अवसर पर निष्कंप सागर महाराज ने कहा कि भगवान बनने के लिए भक्त बनना आवश्यक है। गुरु बनने की होड़ में लगे हैं, पहले अच्छे शिष्य बनों, फिर गुरु बनोगे। गुरु की पहचान जरूरी है। गुरु पूर्णिमा का महत्व जैन दर्शन में अनादिकाल से है और अनादिकाल तक रहेगा। भक्त नहीं शिष्य बनों, ताकि परम्परा चल सकें।

मुनिश्री ने कहा भक्त और शिष्य में अंतर है, वक्त के साथ चलता है वह भक्त और जो समय पर चलता है वह शिष्य हैं।एक ईष्ट गुरु अवश्य बनाएं। विपत्ति और संकट में गुरु का स्मरण करते ही विपत्ति और संकट दूर हो जाते हैं। जिनेंद्र भगवान की प्रतिमा जीवंत होती है। गुरु रास्ता दिखाते हैं। जैन दर्शन में अतिशय है।

उपकारी का उपकार नहीं भूलना चाहिए।इस संसार में गुरु से बड़ा कोई नहीं है।वीतरागी गुरु है। अहंकार और अधिकार की भूमि पर प्रेम का बीज नहीं बो सकते हैं। गुरु को प्राप्त करना है तो गुरुर, अहंकार छोड़ना होगा। कल भगवान की दिव्य ध्वनि खिरेगी। आचार्य विद्यासागर महाराज से दीक्षा लेने वाले बहुत ही भाग्यशाली रहते हैं,जन-जन
के आचार्य थे,जन- जन का कल्याण किया है आपने। गुरु की महिमा को पहचानों। भक्ति की परिभाषा चातुर्मास में

बताएंगे।गुरु पूर्णिमा पर गुरु की आराधना अवश्य करें, सभी काम छोड़कर गुरु के पास अवश्य जाएं। अपने जीवन में इष्ट गुरु अवश्य बनाएं। जन्म मरण से मुक्ति गुरु ही दिलाते हैं। गुरु ने हमें तराशकर इस मुकाम पर पहुंचाया है। इस धरती के चलते-फिरते देवता आचार्य विद्यासागर महाराज हम सभी को छोड़कर चले गए। आचार्य भगवंत हमें अनाथ करके नहीं सनाथ करके गए। हमें नवाचार्य समय सागर महाराज का आशीर्वाद मिला।

“गुरु हमें सदमार्ग बताते हैं, ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिम्ब गुरु है — प्रेम राय मामा
चारों धाम तीर्थयात्रा करने पर हुकमचंद मेहता का सम्मान किया”

गुरु हमें सदमार्ग बताते हैं। ज्ञान, प्रेरणा और मार्गदर्शन का प्रतिबिम्ब गुरु है। गुरु और शिष्य के पवित्र संबंध का प्रतीक भी है। गुरु अंधकार को दूर कर प्रकाश में लाते हैं। अज्ञानता को दूर कर हमारे जीवन को सही दिशा दिखाते हैं। गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म का एक महत्वपूर्ण त्यौहार है। जो हर साल के आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

चारों धाम की तीर्थ यात्रा पुण्यशाली लोग करते हैं। उक्त बातें राम-राम जी लॉजिस्टिक्स वेयरहाउस मालीखेड़ी दुपाड़िया रोड़ पर सांई कालोनी निवासी कपड़ा व्यापारी श्री हुकमचंद मेहता एवं श्री शुभम माहेश्वरी की चारों धाम की सकुशल तीर्थयात्रा करके लौटने पर एवं गुरु पूर्णिमा पर्व पर आयोजित स्वागत, सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए समाजसेवी श्री प्रेम कुमार राय मामा ने कहीं।

