आष्टा। चर्चा प्रभु के वैभव की चल रही है। छोटे –छोटे बच्चों को छोटे वस्त्र नहीं पहनाएं,जिंस, टाप, स्कार्ट आजकल सास -बहू पहन रही जबकि गरिमा पूर्ण वस्त्र पहनना चाहिए।भगवान की भक्ति भक्तों के ह्रदय को आनंदित करने वाली होती है। भगवान नहीं चाहते कि आप उनकी भक्ति करें,हम मनुष्य तो स्वार्थी हैं। भक्त की भक्ति अलग है। भक्ति के अनेक स्वरूप है। भक्ति के पीछे आपके भाव क्या है।भगवान हर परिस्थिति को सम भाव से सहन करते हैं। सभी की यात्रा स्व से स्वाह की ओर है।
सत्संग में बैठना अलग बात है और ह्रदय में सत्संग उतरना अलग बात है। आप लोग अपना और परिवार के लिए सोचते हैं और आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज सभी को देखते और ध्यान देते थे । लोगों को सुधारने के लिए दंड़,न्याय व जेल व्यवस्था रहती है। जेल में कैदियों के लिए हाथकरधा आचार्य विद्यासागर महाराज ने प्रारंभ कराएं।पाप से घृणा करों पापी से नहीं।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं। मुनिश्री ने कहा कि प्रायोगिक अहिंसा परमो धर्म क्या है यह कैदी भाईयों को आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने सिखाया। मेरी भावना एवं णमोकार महामंत्र जेल में बंदियों को रोज सुनाते थे। जिसके कारण उनमें परिवर्तन भी आया।एक कैदी ने आचार्य विद्यासागर महाराज को पत्र लिखा था।
अहिंसा व्रत से परिचित हो रहें हैं कैदी आचार्य विद्यासागर महाराज की पहल से। शरीर से दूरी है,भावों की दूरी नहीं। मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने कहा कि अंजन चोर सदसंगति के कारण निरंजन बन गया।महान महापुरुषों के गुणों का गुणगान किया और आदर्श के रूप में स्वीकार किया।राग-द्वेष से ऊपर उठने का प्रयास करें। पूजा, भक्ति, आराधना करते हैं। सामूहिक पूजा -अर्चना का अलग फल मिलता है। अपनी संस्कृति का ध्यान रखें। अनेक मंडल है, लेकिन लक्ष्य यह बनाए कि हम सामूहिक रूप से भगवान की आराधना,विधान एवं धर्म आराधना के साथ भक्ति करेंगे।
महिलाओं को अपने पहनावे पर ध्यान देना चाहिए।आज सास- बहू में अंतर ही नहीं दिख रहा और यह भी पता नहीं चलता की सास- बहू है कि मां-बेटी।जिंस,टाप – स्कार्ट पहन रही है,यह गरिमा पूर्ण वस्त्र नहीं है। अपने देश व धर्म की वैभवशाली संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे कि फूल की रक्षा कांटों से हो,सील की रक्षा सादगी से हो। छोटे वस्त्र ओछी सोच बना रहे हैं। अच्छी चीज सीखना चाहिए।
छोटे से पौधे को व्यवस्थित रखने से वह बड़ा होकर व्यवस्थित होगा।शील की रक्षा सादगी से करें।आज जो गिरावट आ रही है उसमें सुधार लाएं।आप कल का निर्माण करेंगे इस होड़ और दौड़ का का कोई अंत नहीं।जिसका चरित्र चला गया, वह जिंदगी भर के लिए चले गए।बेटी कुल वर्धिनी होती है। बेटियों को संस्कारित करना जरूरी है।
बेटी दो -दो कुलों को लेकर चलने वाली होती है। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज से शिक्षा लेवे।कुछ तो अपने दायित्वों का निर्वाहन किजिए। पाश्चात्य संस्कृति के पीछे दौड़ रहे हैं। आप लोग सुव्यवस्थित हो जाइए। विसंगति उत्पन्न हो रही है उस पर ध्यान देना चाहिए। मोबाइल के कारण आप अपने बच्चों को समय नहीं दे पा रहे हैं। किटी पार्टी,बीसी पार्टी से दूरी करें। बच्चों को रोज समय देवें। मंदिर ले जाकर भगवान का अभिषेक कराएं। तीर्थ स्थल पर लेकर जाएं।