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आष्टा। नगर के चंद्रप्रभु मंदिर व्यवस्था समिति अरिहंतपुरम के द्वारा समाज का प्रतिनिधित्व करते हुए भक्तांबर महामंडल विधान की आराधना की गई । व्यवस्था समिति के सभी पदाधिकारी अध्यक्ष धर्मेंद्र जैन अमलाह , उपाध्यक्ष सुरेश जैन, महामंत्री आशीष जैन , कोषाध्यक्ष इंदरमल जैन, प्रमोद जैन खुशबू , शैलेंद्र जैन शिल्पा, कोमल जैन, राजेंद्र जैन अंगोत्री आदि ने चित्र अनावरण एवं दीप प्रज्वलन किया। तथा समाज के सभी वरिष्ठ जन एवं व्रती जनों ने मुनिश्री विनंद सागर जी महाराज के करकमलों में शास्त्र भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मुनिश्री ने कहा कि श्री भक्तांबर स्तोत्र बसंत तिलका छंद में लिखा गया है।

इसके 44 वे काव्य में अमृतश्रवी रिद्धि के धारी मुनिराज का ध्यान करते है, ऐसे मुनिराज जिनके अंजुली में विष भी अमृत हो जाया करता है ।मुनिराज चंदन की तरह होते है जिनपर विष का ,विकारों का प्रभाव नहीं होता है। णमोकर महामंत्र का जाप करने से कभी अकाल मृत्यु नहीं होती है शुभ में विचरण करने से निरंतर अकाम निर्जरा होती है ऐसे जीव को कोई भी से चोट पहुंचाने में सक्षम नहीं होता है जिनेंद्र भगवान एवम गुरु पर दृढ़ श्रद्धा से मगरमच्छ से भरे समुद्र एवं बड़वानल की अग्नि जहां धधक रही हो वहां से भी वह जीव सहजता से समुद्र को पार कर लेता है। 45 में काव्य का मुनिश्री विनंद सागर जी महाराज ने भावार्थ बताया कि यह छंद असाध्य रोग विनाशक है।

हमारा शरीर रोगों का घर है और रोगों की उत्पत्ति का केंद्र उदर हुआ करता है आज के समय में बाहर का खाना बहुत पसंद किया जाता है घर के शुद्ध खाने की उपेक्षा कर बाहर फास्ट फूड ,जंक फूड ,होटल आदि का खाना पसंद करते हैं और बाहर का भोजन किस प्रकार से बना है इसकी जानकारी हमें नहीं होती और हम उस भोजन को ग्रहण कर लेते हैं ।वह किस विधि से बनाया है कब बना है कैसा बना है और कहां बना है इनकी शुद्धि अशुद्धि का प्रभाव भोजन के ग्रहण करने वाले पर दिखाई देता है।इससे होने वाले कई प्रकार के रोगों के कारण जीव कष्ट पाता है इन सब कष्ट के और असाध्य रोगों के निवारण के लिए हमें इस 45 वे छंद की आराधना करनी चाहिए ।

जापान अमेरिका एवम अन्य देशों में इस काव्य के सुनने मात्र से कैंसर रोगी तक ठीक हो रहे हैं और कहीं असाध्य रोगों की हीलिंग इस छंद के पढ़ने सुनने मात्र से होती है। यहां भक्तांबर स्त्रोत का प्रत्येक अक्षर एक बीजाक्षर है एवं प्रत्येक काव्य एक मंत्र के अनुरूप है इसका स्मरण करने मात्र से ही कार्य सिद्धि को प्राप्त हो जाते हैं‌।45 वे काव्य का भावार्थ बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि हे भगवान जिनके जलोदर रोग के होने पर जिंदा रहने की आशा नहीं रह जाती है वह रोगी भी आपके चरणों की रज से कामदेव सा सुंदर हो जाता है

“मन में जब तक राग -द्वेष है कल्याण संभव नहीं —
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज”

