व्यसन को त्याग कर निष्काम सेवा पथ पर आगे बढते रहे- मुनि विराट सागरजी आष्टा के देवालयो में दिव्यता और श्रावको में आस्था विद्यमान है
आष्टा । आना और जाना संसार की शाश्वत रीति है लेकिन यह आत्मा का भटकाव भी है दुर्लभ मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य तो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो…