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आष्टा। मोक्ष मार्ग पर चलना आसान नहीं होता है,वही कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती है। गुरु हमे अंधकार से उजाले में लाते हैं, गुरु का हर कदम पर साथ चाहिए। जिसके जीवन में गुरु नहीं ,उसका जीवन शुरू नहीं। धर्म कोई मनोरंजन का साधन नहीं है उक्त अमृत वाणी महावीर भवन स्थानक में विराजित जिनशासन गौरव अध्यात्म योगी आचार्य प्रवर पूज्य गुरुदेव उमेश मुनि महाराज साहब,बुद्ध पुत्र प्रवर्तकदेव श्री जिनेंद्र मुनि जी महाराज साहब के शिष्य श्री संयत मुनि महाराज साहब ने गुरु पूर्णिमा के
पावन पर्व पर आयोजित धर्म सभा को संबोधित करते हुए कहे।


“ज्ञान प्राप्ति के लिए सदैव तत्पर रहे”
पूज्य मुनि श्री संयत मुनि जी ने कहां की श्रावक श्राविकाओं को हमेशा ज्ञान प्राप्ति के लिए तत्पर रहना चाहिए। जिन बातों को भूलना चाहिए उन्हें तो जिंदगी भर याद रखते हैं और जिन्हें याद करना है, वहां उन्हें याद नहीं रहने की बात कहते हैं । गुरु का बहुत उपकार है ।अगर हम अपने शरीर की चमड़ी उतार कर उसकी जूती बनाकर भी गुरु को पहना दे तो भी उनका उपकार नहीं चुका सकते। गुरु ज्ञान के भंडार होते हैं । सद्गुरु का अगर दामन थाम लोगे तो जीवन संवर जाएगा और गुरु का साथ छोड़ा तो आपका क्या हश्र होगा समझ सकते हो। महापुरुषों की जिंदगी से सीख लेवे,हम भी उन महापुरुषों की तरह कार्य कर सकते हैं ।

फाइल चित्र,धर्म सभा मे उपस्तिथ श्रावक-श्राविकाएँ


मंत्री , वैद्य ,गुरु पर अधिक जवाबदारी रहती है। अगर मंत्री राजा को गलत सलाह दे दे तो राजा का जनता में क्या विश्वास रहेगा। इसी प्रकार वैद्य अगर सही है तो वह आपकी बीमारी को नब्ज देखकर उपचार कर देंगे और गुरु अगर सही ,जवाबदार है तो वह आपका जीवन तार देंगे ।संयत मुनि ने गौतम गणधर के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गौतम को अहंकार था ,ज्ञान पर घमंड करते थे।भगवान महावीर के सामने जब वे गए तो उनका अहंकार और घमंड चूर चूर हो गया। ज्ञानी के चरण पकड़ो ।गौतम स्वामी उम्र में बड़े होने के पश्चात भी भगवान महावीर के चरण पकड़े तो वह अपने जीवन को सार्थक कर गए। हमें विनय पूर्वक जिनवाणी का रसास्वादन करना चाहिए । गुरु ने उंगली पकड़कर चलना सिखाया है ।लोगों ने अच्छी बातों को तो डिपाजीट की तरह रख दिया ,जबकि अच्छी बातों का अध्ययन करते रहना चाहिए।


मोक्ष मार्ग कभी खराब नहीं होता। उस पर चलने वाले जीव छोटे बड़े, गुणों में कम या ज्यादा हो सकते हैं। जैन धर्म में मुनि परम्परा में केश लोचन करना संयम, तप व आत्म साधना का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है। इसीलिए मोक्ष मार्ग पर चलने को सरल नहीं बताया गया है। कुछ बिरले व पुण्यशाली जीव ही होते हैं, जो इस राह को चुनते हैं।अभय मुनि जी ने आशीर्वचन के दौरान कहा कि सिद्ध दशा को प्राप्त करने का मार्ग एक ही है। बिना साधु बने सिद्धत्व की प्राप्ति असम्भव है। मोक्ष मार्ग पर चलने वाले को देखकर अपने मन में श्रद्धा व चारित्र धारण करने के भाव उत्पन्न होना ही सम्यग्दर्शन का लक्षण है। गुरुपूर्णिमा के अवसर पर आज धर्मसभा में बड़ी संख्या में श्रावक श्राविकाएँ उपस्तिथ थे।

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