आष्टा। अनादि काल से जीव अपने स्वयं के कर्म के कारण परिभ्रमण कर रहा है, जिसका कारण कर्म है । कर्म दो प्रकार के होते हैं शुभ और अशुभ कर्म । मन ,वचन और काया यह तीन चीजों से कर्म बनते हैं। पाप की क्रिया को छोड़ने के लिए इनको जानना बहुत जरूरी है। कभी भी व्यक्ति को अशुभ वचन नहीं बोलना चाहिए। वाणी में विवेक रखना चाहिए, मीठा बोलो ,वात्सल्य से बोलो, अमंगल शब्द नहीं बोलना चाहिए ।वचन में दरिद्रता नहीं रखना चाहिए ।पाप प्रेरक वचन नहीं बोलना चाहिए ,पाप क्रिया में आनंद आए ऐसा वचन नहीं बोलना चाहिए। पाप की पुष्टि करने वाला वचन भी नहीं बोलना चाहिए
उक्त बातें महावीर भवन स्थानक में विराजित परम पूज्य आचार्य उमेश मुनि जी महाराज साहब अणु के परम प्रभावक शिष्य जिनेन्द्र मुनि जी ने आशिष वचन देते हुए कहीं।
आपने कहा कि वचन से, काया से भी पाप कर्म करता है और पाप कराने के लिए अनुमोदना करता है तो वह अपने कर्म बांधता है। जिनेंद्र मुनि ने कहा कि जब तक पाप की क्रिया को जानोगे और समझोगे नहीं तो वह छूटेगी नहीं । अपनी वाणी वचन से पाप कर्म का बंध व्यक्ति कर रहा है। अशुभ वचन अर्थात अपशब्द नहीं बोलना चाहिए ।वाणी पर कंट्रोल रखें ,वाणी पर विवेक हो। वाणी पर महाभारत हो गई थी। पाप बड़े हैं, पापों में वृद्धि हो ऐसे वचन न बोले । पाप क्रिया करने में आनंद आता है यह भी गलत है । संसार में रहते हुए वाणी का दुरुपयोग कर अनेक कर्मों का बंध व्यक्ति कर लेता है। विवेक रखें कभी भी कैसी भी परिस्थिति हो पाप के कार्यों की अनुमोदना ना करें । जिनेंद्र मुनि जी ने कहा धर्म जितना अधिक करोगे उतने ही सुखी बनोगे। कभी भी मजाक व हंसी मैं गलत वचन न बोले,मन को पीड़ा पहुंचे ऐसे कुवचन न बोले ।
जो व्यक्ति वाणी पर नियंत्रण नहीं करता उसे अगले भव में वाणी नहीं मिलती है । वीतराग का शासन मिला है अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें ।सास – बहू ,भाई -भाई ,पिता -पुत्र आदि गलत न बोले पुण्य वाणी समाप्त होती है। क्रोध ,मान, माया, लोभ न करें । जिसमें गुण नहीं है उसे मान ना देवे। बिना काम के फालतू न बोले ,विवेक रखें। साधु – साध्वी व श्रावक भी अमल करते हैं। पाप क्रिया का त्याग न करना कर्म बंध का कारण बनता है। आलस्य न करें ।धर्म के कार्य में आगे बढ़े। कोरोना काल में खूब धर्म -आराधना की। संसार में काया से शुभ और अशुभ क्रिया होती है ,प्रयास करें शुभक्रिया हो।
“जैन धर्म जबरजस्ती का नहीं जबरदस्त है”–गिरीश मुनि
गिरीश मुनि जी ने इस अवसर पर कहा कि मोह कर्म का राजा है ।इस मोह रूपी राजा को हराना है । मोह का क्षय हो जाना ही मोक्ष है। बड़े आचार्य भगवंतों को देखकर उनकी साधना को देखकर मोह कर्मों को घटाना है ।जिस प्रकार घास के तिनके पर पानी की बूंद कुछ क्षण में ही नष्ट हो जाती है उसी प्रकार काम भोग के कार्य हैं, हमारा धर्म जबरजस्ती का नहीं बल्कि जबरदस्त है। आपके आष्टा की खुशबू तो चारों ओर फैली हुई है और उस खुशबू के कारण से सभी भंवरों की तरह आष्टा की ओर आ रहे हैं।
गिरीश मुनि जी ने कहा कि व्यक्ति शरीर को सजाने में ना जाने क्या-क्या जतन करता है ।लेकिन त्यागी साधु-संत शरीर की चिंता नहीं करते हैं। बिहार के दौरान पैरों में छाले हो जाते हैं, खून बहने लगता है तथा पत्थर वाले मार्ग से विहार करते हैं। कैसा भी संकट आ जाए आत्म हत्या का नहीं सोचें। कर्म अच्छे किए इसलिए मानव जन्म मिला है। इस मानव जीवन को सार्थक करें, लक्ष्य बनाएं। संसार की छोटी मोटी पिक्चर देख रहे हो। गिरीश मुनि जी ने कहा कि रसना इंद्रियों पर साधु -संतों का कितना नियंत्रण रहता है और आपका कितना नियंत्रण है । साधु स्वाद नहीं लेते हैं, जो स्वाद ले वह साधु नहीं। ज्ञानी फरमाते हैं हम अपने कर्मों का ध्यान दें तो मन के अंदर का अंधकार दूर होगा, तभी आप का कल्याण होगा। सब जी रहे हैं ।आठ कर्मों को समाप्त करें, इनका राजा मोहिनी कर्म है। मोह छोड़े बिना अन्य कर्म नहीं छूटेगे। इस पर पुरुषार्थ करें, अन्य लोगों की तरह अपने इस जीवन की आहुति ना दे । वह अनेक बार जन्म मरण किया है लेकिन संयम लेकर जीवन जीए। जिनेन्द्र मुनि ने कहा कि गुरु ने राह दिखाई अभी चलना है बाकी.. राही तुम भूल न जाना.. मंजिल है बाकी…। मधुर व्यवहार हो अपना मधुरता वचन में….. शानदार भजन सुनाकर सभी को मंत्रमुग्ध किया।