आष्टा । आना और जाना संसार की शाश्वत रीति है लेकिन यह आत्मा का भटकाव भी है दुर्लभ मनुष्य जीवन का अंतिम लक्ष्य तो जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो कर मोक्ष की प्राप्ति ही है। सन्त आत्म कल्याण के लिए सांसारिक जीवन का त्याग करते हैं, अपनी चर्या और उपदेश से प्राणियों को सदमार्ग पर चलने का संदेश देते हैं, श्रावकों की प्रवृत्ति पुण्यार्जन की बने यही संतो की भावना होती है। सेवा भी एक धर्म है आष्टा के देवालयों में दिव्यता है लोगों में आस्था विद्यमान है धर्म के प्रति अनुराग भी है यह सदैव बढ़ती रहे यही शुभाशीर्वाद है।
यह दिव्य संदेश आचार्य श्री विद्यासागरजी महाराज के शिष्य पूज्य मुनि सम्भव सागरजी के संघस्थ मुनि विराट सागरजी ने आज किला मन्दिर से जावर की ओर पद विहार करते हुए श्रद्धालुओ को दिया। मुनि श्री ने कहा कि क्रमश सुधार करते हुए सभी को आत्म कल्याण के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। लौकिक जीवन मे मद्यपान, झूठ, कुशील और गलत ढंग से जीविकोपार्जन से किसी का भी कल्याण नही हो सकता।
व्यसन उपभोग से क्षणिक रूप से सुख तो मिल सकता है लेकिन यह अंततः दुख का ही कारण सिद्ध होते है। मुनि श्री ने सु साधन से ही आत्म निर्भर हो कर आत्मा के कल्याण का संदेश देते हुए कहा कि आस्था को मन का स्थायी भाव होना चाहिए।
मुनि श्री ने पद विहार में पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार, दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष यतेंद्र श्रीमोढ, समाज के महामंत्री कैलाश चित्रलोक, समाज के पूर्व अध्यक्ष पवन जैन, मुकेश बड़जात्या, राजकुमार जैन, संजय जैन किला, महिला तथा बालिका मंडल सहित सेकड़ो श्रावकों से कहा कि सच्ची और निष्काम सेवा भावना को मन मे धार कर धर्मानुकूल आचरण अपनाएं।
उलेखनीय है कि नेमावर में विराजमान सन्त शिरोमणि आचार्य विद्या सागरजी के शिष्य मुनियों का संघ विगत सवा महीने से नगर में विराजमान था। मुनि संघ के सानिध्य में लगातार धर्म प्रभावना और अनेक शिक्षण शिविर भी चलते रहे। अपने गुरु के आदेश पर आज सभी मुनि महाराज ने जावर की और प्रस्थान किया। विहार के दौरान ही अलीपुर में पूर्व नपाध्यक्ष ने साथियों के साथ महाराज श्री को श्रीफल अर्पित कर चरण प्रक्षालन किया। सभी जैन साधु ग्राम डोडी में रात्रि विश्राम के पश्चात शनिवार को जावर नगर में प्रवेश करेंगे।