आष्टा। नगर के श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंतपुरम अलीपुर में चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य मुनिश्री विनम्र सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने कहा कि विनम्रता व्यक्ति को सफलता दिलाती है। व्यक्ति को हमेशा विनम्र बनकर ही रहना चाहिए। आज भक्तामर जी के तीसरे छंद की व्याख्या करते हुए मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने बताया कि कार्यों की सिद्धि उसी को प्राप्त होती है जो स्वयं को विनम्र और लघु बना लेता है विनम्रता और लघुता ही हमें सभी कार्य में सफलता दिलाती है झुक वही सकता जिसमें जान है अकड़ना तो खास मुर्दों की पहचान है जिस प्रकार फलदार वृक्ष ही झुकते हैं ,उसी प्रकार जिसके पास ज्ञान होता है वही विनम्रता और लघुता से भरे होते है ।
ज्ञानी जीव सदेव अपने विनम्र व्यवहार के कारण ज्ञानी कहे जाते है और तीसरे छंद की व्याख्या करते हुए परमा अवधि ज्ञान के धारी मुनिराज को उनके गुणों की प्राप्ति के लिए नमस्कार किया गया है। तीसरे छंद में आचार्य मानतुंग जी महाराज बहुत ज्ञानी होने के बाद भी अपने आप को बालक के समान अल्प बुद्धि वाला बताते थे।यही उनके स्त्रोत की सफलता प्रसिद्धि का कारण है। आज के विधान के पुण्यार्जक श्री कोमलचंद जैन, पंकज कुमार, सचिन जैन के द्वारा आज शांति धारा, चंद्र प्रभ भगवान, आचार्य विनम्र सागर महाराज का चित्र अनावरण और मुनिश्री पाद प्रक्षालन आदि क्रियाएं संपन्न हुई।
आज भक्तामर जी के तीसरे छंद की व्याख्या करते हुए मुनि श्री विंनद सागर जी महाराज ने बताया कि कार्यों की सिद्धि उसी को प्राप्त होती है जो स्वयं को विनम्र और लघु बना लेता है विनम्रता और लघुता ही हमें सभी कार्य में सफलता दिलाती है झुक वही सकता जिसमें जान है अकड़ना तो खास मुर्दों की पहचान है जिस प्रकार फलदार वृक्ष ही झुकते हैं ,उसी प्रकार जिसके पास ज्ञान होता है वही विनम्रता और लघुता से भरे होते है ।ज्ञानी जीव सदेव अपने विनम्र व्यवहार के कारण ज्ञानी कहे जाते है और तीसरे छंद की व्याख्या करते हुए परमा अवधि ज्ञान के धारी मुनिराज को उनके गुणों की प्राप्ति के लिए नमस्कार किया गया है। तीसरे छंद में आचार्य मानतुंग जी महाराज बहुत ज्ञानी होने के बाद भी अपने आप को बालक के समान अल्प बुद्धि वाला बताते थे।यही उनके स्त्रोत की सफलता प्रसिद्धि का कारण है। आज के विधान के पुण्यार्जक श्री कोमलचंद जैन, पंकज कुमार, सचिन जैन के द्वारा आज शांति धारा, चित्र अनावरण और मुनिश्री पाद प्रक्षालन आदि क्रियाएं संपन्न हुई।
“आज लोगों को समय नहीं इसलिए भगवान के मंदिर पर ताले लग रहे हैं , पहले 24 घंटे मंदिर खुले रहते थे — मुनिश्री निष्काम सागर महाराज”
भगवान की भक्ति, अभिषेक ,स्तुति, पूजा जितनी एकाग्रता के साथ करोगे, उतना अधिक पुण्य अर्जन और अतिशय होगा। भगवान के अभिषेक सभी कर लेवे उसके बाद शांति धारा कर अर्ध्य अर्पित करें। त्रुटियों को सुधारना होगा। चौबीस घंटे भगवान के द्वार खुले रहना चाहिए। अभिषेक का जल स्वयं कुआं से लेकर आए। धार्मिक क्रियाओं को भले ही कम करों लेकिन व्यवस्थित करें।न्याय का अपार भंडार आचार्य समंतभद्र महाराज थे। उन्हें औषधि का भी बहुत ज्ञान था। आप लोगों को तृष्णा की खाई है। उन्हें जिनेंद्र भगवान और अपने गुरु पर बहुत भरोसा है। आपके यहां धर्म प्रभावना बहुत अधिक है, लेकिन श्रद्धान में कमी आई है।
उत्साह रखें ,लेकिन उतावलन नहीं करें। सामने वाले के दुःख दूर करने की भगवान से भावना भाएं। किसी को दुनिया से उठाने का भाव नहीं करें,यह भाव लाने से आपको दोष लगेगा। पहले समाज की पंचायत लगती थी। बहुत उच्च कोटि के विद्वान थे समंतभद्र महाराज। संवाद भी कम से कम दो व्यक्तियों के बीच। भक्ति में बहुत शक्ति हैं।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने
कहीं ।
आपने कहा कि आचार्य सिद्धसेन महाराज
ने भगवान की स्तुति की।बसंत लह छंद।अपनी अंदर की परिणति क्या है, इस पर ध्यान देना चाहिए। देवता भी दिव्य घोष से भगवान की भक्ति करने आते हैं। आपमें भी भगवान बनने, सम्यक दृष्टि बनने की शक्ति है ।अपनी छह अणु व्रतों का पालन नहीं करने वाले पशु के समान है। मुनिश्री ने कहा सम्यक दृष्टि बनने की व्यवस्था है, तो मिथ्यात्व क्यों पालते हो। पिछले जन्म में अच्छे कर्म किए थे तो मनुष्य गति के साथ जैन कुल मिला। भगवान के चरणों में पूजा -अर्चना- भक्ति करने से शांति मिलती है।
अपने पुण्य को इतना बढ़ाओ की नवाचार्य समय सागर महाराज के चरण इस आष्टा की पावन धरा पर पढ़ें। भगवान की आराधना गुरु के वचन सुनने के लिए मंदिर में आते हैं, अपना लक्ष्य प्राप्त करें। विदित रहे कि किला मंदिर पर मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज, मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज, मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर महाराज चातुर्मास हेतु विराजित हैं।