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आष्टा । जैन आगम के सर्वथा अनुकूल मुनि धर्म का निर्वहन करते हुए 82 वर्षीय पूज्य भूतबली सागर जी महाराज ने बुधवार 28 मार्च की दोपहर ढाई बजे अपनी देह त्याग दी ।

नगर के जैन जैनेतर भक्तों पर उनकी अपार कृपा थी । संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी के शिष्यों में सबसे पहले आपने ही दीक्षा ली थी और ज्येष्ठ रहे मुनि श्री भूतबली सागर जी महाराज को सोमवार को स्वास्थ्य संबंधी प्रतिकूलता हुई थी ।

इस खबर के बाद से ही देश भर में फैले मुनिश्री के शिष्यों का महाराज श्री के दर्शनार्थ नगर में आना शुरू हो गया था । बुधवार को उनका संथारा समाधिपूर्वक देहावसान हो गया ।

मुनि श्री के पार्थिव शरीर को श्रावकों के दर्शनार्थ श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मन्दिर प्रांगण में रखा गया था ।

जहां उनके संघस्थ शिष्य मुनि सागर जी , मौन सागरजी तथा मुक्ति सागर जी महाराज के सानिध्य में ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी ने शांति और समाधि पाठ किया ।

इस अवसर पर विनयांजलि सभा भी हुई । दी गई जानकारी अनुसार पूज्य मुनि श्री भूतबलि सागर जी महाराज का गृहस्थ जीवन का नाम भीमसेन था ।


जन्म स्थान — कर्नाटक प्रांत बेलगावी जिला तेरदाल गाँव मे उनका जन्म अल्लपा जिंजुरवाड़ के यहां हुआ था।माता का नाम पद्मवा जिंजुरवाड़
था।

आपकी चार बहने थी।महाराज जी केवल चार बहनों चन्द्रवा,चम्प्वा,हौसवा,शानत्वा के बीच मे एक भाई थे भीमसेन।आपका सांसारिक नाम भीमसेन था।


आचार्य श्री विद्यासागर महाराज ने प्रथम क्षुल्लक दीक्षा अजमेर में ब्रह्मचारी भीमसेन जी को दी थी।

विनयांजलि सभा में बाल ब्रह्मचारिणी मंजुला दीदी ने मुनि श्री भूतबलि सागर महाराज के आष्टा में तीन चातुर्मास सहित अनेक शीतकालीन वासना मिलने सहित आष्टा के किले मंदिर को सम्मेद शिखर जी का नाम दिया था ।

और उन्होंने अंतिम सांस भी इसी किला मंदिर परिसर में सब कुछ त्याग कर ली। पूज्य मुनि श्री के अंतिम दर्शन हेतु पहुचे विधायक गोपाल सिंह इंजीनियर ,

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी राजेंद्र मालवीय,प्रदेश कांग्रेस के महासचिव कैलाश परमार,नपा अध्यक्ष प्रतिनिधि रायसिंह मेवाडा,डॉ मीना सिंगी, रुपेश राठौर,प्रशाल प्रगति, सुशील संचेती,

समाज अध्यक्ष आनंद पोरवाल जैन, महामंत्री कैलाशचंद जैन चित्रलोक, मुकेश बडजात्या, संतोष जैन जादूगर,एच आर परमाल सहित बाहर से पधारे

मुनि भक्तों ने भी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि शब्दों के माध्यम से व्यक्त की। बाद समाधिस्थ मुनि भूतबली सागर जी का डोला निकाल कर किला मन्दिर के परिसर में

विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया । जहां हजारों श्रावको ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित कर आहुति स्वरूप श्रीफल अर्पित किए ।

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