आष्टा। लौकिक शिक्षा बहुत ले ली, लेकिन मूल संस्कार ग्रहण नहीं किए, रटन विद्या सीखी।आज के विद्यालय कितने भारतीय संस्कार दे रहे हैं,यह किसी से छुपा नहीं है।आने वाला भविष्य, समाज को अच्छे संस्कार देकर गुरु की संगति कराइए, जिनालय ले जाइए।सभी का अपना अपना दृष्टिकोण होता है।संस्कार, संस्कृति का ज्ञान नहीं तो कलेक्टर, डॉक्टर, इंजीनियर आदि की डिग्री किस काम की आपने लाइफ स्टाइल तो अच्छी बना ली, विलासिता पूर्ण जिंदगी जी रहे हैं, लेकिन आत्म कल्याण नहीं कर रहे हैं।
आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज जैनों के ही नहीं जन-जन के थे और भगवान महावीर स्वामी जैनियों की बपौती नहीं है।हर प्राणी को आत्म कल्याण के लिए स्थान दिया है, कर्म से जैन बनों। जैनियों की इन तीनों से पहचान रहती है,पानी छानकर पीना,देव दर्शन और रात्रि भोजन त्याग ।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि प्राचीन अतिशयकारी दो बड़े बाबा की प्रतिमाएं आपके पास किला मंदिर जी में विराजित है।
भगवान के दरबार में नित्य ही णमोकार महामंत्र का जाप करें।आप संस्कृति से कितने परिचित और कितने डूबे हुए हो,इस पर ध्यान देना होगा। देश में आज पाश्चात्य सभ्यता की नकल, अमीरों की नकल कर रहे हैं।यह दसलक्षण पर्यूषण पर्व धरातल में आने का संदेश देकर गए।कुछ तो परिवर्तन हो, चातुर्मास में। प्रारंभिक रूप में जीवन जीएं। चारित्रिक रूप से बहुत गिरावट आ रही है। आपने कहा गुरु के उपकार से जिनशासन की इतनी बड़ी प्रभावना में हमें शामिल होने का पावन अवसर मिला।अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बनो। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा चिंतन करने से समस्या का हल निकलता है। परिवर्तन समय के अनुसार हो रहे हैं तो निर्णय भी लिया करें। जो जीव उत्थान के प्लेटफार्म को छोड़कर कहा जाकर गिर रहा है।माता-पिता भी बच्चों के लिए जिम्मेदार है।
जितनी स्वतंत्रता आज बच्चों को मिल रही है वह स्वतंत्रता हमारे समय नहीं थी। संस्कार और संस्कृति पर ध्यान देना होगा। संस्कार और संस्कृति में तेजी से हरास हो रहा है। मैं बहुत चिंतित हूं।समय रहते अलर्ट होना जरूरी है।एक -एक दिन करके जीवन जा रहा है। संस्कृति के उन्नयन और उत्थान में हम कितना समय दे सकते हैं।हम सभी के सामने बहुत सारी विसंगतियां हैं,विकार है।
हम अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करें। धरातल पर कोई ज्ञान नहीं सिर्फ डिग्री। बहुत पहले एक शौध में भारत में 80 प्रतिशत इंजीनियर नकारात्मक बताएं गए थे । आज सिर्फ डिग्री ले रहे हैं, स्वतंत्रता कब परतंत्रता में बदल जाएगी पता ही नहीं चलेगा।आप अपने बच्चों को खूब पढ़ाए,लेकिन संस्कार भी अवश्य देवें।लालचंद नागड़ा जैन खंडवा निवासी ने जेल में रहकर अपने संस्कार और संस्कृति से समझोता नहीं किया। अंग्रेजों के शासन में अपने धर्म संस्कृति और संस्कार के लिए अडे रहे।
“पूज्य मुनिश्री का तीन उपवास पश्चात पारणा हुआ”
धन्य है गुरुवर मुनिश्री 108 निष्कंप सागर महाराज और धन्य है गुरुवर का तप एवं त्याग तथा धन्य है गुरुवर की चर्या , जिन्होंने अनुकूल मौसम नहीं होने के पश्चात भी पर्यूषण महापर्व एवं सोलहकारण पर्व की अंतिम बैला में तीन उपवास की कठिन तपस्या के साथ 44 घंटे एक ही मुद्रा में ध्यान में लीन रहते हुए आराधना की। शुक्रवार 20 सितंबर को सुबह आपका पारणा प्रकाशचंद तनीष,मौनिष जैन गवाखेड़ा वाले के यहां निर्विघ्न हुआ। ऐसे तपस्वी मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज के तप को बारंबार नमन एवं वंदन।