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आष्टा । भक्त और भगवान के बीच भक्ति वह शक्ति है जो सेतु का कार्य करती है । भक्ति में वह शक्ति होती है जो मुक्ति को दिला देती है । जो व्यक्ति भक्ति से भटका, समझो वह दर-दर का हो जाता है । जीवन में भक्ति रूपी चेन जिसके गले में है वह इधर-उधर नहीं बल्कि चैन से जीता है। जिसके जीवन में परमात्मा के प्रति भक्ति नहीं इस युग में उसकी कोई हस्ती नहीं है। उक्त उदगार श्रमनसंघीय आचार्य पूज्य डॉक्टर श्री शिवमुनि जी के जन्मोत्सव के अवसर पर महावीर भवन शुजालपुर में चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य साध्वी श्री कीर्ति सुधा जी महाराज साहब ने उपस्थित श्रावक श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहें ।

डॉक्टर शिवमुनि जी के जन्मोत्सव के अवसर पर आष्टा श्री वर्धमान स्थानकवासी श्रावक संघ के श्रावक श्राविकाएं संघपति श्री लाभमल आनन्द कुमार रांका परिवार के नेतृत्व में बड़ी संख्या में गुरणी मैय्या के दर्शन हेतु शुजालपुर पहुंचे थे । प्रवचन के दौरान पूज्य महाराजश्री कीर्ति सुधा जी ने कहा कि यह मानव जीवन बडी ही पुण्यवानी के बाद मिला है । हम प्रेम तो सबसे करते है लेकिन ये प्रेम सांसारिक है। प्रेम ओर भक्ति हो तो मीरा जैसी,द्रोपदी जैसी,चंदना जैसी,राजुल जैसी । भक्ति जब भोजन में मिल जाती है तो वो प्रसाद बन जाता है।

भक्ताम्बर स्त्रोत के रचयिता मणतुंगाचार्य जी की भक्ति ऐसी ही थी की वे भक्ताम्बर का एक एक स्त्रोत रचते जा रहे थे ओर उनके एक एक ताले टूटते जा रहे थे। उन्होंने कुल 48 स्त्रोतों की रचना की ओर 48 ही ताले टूट गये। जब भी साधन करे तो पूरी भक्ति से करे,जिंदगी सफल हो जायेगी।

श्रमणसंघीय चतुर्थ पटधर आचार्य डॉ श्री शिवमुनि जी के जन्मदिन पर साध्वी श्री कीर्ति सुधाजी ने उनके जीवन पर प्रकाश डालते हुए बताया की उन्होंने 30 वर्ष की यौवन अवस्था मे सभी सुखों को ठोकर मार कर दीक्षा ग्रहण की थ। उन्होंने जैन धर्म पर पीएचडी की, डिलीट की उपाधि पाई। वे ध्यान और साधना में रमे है । 1986 से तप,ध्यान साधना में रमे है। 38 साल से एकांतर की तपस्या कर रहे है, उनके चेहरे पर तप से चमक,दमक दिखाई देती है।

श्रमणसंघ के पुण्य है जो ऐसे आचार्य हमे मिले है। उन्होंने जैन धर्म के आगम का हिंदी और अंग्रेजी में अनुवाद कर लिखे है। उनका सबसे ज्यादा जोर ध्यान शिविर लगाने पर होता है।
धर्मसभा को संबोधित करते हुए पूज्य साध्वी श्री आराधना श्रीजी ने कहा की आशा और मनमानी दो ऐसे कांटे है जो हमने स्वयं ने अपने मे चूबा कर रखे है और व्यक्ति परमात्मा की आज्ञा में ना चलते हुए इन कांटो पर चलते है ओर दुखी होते है। आज व्यक्ति की शक्ति कमजोर हो जाती है,इंद्रियां कमजोर हो जाती है,बुढ़ापा आ जाता है,नेत्र ज्योति कम हो जाती है लेकिन उसकी अपेक्षाएं उम्मीदें हमेशा बनी रहती है यही उसके दुखी होने का कारण है।

महाराज साहब ने कहा अपेक्षाएं सभी बीमारियों की जड़ है। हैप्पी रहो कोई बीमारी नही होगी ।
आप किसी की अपेक्षा ओर उपेक्षा मत करो। अगर ये बात जीवन मे उतार ली तो आपका भव सुधर जायेगा ।
इस अवसर पर श्रावक सुशील संचेती ने अपने विचार व्यक्त किये वही आष्टा के चांदमल सुरणा,श्रीमती साधना रांका ने गीतिका के माध्यम से अपने भाव व्यक्त किये। श्रावक राकेश सोनी ने बताया की
महाराज साहब के दर्शन एवं प्रवचन का लाभ लेने श्रावक संघ के करीब 30 से 35 सदस्य आष्टा से शुजालपुर पहुचे थे।

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