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आष्टा। में हमेशा सोचता था कि हमारे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज जी के पास आष्टा के समाजजन आते नहीं है फिर भी उन्हें हर साल गुरुदेव के शिष्यों का चातुर्मास कैसे मिल जाता है।

गुरु की कृपा आष्टा पर बरसती है,मेरी इस जिज्ञासा का समाधान आज नगर प्रवेश पर हो गया। आष्टा की आस्था आचार्य भगवंत एवं साधु – साध्वियों पर अधिक है। बच्चों को अगर समय पर संस्कारित करते हैं तो वह कभी भी गलत मार्ग पर नहीं जाएगा।


वृक्षारोपण करें और रौंपे गए पौधों की देखभाल भी करें। बच्चे बड़े आदमी बनें यह सभी चाहते हैं ,लेकिन अच्छा आदमी नहीं बनातें हैं। पैसा कमाने की विद्या सीख गया,यह बहुत समझते हैं, लेकिन यह ठीक नहीं।


उक्त बातें संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री विनम्र सागर महाराज ने नगर प्रवेश के पश्चात श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आशीष वचन देते हुए कहीं।

मुनिश्री के प्रवचन की जानकारी समाज के नरेन्द्र गंगवाल ने देते हुए बताया कि मुनि विनम्र सागर महाराज ने कहा कि पूज्य गुरुदेव आचार्य विद्यासागर महाराज ने मूक माटी में एक लेख लिखा है।

साधारण कब असाधारण बन जाएं,समय नहीं लगता। सवा महीने भोपाल में रहने के पश्चात गुरु वर की प्रिय नगरी आष्टा हम पहुंच गए। आष्टा वाले गुरु वर के पास नहीं आते लेकिन यहां पर चातुर्मास हमेशा उनके शिष्यों का मिला, गुरु की कृपा बरसती है, क्योंकि आष्टा की आस्था बहुत मजबूत है।

छोटे से बच्चों को समय पर संस्कारित करते हो तो वह गलत मार्ग पर नहीं जाएगा, वृक्षारोपण करें और देखभाल भी करें। बच्चे बड़े आदमी बनें यह सभी चाहते हैं ,लेकिन अच्छा आदमी नहीं बनातें हैं। पैसा कमाने की विद्या सीख गया,यह बहुत समझते हैं, लेकिन यह ठीक नहीं। जैन दर्शन कहता है कर्म के कारण होता है।

अन्य समाज में दो सिद्धांत चलते हैं।हम भगवान बन सकते हैं। भगवान की बनाई हुई रचना बच्चा होना नहीं है। आपको विद्यालय दिखता है और हम वहां के पीछे का नजारा देखते हैं।

विद्यालय की स्थिति वहां बाहर व पीछे पड़े विभिन्न गुटखे की पन्नियों आदि से स्पष्ट हो जाता है कि यहां कैसी पढ़ाई होती है और बच्चे किस दिशा में जा रहे हैं। आदमी पाप से डरता है, पुण्य करता है।

मां का पुत्र के संस्कार के लिए अपार उत्साह रहता है।घर में गर्भाधान संस्कार किया जाता है।सैय्या की विवाह के बाद आरती उतारते हैं दम्पत्ति। दंपत्ति से उत्पन्न बच्चा कोई महावीर तो कोई कुंथकुंथ बनेगा।जो बच्चों को बढ़िया बनाना चाहते हैं वह 5 जुलाई को उपनयन संस्कार महोत्सव में अपने 8 वर्ष आयु के बच्चों को भेजें ।

मुनिश्री ने कहा एक अच्छा आर्टिस्ट अच्छी पेंटिंग बनाता है। दृष्टि में दृष्टिकोण देने का काम।जो पूर्वजों ने नहीं सिखाया वह हमें सिखना होगा।

समय पर सही निर्णय नहीं लेने से आज 40 साल तक के अविवाहित हैं।आज का युवा 80 प्रतिशत डिप्रेशन के शिकार हैं।कोटा में हर आठ दिन में एक बच्चा आत्महत्या कर रहा हैं।

बच्चों की गृहस्थी में कीड़े नहीं लगेंगे, इस उपनयन संस्कार से। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं।आज स्कूल,कालेजों में बच्चे ड्रग्स तक ले रहे हैं, खुले आम सिगरेट, शराब पी रहे हैं।जब बच्चा बाप शब्द बोलता हैं तो मां को बुरा लगता है।

ऐसे बच्चे वृद्ध अवस्था में क्या माता पिता की सेवा करेंगे।आगम बच्चों को बढ़िया बना सकते हैं। बच्चे भगवान के बनाए हुए नहीं हैं आपके कर्म से आएं हैं। नर्क से आया बच्चे पैर से दरवाजा खोलते हैं। स्वर्ग से आए बच्चे शांत रहते हैं।

मां अपने गर्भ में आएं बच्चे को लेकर चिंतित रहती है कि बच्चा स्वस्थ और सुंदर हो। जांच के दौरान शंका में आकर डॉक्टर के कहने पर अविकसित बच्चे का गर्भपात करा देते हैं,वह मां कितना कष्ट झेलती है, यह वही समझती है, पुरुष नहीं।

गर्भपात पाप है। मुनिश्री ने कहा 5 जुलाई को होने वाले उपनयन संस्कार से इन बच्चों के जीवन में बड़ा परिवर्तन आएगा।

हर धर्म के लोग अपने -अपने अनुसार अपने इष्ट की पूजा करते हैं।सार्वभोमिक धर्म है सरलता, सहजता, पवित्र ब्रह्मचर्य ।गृहस्थ धर्म वाले को अधिक सार्वभौमिक धर्म का पालन करना होता है।

धार्मिक संस्कार बेटों को ही नहीं बेटियों को भी दिलाएं, बहुत जरूरी है, उन्हें आर्यिका माता संस्कारित करती है। बड़े -बड़े होस्टल से कंपोस्ट में क्या-क्या निकलता है, यह आप सभी समझते हैं।

गुरुवर की छाया में 324 कमरे भोपाल हबीबगंज में विद्यासागर निलयम बन रहा हैं।आर्यिका दृढमति माता जी का चातुर्मास भोपाल में बेटियों के लिए हो रहा है।

विद्या निलयम के निर्माण में आप भी सहयोग करें। आप अपनी जबावदारी से भागे नहीं, अपनी जबावदारी का निर्वहन करें।

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