आष्टा। पिच्छी संयम बहुत दुर्लभ है। संयम का अर्थ होता है नियंत्रण। संयम धारण करने वाले संसार में विरले होते हैं। मिथ्या दृष्टि बहुत संख्या में होते हैं।जीवन में लक्ष्य निर्धारित करने वाला गौरवपूर्ण जीवन जीता है।आज के युग में प्रत्येक मनुष्य सफलता चाहता है। जीवन में लक्ष्य बनाकर कार्य करेंगे, तभी सफलता मिलेगी। खाना पीना और सोना जीवन नहीं है। जीवन तो वह है जिसमें कुछ करने गुजरने की भावना होनी चाहिए। जीवन में निराशा वादी नहीं बनना चाहिए। आज युवा पीढ़ी कठिनाई आने पर जल्दी निराशावादी बनकर टूटने लगती है। जीवन में सुख दुख आते रहते हैं।

हमें सकारात्मक सोच के लिए जीवन मिला है।जो मनुष्य अपने जीवन में लक्ष्य निर्धारित कर लेता है। वह गौरवपूर्ण जीवन जीता है।
उक्त बातें श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर संयमोपकरण पिच्छिका परिवर्तन भव्य समारोह में अपने आशीर्वचन के दौरान मुनि अजीत सागर महाराज ने कही।

उन्होंने कहा कि मनुष्य के जीवन का लक्ष्य परमात्मा बनना होना चाहिए। पुरुषार्थ करने से ही हमें मंजिल मिल जाएगी। सकारात्मक सोच को भी अपने जीवन मे लाएं। प्रत्येक मनुष्य सफलता चाहता है। जीवन में लक्ष्य बनाकर कार्य करेंगे, तभी सफलता मिल पाएगी। खाना-पीना व सोना जीवन नहीं है। जीवन तो वह है, जिसमें कुछ करने गुजरने की भावना होती है। संसार के बंधन से मुक्त होना है। उन्होंने कहा कि एक ही लक्ष्य निर्धारित करें। प्रतिदिन मंदिर जाकर देव दर्शन, स्वाध्याय करना व शुद्ध शाकाहारी भोजन के साथ आपस में प्रेम सद्भाव करना चाहिए। चातुर्मास के दौरान रविवार 8 नवंबर को मुनिश्री ससंघ की पिच्छिका परिवर्तन का आयोजन किया गया।

इस अवसर पर ऐलक दयासागर एवं विवेकानंद सागर महाराज ने कहा कि जीवन को ऐसे जियो कि जैसे दीप, जो अंधकार को मिटाता है और रोशनी देता है, तभी जीवन सार्थक होगा।मोक्ष मार्ग में 4 उपकरणों की आवश्यकता होती है। मयूर पिच्छिका, कमण्डल और शास्त्र बाह्य उपकरण है। आगमानुसार चर्या के लिए संयम के उपकरण आवश्यक होते हैं। विनय संपन्नता से मोक्ष मार्ग प्रशस्त होता है। आज के समय में संयम का नहीं वरन असंयम के उपकरण टीवी, मोबाइल आदि से मनुष्य का बहुमूल्य जीवन व समय बर्बाद हो रहा है। विषय भोगों का ज्ञान निःशुल्क ही मिल जाता है। लौकिक ज्ञान के अर्जन के लिए पूरी दुनिया में भ्रमण कर रहा है मानव, किंतु उसे कुछ प्राप्त नहीं हो पा रहा है। संस्कारों से वह दूर होता जा रहा है।
विदित रहे कि मुनिश्री अजीत सागर महाराज ससंघ को नई पिच्छी देने एवं पुरानी पिच्छी लेने के लिए भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह आयोजित किया गया था।

चातुर्मास कर रहे मुनि संघ का पिच्छिका परिवर्तन समारोह उत्साहपूर्वक संपन्न हुआ। इस पावन अवसर पर मुनि अजीत सागर महाराज ने अपने आशीर्वचन में कहा कि समाज गुरु की आज्ञा का पालन करें और बेटा -बेटी भी अपने माता- पिता की आज्ञा का पालन करें । त्यागी- व्रतियों को देखकर ह्रदय गदगद हो गया। मेरा चातुर्मास सफल हो गया कि कम उम्र में यहां के युवा दंपतियों ने त्याग- तपस्या का मार्ग चुना ,बल्कि यह कहूं कि अति सफल चातुर्मास मेरा यह हुआ है । पिच्छी के गुण देखें और बच्चों ने अपने नाटक के माध्यम से भी बताएं ।यह बड़ों के प्रति समर्पित रहने ,धर्म के प्रति कठोर ,गुरु आज्ञा के प्रति कसे रहने, प्रत्येक जीव की रक्षा करने, पंच इंद्रिय और मन को कसे रहने की प्रेरणा भी देती है ।यह संयमी उपकरण बहुत कोमल होता है। जीवो के प्रति दया लाती है, जीवो की रक्षा के लिए । मुनिश्री एवं ऐलकजी के सांसारिक परिजनों का शाल ओढा कर समाज की ओर से सम्मान किया गया। इस अवसर पर पाठशाला के बच्चों ने शानदार पिच्छी कमंडल पर नाटक प्रस्तुत किया। कार्यक्रम का संचालन सुरेंद्र जैन शिक्षक ने किया तथा आभार समाज अध्यक्ष यतेंद्र जैन श्रीमोड़ ने व्यक्त किया ।
