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आष्टा । अमर शहीद भगतसिंह की 28 सितम्बर को जयंती थी,जिसे आष्टा के शहीद भगतसिंह शासकीय कॉलेज का परिवार जयंती मनाना भूल गया था.! जब यह खबर हम तक पहुची तब रात्रि में इसको लेकर आष्टा हैडलाइन ने एक खबर फ्लैश की। खबर का बड़ा असर ये हुआ कि आज कॉलेज परिवार ने भूल कहो या गलती उसको सुधार करते हुए,आज एक दिन बाद ही सही लेकिन जयंती माना कर अमर शहीद भगतसिंह जी को सभी ने याद कर पुष्पांजलि अर्पित की।

कॉलेज की ओर से जारी विज्ञप्ति अनुसार आज दिनांक 29.09.2023 को भगतसिंह शासकीय स्नातक महाविद्यालय आष्टा में शहीद भगतसिंह जी की जयंती मनाई गई। इस अवसर पर प्रभारी प्राचार्य डाॅ. पुष्पलता मिश्रा ने कहा कि भगतसिंह भारत के एक महान स्वतंत्रता सैनानी एवं क्रांतिकारी थे। उनका जन्म एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। 1919 में हुए जलियावाला हत्याकांड ने भगतसिंह की सोंच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर में अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भगतसिंह ने भारत की आजादी के लिये नौजवान भारत सभा की स्थापना की। चैरी चैरा हत्याकाण्ड के बाद भगतसिंह बहुत निराश हुये तथा उन्होने यह निष्कर्ष निकाला कि सशस्त्र क्रांति स्वतंत्रता दिलाने का एक मात्र रास्ता है।

1929 में केन्द्रीय एसेम्बली में बम फेकने के बाद उन्होने इंकलाब जिन्दाबाद का नारा लगाया था तथा वहां से भागने की जगह अपनी गिरफ्तारी देना उचित समझा। बम फेकने के अपराध को सिद्ध हो जाने के बाद भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु को फाँसी की सजा सुनाई गई। फाँसी पर जाते समय भी वे तीनो मेरा रंग दे बसंती चोला गीत गा रहे थे। इस अवसर डाॅ. दीपेश पाठक ने भी अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि मात्र 23 साल की उम्र में फाँसी पर झूलने वाला यह भारत माता का सपूत था।

हम अपने आपको को इसलिए गौरवान्वित महसूस करते है कि हमारे महाविद्यालय का नाम इस महान क्रांतिकारी के नाम पर रखा गया है। उन्होने कहा कि राष्ट्रधर्म सबसे बड़ा है यदि राष्ट्र जिन्दा रहेगा तो सभी धर्म सुरक्षित रहेंगे तथा हम भी सुरक्षित रहेंगे।

एम.ए. राजनीति विज्ञान के प्रथम सेमेस्टर के छात्र रितेश अंगोरिया ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि भगतसिंह को केवल अपने राष्ट्र से प्रेम था वह कहते थे कि इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज्बातों से अगर मैं इश्क भी लिखना चाहूँ तो इंकलाब लिख जाता है। इस अवसर पर महाविद्यालय सभी प्राध्यापक, कार्यालयीन स्टाॅफ एवं अनेक विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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