आष्टा। ‘‘वासुदेव कुटुम्बकम’’ वेदों में उल्लेखित एक ऐसा वाक्य है जिसे वर्षो पूर्व विदेशों में आयोजित सर्वधर्म सम्मेलन में पूज्य विवेकानंदजी ने विश्व को बताकर सनातन हिन्दू धर्म का वास्तविक स्वरूप प्रस्तुत कर समूचे विश्व में प्रशंसा अर्जित की थी। सनातन हिन्दू धर्म बहुत ही उदार और विशाल हृदय वाला चिंतन अपने में समेटे हुए है। इस धर्म की भावना के अनुरूप अंचल आष्टा है जो अत्यंत आस्थावान नागरिकों की उदार भावनाओं के कारण मां पार्वती के उद्गम के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इस आशय के विचार आचार्य महामंडलेश्वर अनंत श्री विभूषित स्वामी अवधेशानंद गिरिजी महाराज ने राजकीय अतिथि के रूप में भोपाल प्रवास के दौरान व्यक्त किए।
पूज्य स्वामीजी ने आगे कहा कि वर्ष 1993 में जब साधारण फक्कड़ साधु के रूप में प्रथम बार श्रीमानस सम्मेलन आष्टा में आया था तब मेरे पास न तो कोई धार्मिक पद था न कोई उपाधि, पर जब से लेकर आज तक आष्टा का निश्चल स्नेह मुझे मिलता रहा है। मैं अपनी जन्मभूमि के समान ही आष्टावासियों का सम्मान करता हूं। आष्टा में समूचा जैन धर्म जो उदारता के साथ कार्य करता है उसी के कारण आष्टा में जैन धर्म अनुयायी सर्वोच्च प्रतिष्ठा प्राप्त धर्म है। दिगंबर जैन आचार्य विद्यासागर जी महाराज साहब तथा श्वेतांबर जैन आचार्य महाप्रज्ञ महाराज साहब हम सबके वंदनीय है। आष्टा के प्रभुप्रेमी संघ के संयोजक कैलाश परमार, प्रभुप्रेमी संघ महासचिव प्रदीप जैन प्रगति, दिगंबर जैन समाज अध्यक्ष यतेन्द्र जैन भूरू, वरिष्ठ समाजसेवी संजय जैन किला, वरिष्ठ एडव्होकेट वीरेन्द्रसिंह परमार, पार्वतीधाम गौशाला समिति अध्यक्ष नरेन्द्र कुशवाह, युवा इंजीनियर शुभम शर्मा, युवा समाजसेवी मनमोहन परमार, कुशवाह समाज की जिला महिला अध्यक्ष गीता कुशवाह, वरिष्ठ समाजसेविका श्रीमती मीता जैन एडव्होकेट, श्रीमती उमा परमार ने आज भोपाल में स्वामी जी का स्वागत किया तथा स्वामी जी के आशीष लिए।
इसी भेंट में स्वामी जी ने अपने आष्टा के संबंध में मार्मिक प्रवचन देते हुए आष्टा की आस्था को अतुलनीय बताया यहां की माटी को चन्दन के समकक्ष बताया। पूज्य स्वामी जी के शब्दों में अपने सन्यास के आरंभिक दिनों में एक फक्कड़ साधु के रूप में मैंने कई बार यहां के नागरिकों की सरलता और सहज भक्ति को निकट से देखा है। पूज्य स्वामी जी ने कहा कि संत वाणी से किसी भी व्यक्ति, वर्ग अथवा किसी समुदाय की भावनाएं आहत नही होना चाहिए। उन्होंने अपने वक्तव्यों तथा टिप्पणियों में इस बात को किसी व्रत की तरह पालन करने की सलाह दी।