आष्टा। संघ के प्रकटोत्सव समारोह में नगर की पांचो बस्तियों के स्वयंसेवको ने प्रदर्शन किया। प्रतिदिन लगने वाली शाखा में क्या-क्या होता है इसकी जानकारी दी गयी, स्वयंसेवको ने आसन, व्यायाम योग, दंडयोग, सूर्यनमस्कार, गीत, अमृतवचन, खेल ओर समता का प्रदर्शन किया।
वार्षिक उत्सव में मुख्यअतिथि रमेशचंद्र भामा, पारसमल सिंघवी नगर संघचालक, जितेंद्र खत्री जिला कार्यवाह, मंचासीन थे। वार्षिक उत्सव के अतिथियों का परिचय सहकार्यवाह मुकेश गुलवानी ने कराया। कार्यक्रम में मुख्यरूप से शिवांशु शर्मा जिला प्रचारक, जिला सह कार्यवाह- अनिल पाटीदार एवं विजेंद्र ठाकुर मुख्यरूप से उपस्थित थे।
मुख्य वक्ता ने कहा कहा कि वर्तमान समय में बिखर रहे परिवार और पुत्र/पुत्री के कर्त्तव्य, बेटियों/बहुओ के लिये सतर्कता पर संघ चिंता करता है। कुटुंब(परिवार) प्रबंधन केसा हो, परिवार में आपसी समन्वय हो, संगठित हो इन विषयों पर हमें इस प्रकार के कार्यक्रम करने की आवश्यकता है।
युवा सम्मेलन के मुख्य अतिथियों का परिचय नगर के कुटुंब प्रबोधन प्रमुख मनोहर साहू ने किया। उसके पश्चात युवा दम्पत्ति सम्मेलन हुआ जिसके अतिथि वरिष्ठ अभिभाषक रूपसिंह ठाकुर एवं मुख्यअतिथि एवं वक्ता, प्रचारक ओमप्रकाश सिसोदिया प्रांत प्रचार प्रमुख, ने कुटुंब व्यवस्था केसी हो विषय पर व्याख्यान दिया। सर्वप्रथम अतिथियों द्वारा दिप-प्रज्लवन किया उसके बाद श्रीमती सुमन सोलंकी के द्वारा गीत प्रस्तुत किया।
उपरांत अतिथि एवं वक्ता ओमप्रकाश ने कहा कि
परिवार के सदस्यों को प्रशिक्षित होना चाहिए।
कुटुंब प्रबोधन (परिवार सम्मेलन) के बिना सामाजिक एकता संभव नहीं है। परिवारों में ही ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि किसी को किसी के लिए समय नहीं है, ऐसे में समाजहित में सोचना लोगों के लिए और भी मुश्किल हो गया है। इसलिए आज सबसे बड़ी जरूरत कुटुंब प्रबोधन की है। उन्होंने कहा कि आजकल हम देखते है कि घरों में बच्चे माँ के स्थान पर मम्मी ओर पिताजी के स्थान पर पापा का उपयोग करते है जबकि माँ शब्द ह्रदय से निकलता है और मम्मी शब्द होटो से।
अपने सवा घंटे के संबोधन में उन्होंने टूटते परिवार, बिखरते समाज के प्रति गहरी चिंता जताई और सभी से आह्वान किया परिवारिक और सामाजिक रिश्ते ही हमारी पूंजी है, इसलिए इसे बचाए रखें। उन्होंने कहा कि वर्तमान में लोग बच्चों के लिए समय नहीं निकाल पा रहे हैं।
यहां तक कि ममता का अहसास भी इतना कमजोर पड़ता जा रहा है कि मां-बाप अपने छोटे-छोटे बच्चों को अपने पास नहीं सुला पाते और आधुनिकता का नाम देकर उनके लिए अलग कमरे का प्रबंध करते हैं। जिससे बच्चे माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं। ऐसे बच्चे बड़े होकर जब माता-पिता को अलग कमरे में रहने के लिए कहते हैं तो माता-पिता को दुख होता है।उन्होंने
अपील की कि बच्चों को अपनी परंपराओं और संस्कारों के बारे में बताएं। कहां बैठकर खाना है? आपसी व्यवहार कैसा हो? ये बच्चों को बताना होगा। सभी को चाहिए कि वे अपने आस पास के परिवारों से मिलन समारोह करें। उनके सुख दुख में शामिल हों।
सिसोदिया ने ये भी कहा कि हमें समय-समय पर उन लोगों को भी अपने परिवारिक सदस्यों के रूप में अपनाते हुए उनके सुख दुख में हिस्सेदार बनना चाहिए जो हमारे लिए किसी न किसी काम आते हैं। चाहे कोई हमारे लिए दूध लाता हो, हमारे घर में कपड़े धोता हो या फिर किसी अन्य काम में हमारा सहयोगी बनता हो ऐसे हर व्यक्ति का ख्याल रखना हमारा कर्तव्य है। सभी परिवारजन को परिवार प्रबोधन कि पुस्तकें भी दी गयी। कुटुंब प्रबोधन के सह प्रमुख प्रवीण धाड़ीवाल एवं विपिन बनवट ने कार्यक्रम की व्यवस्था सम्भाली।
कार्यक्रम का संचालन नगर कार्यवाह गणेश सोनी ने किया
कार्यक्रम में 250 परिवार महिलाएं, पुरूष एवम बच्चें शामिल हुए अंत मे सभी ने स्नेहभोज का आनंद लिया।