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आष्टा । जो मन के भाव होते है,वे भाव अगर अच्छे है,शुध्द है, तो भव सुधर जायेगा और अगर वे ही भाव अच्छे नही है,तो बुरे भावों से कर्मो का बंध होगा और भव भी बिगड़ेगा।
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अशुध्द एवं बुरे आये भावों के कारण जो कर्मो के बंध बंधे है वे कभी भी उदय में आ सकते है और बांधे गये कर्मो को हमे ही भुगतान पड़ेगा। शुध्द भावना से अच्छे भावों से कर्मो का नाश किया जा सकता है,
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इसलिये सभी के प्रति हमेशा अच्छे भाव रखे उक्त उदगार महावीर भंवन स्थानक में विराजित पूज्य साध्वी श्री कीर्तिसुधा जी महाराज साहब ने प्रवचन के माध्यम से धर्मसभा में कहे। पूज्य महाराज साहब ने कहा की भावना से व्यक्ति का उत्थान और पतन दोनों संभव है।
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भावना से बंधे कर्मो का नाश भी किया जा सकता है और कर्म भी बंधे जा सकते है। जो कर्म 84 सेकेंड में हम खुशी मना कर बांध लेते है उन बंधे कामो को 84 लाख भव तक भोगना पड़ सकते है। इसलिये धर्म की दलाली करो धर्म की दलाली करने मात्र से तीर्थंकर गौत्र का बंध हो जाता है।
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इसलिये अपने भावों को कभी भी बिगड़ने मत दो। महाराज श्री ने उदाहरण के माध्यम से समझाया की नल में लगी टोंटी एक ही होती है लेकिन उसको चालू करो तो पानी आना शुरू हो जाता है और बंद करो तो पानी आना बंद हो जाता है ।
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सीढ़ी से चढ़ भी सकते है,उतर भी सकते है।चाबी से ताला खोला भी जा सकता है और बन्द भी किया जा सकता है। ये सब एक ही भाव शब्द है। इन्हें जिधर मोड़ो मुड़ जायेंगे। मुक्ति पाने के लिये भावों का श्रेष्ठ होना जरूरी है।
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अगर रोटी जले तो जलने दो,कपड़े फटे है,खराब है तो होने दो,व्यापार बिगड़ रहा है तो बिगड़ने दो,हिम्मत मत हारो ये सब ठीक हो जायेगा। लेकिन इन सब के चक्कर मे भव मत बिगड़ने देना अगर भव बिगड़ा तो सब कुछ बिगड़ जायेगा। बंधे कर्मो ने भगवान को भी नही छोड़ा है। भगवान महावीर स्वामी जी को भी साढ़े बाराह वर्ष तक कठोर तप करना पड़ा था,कई उपसर्ग आये,परिसय सहन किये।
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भगवान ऋषभदेव ने भी एक हजार वर्ष तक कठोर तप,साधना की थी ।ओर घाती कर्मो का नाश किया। भावना का ऐसा असर है की भरत चक्रवर्ती राजा को बैराग्य आ गया भरत मुनि के रूप में उन्होंने बैराग्य भरा जो प्रथम उपदेश दिया उससे 10 हजार आत्माओं को वैराग्य आ गया ओर इन सभी ने संयम ग्रहण किया।
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महाराज साहब ने कहा कि सुबाह से शाम तक जो भी करते हो,शाम को रात में उसका चिंतन करो और जो गलत किया उसकी आलोचना जरूर करो।
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