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आष्टा। अच्छे किये पुण्यों के कारण आज हमें ये अनमोल दुर्लभ मनुष्य जीवन प्राप्त हुआ है,इस दुर्लभ मनुष्य जीवन के लिए देवता भी तरसते हैं । महापुरुषों के प्रेरणास्पद जीवन से शिक्षा लेते हुए हमें अपने जन्म को सार्थक करना है ।
पुण्यशाली मां की कोख से भव्य जीवों का जन्म होता है । तीर्थंकर प्रकृति का बन्ध अनेक जन्मों के संचित पुण्य से ही सम्भव होता है ।

मनुष्य जन्म ले कर मानवता को अपनाना ही होगा तभी हम आत्मा का कल्याण करके जन्म मरण के चक्र से मुक्ति पा सकते हैं।
जन्म लेकर पृथ्वी पर भार न बने बल्कि आभारी बन के अपनी आत्मा का कल्याण करें मुनि श्री अजित सागर जी महाराज ने ग्राम मैना में चल रहे पंच कल्याणक महोत्सव में आज भगवान के जन्मकल्याणक दिवस पर अपने प्रवचन में यह बात कही ।
मुनि श्री ने कहा कि तीर्थंकर बालक के जन्मते ही सम्पूर्ण परिवेश में दिव्यता और खुशहाली छा जाती है ।


हर्ष और समृद्धि का वातावरण बन जाता है । भगवान के अभिषेक से अनेक जन्मों के पाप नष्ट  हो जाते हैं ।
हमे लोक व्यवहार में बोल चाल रहन सहन खान पान की मर्यादा और शुचिता का ध्यान रखते हुए मन और आत्मा की पवित्रता के लिए व्रत ,संयम ,नियम और त्याग को भी अपनाना चाहिए ।


दान शीलता ,करुणा,  क्षमा और सेवा भी सफल जीवन के लिए आवश्यक है ।
इस अवसर पर एलक विवेकानंद सागरजी ने  पंच कल्याणक की महत्ता और दुर्लभ  मानव जन्म को सफल बनाने के सूत्र बताए ।

जन्म कल्याणक विशेष:-

मैना स्थित अयोध्या नगरी में भगवान के पंच कल्याणक की धार्मिक क्रियाएं  विधि विधान से जारी हैं। श्रावकों के अपार उत्साह और पवित्र वातावरण में आज तीर्थंकर भगवान का जन्म कल्याणक मनाया गया । 
मुनि संघ के पावन सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य विनय भैया के निर्देशानुसार धार्मिक कार्यक्रम  सम्पन्न किए गए ।

जन्म क्रियाओं की धार्मिक और लौकिक रस्मों के साथ ही प्रातःकाल में  नित्य नियम पूजन , शांति धारा और विश्व शांति की कामना लिए अर्घ्य चढ़ाए गए । भगवान के जन्म के साथ ही हर्ष के वातावरण में  मंगल ध्वनि , देव दुंदुभि और गगन भेदी जयकारों के बीच भक्तिमय माहौल में समूची अयोध्या नगरी झूम उठी । जन्म पश्चात सौधर्म इंद्र – इंद्राणी बालक तीर्थंकर स्वरूप प्रतिमा को  ऐरावत हाथी पर सवार हो  अयोध्या नगरी की परिक्रमा पर निकले । 


चल समारोह के रूप में निकली शोभायात्रा में स्थानीय ग्रामवासियों सहित जैन जैनेतर श्रद्धालु शामिल हुए ।
गाजे- बाजे के साथ ऐरावत पर सवार सौधर्म इंद्र ,  रथ पर आसीन  सानत कुमार इंद्र , माहेन्द्र , इशानेन्द्र और इंद्राणीया भी भक्ति के साथ परिक्रमा के लिए निकले ।
श्रद्धालुओं के नृत्य और जयकारो से नयनाभिराम दृश्य उपस्थित हो गया था ।


अनेक स्थानों पुष्प वर्षा कर चल समारोह का स्वागत किया गया । बाद में सौधर्म इंद्र, भगवान को सुमेरु पर्वत पर ले गए जहां मंत्रोच्चार के साथ 1008 कलशों से भगवान का अभिषेक किया गया । कार्यक्रम में प्रदेश भर से आये जैन श्रावक और आष्टा , शुजालपुर , अकोदिया कालापीपल , तिलावद आदि के श्रद्दालु भी शामिल हुए । महोत्सव परिसर में शाम को गुरु भक्ति के बाद मंगल आरती और शास्त्र प्रवचन,रात्रि में तीर्थंकर बालक की पालना झूलन एवं बाल  क्रीड़ाओं का मंचन, धार्मिक सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किये गए।

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