इन दिनों एक बार फिर एक अनुशासित,नियम,कानून का पालन करने वाला,पालन करवाने वाला विभाग का एक अदना सा अधिकारी,जिसके ऊपर अनुविभाग में एक नही दो दो बड़े अधिकारी होने के बाद भी ये अदना सा अधिकारी दोनों बड़ो की आंखों में धूल झोंक कर रोजाना जम कर अवैध बसूली में जुटा है।
उसका ऐसा सोच है की उसके हाथों की खुजली मिटाने वाली जो बीमारी है वो किसी को दिखती नही है,अरे बसूली दादा आप ही बताओ बुधवार को हाट में जो दुकाने आती है,जिस भाव वे समान बेचते है क्या वो किसी से छुपता है नही ना..! ओर किसी से छुप भी जाये पर हमारे ये घुंघरू जो बजते नही,पर हमें सुनाई दिये जाते है..!
ये घुंघरू जो बजते नही,पर सुनाई देते है…..
बताते है ये अधिकारी मुख्यालय पर रहता तो नही है। लेकिन उसके हाथों में रोजाना सुबाह से, पहले 10/11 बजते ही आता था और अधीनस्थों के साथ हाथों की खुजली मिटाने निकल जाता इसके हाथों की खुजली मिटाने के लिये नगर में दो ऐसे स्थान चिह्नित किये हुए है
जो वो सुरक्षित मानता है। खबर है अब इन महाशय के हाथों की खुजली आचार संहिता लगने के बाद से कुछ ज्यादा बढ़ गई तब बसूली बाबा ने शायद इन्हें बता दिया होगा की इसका एक उपाय है,समय बढ़ा लो। बसूली बाबा की बात को सिर आंखों पर रख अब इन बसूली दादा ने अपने हाथों की खुजली मिटाने का जो समय रखा था अब ये उसके स्थान पर एक घंटे पहले आने लगे है,ओर आते ही पील जाते है।
जबकि बताते है इस भूखे डांस के घर भगवान की,लक्ष्मी की मेहर बनी हुई है,लेकिन यह भी सही है जब गंगा जी बह रही हो तो जितना चाहो उसको लूट लो,क्या मालूम कल रहे ना रहे..? क्योकि आचार संहिता हटते ही कब रवानगी हो जाये कोई भरोसा नही। भरोसा इस लिये नही की जो अपने अधीनस्थों का नही हुआ वो अपने बड़ो का कैसे होगा.?
लेकिन दादा ये आष्टा है,इस आष्टा ने अगर किसी को सिर पर बैठाया है तो उसे जमीन पर भी पटका है,कई बार उसे लटकाया भी है ।
क्योकि यहा अच्छे अच्छो के घुंघरू बज गये है,घुंघरू भी ऐसे बजाये है कि ये घुंघरू जो बजते नही है पर सुनाई तो भोपाल तक देते है..?
इसे पूरा गहराई से पढ़ना,समझना है,सब कुछ इसके अंदर ही छुपा है..