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आष्टा। श्री दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्यूषण महापर्व एवं सोलहकारण पर्व के समापन पर श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर से

स्वर्ण पालकी में भगवान की प्रतिमा विराजित कर रथ यात्रा मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज,निष्प्रह सागर महाराज, निष्काम सागर महाराज,विनंद सागर महाराज एवं ऐलक विनमित सागर महाराज के पावन सानिध्य में निकाली गई।

स्वर्ण रथ को समाज के श्रावकगण अपने हाथों से खींच कर चल रहे थे। कदम – कदम पर भगवान एवं मुनियों की आराधना की गई।

उक्त रथ यात्रा प्रगति गली, बुधवारा,गल चौराहा होते हुए मानस भवन परिसर में पहुंची। वहां भगवान की पूजा अर्चना कर अभिषेक, शांति धारा की गई।

तत्पश्चात रथयात्रा सुभाष चौक, गंज चौराहा,सिकंदर बाजार, बड़ा बाजार होते हुए किला मंदिर पर पहुंची ।

अनेक स्थानों पर विभिन्न व्यापारिक, सामाजिक संगठनों ने उक्त रथ यात्रा में शामिल समाज जनों का स्वागत व सम्मान किया। रथ यात्रा के समापन पर किला मंदिर परिसर में भगवान की पूजा-अर्चना, अभिषेक एवं शांति धारा की गई तथा

इस अवसर पर पूज्य मुनि निष्पक्ष सागर जी ने कहा कि जैन शासन में क्षमा को भी धर्म के रूप में स्वीकार किया गया है यह महावीर का धर्म क्षमा से ही शुरू होता है।क्षमा वान ही बनते भगवान ।

धर्म की प्रभावना का यह महान उत्सव आप सभी लोगों ने बहुत ही उत्साह से मनाया है ।हमारा इतिहास तो तृतीय काल से है ,जब भगवान ऋषभदेव ने जन्म लिया था ।

इस किले में भगवान पार्श्वनाथ के दोनों ओर अतिशयकारी एक नहीं दो -दो भगवान आदिनाथ की प्रतिमा पार्वती मैय्या ने भू -गर्भ से निकाल कर दी है। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा आज इस बात का संकल्प ले कि आदिनाथ भगवान का जन्म कल्याणक पर्व भी पूरे धूमधाम से मनाया जाएगा ।

संस्कृति से जन जन लाभान्वित हो, ऐसी संस्कृति को जिंदा रखना हमारा कर्तव्य है ।आज मुझे बहुत आनंद की अनुभूति हुई कि इतने बड़े भगवान की प्रभावना में सम्मिलित हुए ।

जिन शासन की प्रभावना में गुरु का उपकार नही भूल पाएंगे ,जो उन्होंने हमें इस आस्था वान नगरी में हमें भेजा है ।आज नगरी में चारों ओर से जय घोष की आवाज आ रही थी यह सब प्रभावना अंग का ही हिस्सा है।

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