आष्टा। पर्व दो प्रकार के होते है एक लौकिक पर्व दूसरे लोकोत्तर पर्व। पर्युषण पर्व लोकोत्तर पर्व है जिसे त्याग,तप,साधना से मनाते है। भगवान मोक्ष में है वे शुद्ध हो गये, हम संसार मे है इस लिये अशुद्ध है,हमारे ऊपर कर्म रूपी मिट्टी लगी हुई है,हमारा जीवन असंस्कारित है। जिस प्रकार खदान से निकले हीरे को हीरे का स्वरूप एक जौहरी ही दे सकता है-कोई लौहार हीरे को हीरे का स्वरूप कभी नही दे सकता है इसी लिये कहावत भी कही जाती है की हीरे की कद्र एक जौहरी ही कर सकता है
उक्त अमृतवाणी पर्युषण महापर्व के आज प्रथम दिन महावीर भवन स्थानक में विराजित पूज्य अणुवत्स श्री संयत मुनि ने धर्मसभा में कहे। मुनि श्री ने कहा आज टीवी और मोबाईल की संस्कृति बच्चों को,संस्कारो को बिगाड़ रही है। अपने संस्कारो की रक्षा हमे ही करना होगी। आज जो हमारे बच्चे असंस्कारित हो रहे है उसके लिये अगर कोई सबसे बड़ा उत्तरदायी है तो वो माता पिता है। बच्चों के लिये उनके माता पिता एक माली के समान होते है वे ही उन्हें अच्छे संस्कारवान बना सकते है।
जब आप अपने बच्चों को धर्मस्थान में गुरु के पास उन्हें भेजोगे तो वे गुरु के सानिध्य में आ कर अच्छा ज्ञान भी ओर अच्छे संस्कार भी प्राप्त करेंगे। लेकिन आज बच्चों के पास एक माह की समर क्लॉस के लिये समय है,लेकिन उसको कुछ समय गुरु के पास आने का समय नही है ये बड़ी चिंता का विषय है। पर्युषण पर्व संस्कारो को बढ़ाने का ही पर्व है। संस्कारो की सुरक्षा अपने हाथों में ही है।
प्रवचन के अंतर्गत पूज्य मुनि श्री सुभेष मुनि एवं पूज्य श्री अभय मुनि ने कहा की पर्युषण पर्व में ही अंतगडदशांक सूत्र का ही वाचन क्यो किया जाता है क्योंकि इसमें उन 90 आत्माओं का वर्णन है जिन्होंने केवल ज्ञान प्राप्त करते ही निर्वाण को प्राप्त किया। जीवन मे लक्ष्य का होना अतिआवश्यक है,जो लक्ष्य को बना कर आगे बढ़ता है वो ही लक्ष्य को पाते है।अंतगड दशांक सूत्र वो औषधि है जो मोह रूपी बीमारी को दूर कर आत्मा की शक्ति को बढ़ाती है। ये संसार बारूद का ढेर है जो आत्मा को छिन्न भिन्न कर देता है। सच्चा सुख संसार मे नही संयम में है।
जिसने देह ओर वित्त का मोह छोड़ दिया उसे वीतराग बनते समय नही लगेगा। आज व्यक्ति धन से नही मन से ज्यादा दुखी है। आज व्यक्ति के पास जैसे जैसे धन बढ़ रहा है वैसे वैसे उसके मन की पतनता हो रही है। मन के पतन को रोकने की आवश्यकता है। पर्युषण आत्मा को निर्मल बनाने का संदेश देते है इस लोकोत्तर पर्व को धर्म, ध्यान,त्याग,तप के साथ मनाये।