आपका विभाव कुछ नहीं बिगाड़ सकता है।आप विभाव को दूर कर सकते हैं। संसार समुद्र मगरमच्छों से भरा पड़ा है। इससे पार हो सकतें हैं,कौन साहसी है जो इस समुद्र को पार कर सकता है।आठ कर्म आपको संसार में रोके हुए हैं। प्रभु का स्मरण और प्रभु भक्ति से संसार पार हो जाएंगे।विकार रुपी मगरमच्छ को पुरुषार्थ से दूर करें।मन में राग- द्वेष जब तक है,आपका कल्याण नहीं होगा। भगवान के चरणों में जाओगे तो राग -द्वेष दूर हो जाएंगे। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित

पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं । आपने कहा कि अश्रद्धान के कारण आपकी नैय्या डूब जाती है। सभी को अपने कर्म है उनका फल तो भोगना पड़ेगा। आत्मा में उपादान हो जाएं तो आप दूसरे को दोष नहीं दोगे।बाहर का डूबना और तैरना आता है लेकिन अंदर का डूबना जरूरी है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा अगर संसार रूपी नैय्या पार करना है तो प्रभु की शरण में जाना चाहिए।

किसी के प्रति गलत भाव है उसे दूर कर अच्छे भाव लाकर। उत्तम क्षमा करें अपनी गलतियों को स्वीकार करे।
कि पार्श्वनाथ भगवान की आराधना एवं स्मरण कल्याण मंत्र स्तोत्र पाठ के माध्यम से कर रहे हैं। अंतरंग के परिणामों को संभालें। किसी के पास जाने पर अंदर के परिणाम निर्मल हो जाएं तो समझें आप अच्छे मार्ग पर अग्रसर हो रहें हैं। वैभव भी दिखाना पड़ता है। भगवान को यथा स्थान देवें,पूजन का फल निर्वाण है। राजा श्रेणिक और चेलना का वृतांत मुनिश्री ने सुनाया।

शब्द हितकारी और अहितकारी होता है। मुनि राज ने राजा श्रेणिक से कहा जो आंखों से देखा जाता है वह सही नहीं होता है । सम्यकदृष्टि जीव हमेशा अपने इष्ट का स्मरण करते हैं। अनंत गुणी कर्मों की निर्जरा प्रारंभ हो जाएगी।हम उन गुरुओं के शिष्य हैं जो न तो वस्त्र से मौह रखते हैं और न हीं भोजन से, आपको गर्व होना चाहिए। आप इतना लायक बच्चों को बनाते हैं कि वह बड़ा होकर आपको नालायक समझने लगता है। प्रभु के स्मरण करने से सहज ही पाप शांत हो जाते हैं। गंगा नदी की तरह भगवान की भक्ति करें। सीमा में बांधकर भगवान की भक्ति न करें, असीमित भक्ति भगवान की करें। नदी और सागर का ह्रदय बहुत बड़ा होता है वह सभी के कचरे को समेट लेती है।

और समुद्र सभी नदियों को मिला लेता है। जैन दर्शन कहता है भक्त ही भगवान बनता है। मां बच्चे की प्रथम गुरु और प्रथम पाठशाला है।पाप असीमित और पुण्य करते हैं सीमित। पुण्य में वृद्धि चाहते हो तो धर्म के काम में सीमा नहीं रखें।


भारत देश में गरीबी कम नहीं हुई है। राजस्थान में एक गांव ऐसा जिन्हें यह पता नहीं कि आज दीपावली है। ऐसे लोगों को मिठाई खिलाकर उनके चेहरे पर मुस्कान ला दे। अनुपयोगी वस्त्रों को गरीबों को देवें।वोट मांगने नेता आता है,नोट लेने वाले आते हैं और जैन संत आपकी खोट लेने के लिए आते हैं। भगवान महावीर स्वामी का निर्वाण महोत्सव बहुत ही उत्साह पूर्वक मनाएंगे। धर्म की क्रिया असीमित नहीं करें।

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