श्री मेहता एवं श्री माहेश्वरी के साथ ही बाबा रामदेव मंदिर के पुजारी पंडित श्री रुपकिशोर शर्मा का स्वागत व सम्मान श्री प्रेम कुमार राय मामा, डॉ कुणाल राय एवं श्री राजा पारख ने भारतीय संस्कृति और परंपरा अनुसार तिलक लगाकर पुष्प हार पहनाकर तथा शाल – श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया।इस अवसर पर बाबा रामदेव मंदिर के पुजारी पंडित रुपकिशोर शर्मा एवं मेहता का स्वागत एवं सम्मान राय सहित उपस्थित विजय देशलहरा,अरुण खंडेलवाल,राजेश मित्तल, उमेश पांडेय,नरेन्द्र गंगवाल,जितेंद्र जैन जेके,विजेंद्र सिंह ठाकुर, डॉ राजेन्द्र जैन, प्रदीप राठौर, जितेंद्र धारीवाल, बंटी जायसवाल, राजकुमार गुप्ता, महेंद्र सिंह ठाकुर,दशरथसिंह राजपूत आदि ने किया। अंत में आभार आयोजक डॉ कुणाल राय ने व्यक्त किया।

“शहीद भगतसिंह शासकीय कालेज में मना गुरुपूर्णिमा पर्व,गुरुजनों का हुआ सम्मान”

शहीद भगत सिंह शासकीय स्नातक महाविद्यालय, आष्टा में मध्यप्रदेश शासन के आदेशानुसार दिनांक 21 से 22 जुलाई 2024 तक दो दिवसीय गुरूपूर्णिमा महोत्सव का आयोजन किया क्या । इसी के तहत गुरू शिष्य की महत्ता को दर्शाने भारतीय संस्कृति में गुरू की महिमा एवं विद्यार्थी जीवन में गुरू के महत्व पुर्नस्थापित करने के उद्देश्य से आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में श्री दिनेश बहेती शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, जावर से सेवा निवृत्त प्राचार्य एवं श्री राकेश ठाकुर शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय मैहतवाड़ा से उपस्थित रहें। सर्वप्रथम ज्ञान की देवी सरस्वती के मंदिर में दीप प्रज्जवलन पश्चात कार्यक्रम प्रारंभ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ. अबेका खरे ने की । उन्होंने अपने आतिथ्य उद्बोधन में बताया कि शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ नोकरी प्राप्त करना नहीं है । जीवन के हर क्षेत्र में सर्वांगीण विकास करना शिक्षा का उद्देश्य है । इसके लिये जीवन में गुरू का महत्व है।

जीवन में पहली गुरू मां होती है इसके पश्चात शिक्षा प्रदाता गुरू का नम्बर आता है । जो जीवन में व्यवहारिक शिक्षण के साथ नैतिकता एवं सदाचार का महत्व बतलाता है। श्री बहेती ने अपने उद्बोधन में विद्यार्थी जीवन में गुरू के प्रति समर्पण का महत्व बताया जैसे एकलव्य ने गुरूमूर्ति बनाकर उनके सामने सर्वस्व समर्पण कर धर्नुविद्या सीख ली एवं द्रोणाचार्य को गुरू दक्षिणा में अपना अंगूठा प्रदान कर दिया। शिक्षा का उद्देश्य किताबी ज्ञान ही प्राप्त ही नहीं है । हम जो भी कार्य करें उसे लगन से करे तो सफलता जरूर मिलेगी।

कार्यक्रम का संचालन डाॅ. ललिता राय ने किया एवं आभार प्रदर्शन महाविद्यालय की प्राचार्य डाॅ अबेका खरे ने किया। कार्यक्रम में नफीस अहमद, डाॅ. बेला सुराणा, राजेश्वर भूतिया, मुकेश परमार,जगदीश नागले, जितेन्द्र विश्वकर्मा, वैभव सुराणा, सुनील श्रीवास्तव, रविकांत मालवीय, मेहरबान मेवाड़ा, शोभाराम मालवीय, मुकेश गोयल, अजय घेंघट आदि उपस्थित रहें

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