आष्टा।जब हम लोगो की दीक्षा हुई तो पांचों पापों का हम लोगों पर आरोहण हुआ ,हमने पांच महाव्रत धारण कर लिए। साधु के मूलगुणों में अट्ठाइस मूलगुणों का एक पिंड तैयार होता है,
इस व्रतों को पालन करने के लिए उपकरण याने हमारे रत्नात्रय के निकट जो हमारे रहता है वह पिच्छी है।मोक्ष मार्ग में बडने वाले सहयोगी उपकरण में एक पिच्छिका आती है।
अगर बुंदेलखंड और मध्य प्रदेश में आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज नहीं आतें तो क्या होता। देश में इतने दिगंबर साधु संत नजर नहीं आते।आचार्य विद्यासागर महाराज एवं मुनि गणों ने आष्टा को पहचान दी है।
अहसास होता है कि गुरुवर आस-पास ही है। मात्र पिच्छिका परिवर्तन नहीं संयम आदि का है। साधु और श्रावक से धर्म का रथ चलता रहे।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर संयमोपकरण पिच्छिका परिवर्तन समारोह को संबोधित करते हुए मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहीं। समाज के अनेक त्यागी- व्रतियों ने चारों मुनिराज निष्पक्ष सागर महाराज,निष्प्रह सागर महाराज,निष्कंप सागर महाराज एवं निष्काम सागर महाराज को पिच्छिका सौंपी।
मुनिश्री निष्प्रह सागर महाराज ने कहा पांच पाप त्याग दिए थे कपड़े त्यागते ही। साधु के पांच गुणों के अलावा 28 मूलगुणों को धारण करते हैं दिगंबर मुनि। व्यवहार मोक्ष मार्ग में पिच्छिका और कमंडल उपकरण आवश्यक है। मयूर पिच्छिका जीवों की रक्षा हेतु अहिंसा महाधर्म का पालन करते हैं।
आचार्य भगवंत ने अंतिम समय तक पिच्छी का उपयोग किया।अहिंसा महाव्रत का पालन करें।अप्रमद मुनिराज बनों। शास्त्र भी उपकरण है।इस नग्न स्वरुप शरीर से संयम का पालन करते हैं।मोक्ष का द्वार विनय है।यह भव मनोरंजन में निकल जाएगा,इस लिए धर्म को समझें।आष्टा नगरी में ऐसी ही धर्म प्रभावना होती रहना चाहिए।
निष्काम सागर महाराज ने आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज की बहुत वैय्यावृत्ति की। निष्पक्ष सागर महाराज एवं निष्कंप सागर महाराज ने भी की। हिंदुस्तान के प्रति समर्पण सभी में देखा।हम सभी हिंदुस्तानी हैं,जैन लोग बहुत है लेकिन जनगणना में सरनेम लिखा देते हैं।
जैन कालम पर ध्यान देकर उसमें जैन लिखें। मुनिश्री ने कहा विश्व कहीं जगह न मिले उन्हें भारत शरण देता है। भारत अहिंसा प्रिय देश है,आवश्यकता पड़ने पर ही शस्त्र उठाते है।विष्णु कुमार मुनिराज का उल्लेख किया।
गुना के रहने वाले निष्कंप सागर महाराज है। भाग्योदय तीर्थ को उन्होंने अपना आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त किया। आचार्य भगवंत ने आपकी सेवा को स्वीकार कर मुनि दीक्षा हम सभी के साथ दी।
निष्पक्ष सागर महाराज, निष्प्रह सागर महाराज,निष्कंप सागर महाराज एवं निष्काम सागर महाराज को लाभार्थियों ने नई पिच्छिका सौंपी।निष्कंप सागर महाराज की पुरानी पिच्छी मुकेश -मौना जैन मावा को मिली।निष्काम सागर महाराज की पुरानी पिच्छिका अनुराग – बरखा नारे व सचिन – रीना को मिली।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा कर्जदार नोट, नेता वोट और दिगंबर साधु खोट लेकर संयम का उपकरण देते है। दुनिया में सब-कुछ प्राप्त करना सरल है, जिनेंद्र मुद्रा प्राप्त करना कठिन है।चतुर्थ काल में बहुत चमत्कार मुनियों की तपस्या से होते थे,पंचम काल में नहीं।
आचार्य श्री ने कहा पंचम काल का अतिशय युवा पीढ़ी दिगंबरत्व धारण कर रहे हैं।दिगंबर साधु में कोई विकार नहीं होता है। पिच्छी दिगंबर साधु की पहचान है। जिनवाणी के अनुसार चलने का पिच्छी परिवर्तन है
।रत्नात्रय दुर्लभ है। निष्प्रह सागर महाराज ने कहा मोक्ष मार्ग अकेले का होता है। हमेशा गुरु आज्ञा का पालन किया। बाहुबली की संज्ञा मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज को
आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज की वैय्यावृत्ति में दी थी। संघ और साधुओं की वैय्यावृत्ति मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने की।चित्र अनावरण कर दीप प्रज्जवलित किया।
आचार्य विद्यासागर पाठशाला की बालिकाओं द्वारा स्वागत नृत्य ,मंगलगान किया। अजनास के मुनिश्री दुर्लभ सागर महाराज एवं अगर्भ सागर महाराज के सांसारिक आदि का बहुमान -सम्मान समाज ने किया। दो प्रतिमाएं लेने वाले दम्पत्तियों का स्वागत- सम्मान किया।
पत्रकारों, प्रबुद्ध जनों का स्वागत व सम्मान किया। आचार्य भगवंत की पूजा का अर्ध्य समाज के विभिन्न मंडलों आदि ने किया।इस अवसर पर काफी संख्या में समाज जन उपस्थित थे।
पिच्छिका परिवर्तन कार्यक्रम में विधायक श्री गोपाल सिंह इंजीनियर,नगर पालिका अध्यक्ष प्रतिनिधि श्री राय सिंह मेवाड़ा, पूर्व नगरपालिका अध्यक्ष द्वय श्री कैलाश परमार,डॉक्टर मीना विनीत सिंगी ने भी मुनि श्री के समक्ष श्रीफल भेंट कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया ।
समाज की ओर से इन जनप्रतिनिधियों का भी सम्मान किया गया।