आष्टा। भगवान के आप अनुयाई हो,आप भगवान के पीछे लगे हैं उनके जैसा बनने के लिए।क्रोध,मान, माया और लोभ यह चार कषाय मकड़ी के जाल की तरह जकड़ते है। मनुष्य पर्याय में ही सम्यकत्व धारण कर सकते हैं। पुण्य का फल मिलता है।जो व्यक्ति विभाव से स्वभाव की तरफ आते हैं।
भगवान का कितना वैभव है कि उनके पीछे सारे सुख दौड़ते हैं। अनुयाई हमेशा भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं। चर्या का पालन करते हुए भगवान हम आपके जैसे बन सकते हैं। किसी भी मंदिर की जलयात्रा निकले उसमें समाजजन को सारे काम छोड़ कर शामिल होना चाहिए। सम्यक दर्शन के आठ अंगों को समझें।
उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।
आपने कहा कि सिकंदर विश्व विजेता बनना चाहता था। अपनी 25 वर्ष की आयु में सबसे पहले अपने पिता की तलवार से हत्या की। 33 साल की आयु में सिकंदर की मौत हो गई।आठ साल के कार्यकाल में लाखों लोगों की हत्या की उसने।जब उसे मौत ने घेरा तो उसकी मां ने वैद्यराजों से कहा कि मेरे बेटे को बचा लो चाहे जितनी धन – संपत्ति ले लो
लेकिन उसे नहीं बचाया जा सका तो सिकंदर ने कहा था कि मेरा जनाजा निकले तो मेरे दोनों हाथ जनाजे में बाहर निकाल कर रखें ताकि लोगों को पता चले कि व्यक्ति खाली हाथ आता है और खाली हाथी उसे जाना है। मुनिश्री ने बताया भारत की भूमि पर से सिकंदर अपने साथ कल्याण मुनि को लेकर पैदल गए,यूनान देश की सीमा पर पहुंचे।
जीव दया का संदेश कल्याण मुनि ने मंत्री को दिए। व्यक्ति खाली हाथ आया है और खाली हाथ ही जाएगा। आपके साथ सिर्फ धर्म ही साथ जाएगा।हिंसा से रहित जैन धर्म है। गरीबों पर दया धर्म करें। आश्रय दान है ,गरीबों को कपड़े आदि देवें। हजारों बच्चों को अहिंसा धर्म का पालन आप लोगों द्वारा कराया गया।