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आष्टा। धर्म दया से विशुद्ध होता है ,हमारे मन में करुणा भाव नहीं तो हमें विशुद्धि कि कभी भी प्राप्ति नहीं होगी। जैन दर्शन को देखोगे तो यह महान दर्शन है ।हमारे क्रियाकलापों से बच्चे संस्कारित होवे, वह धर्म की तरफ अभिमुख हो, ऐसे हमें कार्य करना होंगे ।हम अपनी आगामी पीढ़ी को क्या देकर जा रहे है ।आज मंदिरों में युवा वर्ग का अभाव है ,ऐसा नहीं है कि युवा वर्ग व बच्चे नहीं है। जो प्रभु दर्शन के संस्कार बच्चों को देंगे तो बच्चे कभी ग़लत मार्ग पर नहीं जाएंगे। प्रभु के दर्शन से स्वर्ग की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति होती है ।समाधि का नाम मोक्ष पुरुषार्थ है। माता पिता बच्चों के प्रथम गुरु हैं।


उक्त बातें श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर गंज में संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि निरंजन सागर महाराज ने कहीं। उन्होंने कहा कि कर्मों का क्षय  हो, हमारे दैनिक जीवन में दया के भाव उत्पन्न हो ,हमारे जीवन में दया का भाव नहीं है तो यह जीवन किस काम का है। दया का बहुत बड़ा स्थान होता है। मुलाचार्य में हमें भी रात्रि को ज्यादा हलन चलन तक मना किया है ।रात्रि में कम से कम चलें ,जैन दर्शन को देखेंगे तो यह महान दर्शन है ।इसमें शिक्षा का निषेध नहीं है भगवान आदिनाथ ने अपनी दोनों बेटियों को स्वयं शिक्षित किया था ।उन दोनों बेटियों ने शिक्षा को महत्व दिया । अपने माता-पिता का मस्तिष्क किसी के सामने नहीं झुकने दिया। मुनि श्री ने कहा कि हम भी शिक्षा बच्चों को दे रहे हैं ,लेकिन कौन सी शिक्षा दे रहे हैं ।वह संस्कार शिक्षा के साथ दे पा रहे हैं या नहीं। आप संस्कार के समय बच्चों को अपने से दूर कर देते हैं। माता-पिता का अनुशरण बच्चे करते हैं । मुनिश्री ने कहा कि संस्कार आज नहीं कल पल्लवित होंगे ।बिना मोबाइल के आजकल बच्चे भोजन नहीं करते हैं ,तो इन बच्चों को मोबाइल किसने दिया है । जब माता-पिता ही दिन भर मोबाइल चलाएंगे ,तो बच्चे कहां पीछे रहने वाले हैं ।मुनिश्री ने कहा हम क्या कर रहे हैं ,बच्चे उसे अच्छी तरह नोटिस करते हैं। वह बच्चे संस्कारित होंगे, जिन्हें आप बाल्यकाल में ही धार्मिक व अच्छे संस्कार देंगे। हम शुरुआत करेंगे, तभी हमारे क्रियाकलाप से बच्चे संस्कारित होंगे।

वे धर्म की तरफ अभिमुख हुए उसके लिए आप लोगों को पहले धर्म के पथ पर अग्रसर होना होगा। हम अपनी आगामी पीढ़ी को क्या देकर जा रहे हैं ,आप सोचे । मुनि निरंजन सागर महाराज ने कहा कि आज मंदिरों में युवा वर्ग कम नजर आता है ।देव दर्शन के संस्कार बच्चों को देवें, प्रभु के दर्शन से स्वर्ग की प्राप्ति, मोक्ष की प्राप्ति होती है। जिन भावों से मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है तो स्वर्ग की प्राप्ति तो स्वत: ही मिलेगी ।आचार्य पूज्यपाद स्वामी कहते हैं मोक्ष प्राप्ति लक्ष्य है,उसी के अनुसार कार्य करें ।आने वाली पीढ़ी को संस्कार देवें । हम धर्म से रिक्त रहेंगे तो बच्चों को कैसे संस्कारित करेंगे ।हम अपने कर्तव्यों का पालन करें ।धर्म पुरुषार्थ करें ।मुनि श्री ने कहा कि पिता अपने बच्चों की अहित से रक्षा भी करता है ।माता पिता ही बच्चे के प्रथम गुरु हैं ,वे संस्कारित करें ।थोड़ा आप धर्म के लिए प्रोत्साहित करें ।जिनेंद्र प्रभु की कृपा को समझें ।बच्चों को पता होना चाहिए कि हमारा लक्ष्य क्या है ,सही शिक्षा क्या है, उन्हें पता चलेगा ।

बच्चों को दया भाव भी सिखाए। मुनि श्री ने कहा कि हम चाहें कि हमारा बुढापा समीचीन रूप से होए तो इसके लिए अंतिम समय में बच्चा आपके कानों में णमोकार महामंत्र सुनाएं लेकिन यह णमोकार महामंत्र जब वह सुना पाएगा जब आप णमोकार मंत्र से उसे पहले संस्कारित करेंगे। हमने समाधि मरण के लिए दीक्षा ली है ,मरण सुधारने के लिए यह जैन दीक्षा ली। णमोकार मंत्र से बच्चों को संस्कारित करें ,शिक्षा ही सब कुछ नहीं, सही शिक्षा क्या है दया भाव सिखाएं ।सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र का नाम रत्ना त्रय है। मुनि श्री ने कहा कि अपनी आगामी पीढ़ी को धर्म ध्यान में लगाएं ।आप धर्म ध्यान करोगे, तभी आगामी पीढ़ी धर्म कर पाएगी।

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