आष्टा। आज सत्य धर्म है। प्रभु और गुरु किसी के नहीं, सभी के होते हैं।सत्य कड़वा होता है, उसे स्वीकार करना चाहिए।हम बंटे हुए हैं इसीलिए तीर्थ छीन रहे हैं और हम पीट रहे हैं। किला मंदिर के बड़े बाबा आदिनाथ जी की प्रतिमा चमत्कारी है तो गंज मंदिर के मूल नायक चंद्र प्रभु भगवान की प्रतिमा भी चमत्कारी है।
गंज मंदिर में श्रीजी के दर्शन करने पर बहुत ही अच्छा लगा और अलग ही आनंद आया।समाज की वर्षों की परम्परा चली आ रही है, इसलिए हम जलयात्रा में शामिल हुए। समाज की व्यवस्थाओं को देखकर परिवर्तन लाना पड़ता है। किला मंदिर के आदिनाथ भगवान चमत्कारी है तो गंज मंदिर के चंद्र प्रभु भी चमत्कारी है।
उक्त बातें पर्यूषण महापर्व के पांचवें दिन श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन गंज मंदिर की पंचमेरु के समापन जल यात्रा के अवसर पर मुनिश्री निष्कंप सागर जी महाराज, मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज एवं मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने गोकुल धाम गार्डन में आशीष वचन देते हुए कहीं।श्री गंज मंदिर से जलयात्रा प्रारंभ हुई।जो नगर के प्रमुख मार्गो से होते हुए गोकुल धाम पहुंची।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा समाज की वर्षों की परम्परा चली आ रही है, इसलिए हम जलयात्रा में शामिल हुए। समाज की व्यवस्थाओं को देखकर परिवर्तन लाना पड़ता है। किला मंदिर के आदिनाथ भगवान चमत्कारी है तो गंज मंदिर के चंद्र प्रभु भी चमत्कारी है। पंच मेरु के समापन पर यह जलयात्रा निकाली जाती है।
सम्यकदृष्टि जीव जिनेंद्र भगवान की बातों पर अमल करता है। जिनेंद्र भगवान तीन लोक के नाथ है ,वह किसी एक मंदिर विशेष के नहीं। किस्मत में है-तो धन,दोलत मिल जाएगी। धर्म के कार्यक्रम में सभी को शामिल होना चाहिए। मनुष्य पर्याय प्राप्त करना दुर्लभता है।
जैन कुल में जन्म लिया,यह धर्म और कुल कल्याण नहीं हो जब तक जैन कुल मिलता रहें यह कामना करते हैं। जैन कुल को कलंकित मत करना। गलत परम्पराओं को छोड़कर उस पर लगाम लगाएं। समाज की महिलाएं भक्ति देव, शास्त्र, गुरु के सामने करें। सड़कों पर व अन्य स्थानों पर नृत्य आदि नहीं करना चाहिए।जैन गुरु का कर्तव्य है कि आपकी रक्षा करें। पुरानी अच्छी परम्पराएं समाप्त हो चुकी है। दूषित परम्पराओं को छोड़े।
मनुष्य पर्याय प्राप्त करना दुर्लभता है। जैन गुरु का कर्तव्य है कि आपकी रक्षा करें। पुरानी अच्छी परम्पराएं समाप्त हो चुकी है। मुनिश्री निष्काम सागरजी महाराज ने कहा यह दस दिन का पर्यूषण महापर्व दिगंबर जैन समाज द्वारा मनाया जाता है। यहां बहुत अच्छी परम्परा है। आष्टा वालों का बहुत पुण्य है। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज की कृपा बरसती रही।अब नवाचार्य समय सागर महाराज की कृपा बरस रही है।
जब मन में लालसा , भावना हो तो इच्छा पूरी होती है।गंज मंदिर में श्री जी के दर्शन किए बहुत आनंद आया। जिन्होंने मंदिर चैत्यालय बनाया। इतनी बड़ी जगह में अपनी ह्रदय की विशालता रखकर समाज को लाभान्वित किया है। राजा छत्रसाल का उल्लेख बहुत ही धर्मनिष्ठ राजा था। अभिमान नहीं आएं इसलिए मंदिर पारिक सेठ ने खजुराहो में बनवाकर कलश समाज से चढ़वाया ताकि मुझे घमंड नहीं आए कि मैंने मंदिर बनवाया।
तीन लोक के नाथ को नये सिंहासन पर विराजमान करें। मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने कहा आचार्यो ने आठ मद बताएं, उन्हें छोड़ा की नहीं।यह आठ मद अहंकार के कारण आते हैं। अंतरंग की छल-कपट छोड़ने को आर्जव धर्म कहते।आप अलग-अलग चेहरे बना कर घूमते हैं। आर्जव, सरलता जीवन में लाएं ।
बैरंग प्रभावना करें। प्रभावना जब ही सही होगी, जब हम सब एक होंगे। हम बंटे हुए हैं इसीलिए पिटते रहते हैं और तीर्थ छीन रहे हैं। जलयात्रा में मुनिश्री निष्कंप सागर जी महाराज , निष्काम सागर जी महाराज ,मुनिश्री विनंद सागर महाराज एवं ऐलक श्री विनमित सागर महाराज के पावन सानिध्य में अत्यंत हर्षोल्लास के साथ निकाली गई। जिसमें काफी संख्या में समाज जन उपस्थित थे।
“वाणी को वाण नहीं वीणा बनाना है — मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज
निंदक को हमेशा अपने पास रखों, जिंदगी में निखार आएगा –मुनिश्री निष्काम सागर महाराज”
व्यक्ति को सत्य पसंद नहीं आता है।वाणी को वाण नहीं वीणा बनाना हैं। हमेशा सत्य एवं मीठे वचन बोलिए।जो सत्य के लिए ओर हित के लिये किया जाता है ,वह सत्य है । सत्य परेशान हो सकता है, लेकिन पराजित नहीं। व्यक्ति का कल्याण क्यों नहीं हो रहा है क्योंकि हम सत्य को मानते हैं, जानते भी हैं लेकिन सत्य को अनुभूति का विषय नहीं बना पा रहे हैं ।
अनुभूति का विषय बन जाता है तो हमारी आस्था डगमगाती नही है। सत्य को आचरण में उतार नही पा रहे है, संसार असार है। सत्य को सत्य कहना आपको स्वीकार करना पड़ेगा ।हम सत्य को जानते है, मानते है पर सत्य को स्वीकार नही कर पा रहे है। संसार बुरा है सब जानते हैं, लेकिन अनुभूति में नहीं लाते ।सत्य अनुभूति का विषय बन जाए तो कभी भी आस्था डगमगा नहीं सकती ।अनादिकाल से सत्य जान रहे हैं, लेकिन आचरण में नहीं ला पा रहे हैं ।
सत्य भी ऐसा बोलो जो व्यक्ति को प्रिय लगे ।तुम बोलो या ना बोलो इस बात का गम नहीं ,तुम मुस्कुराकर देख लो यह भी बोलने से कम नहीं। अनंत बार संसार सुखा दिया था सम्यक दृष्टि ने,70 कोड़ी मिथ्यात्व की जो साता पड़ी थी वह एक क्षण मात्र में समाप्त कर दी। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा गुरुओं की वाणी को हम अनादिकाल से सुनते आ रहे है ,पढ़ते आ रहे है, पर आज तक हमने ज्ञान को आत्मा कि पर्याय नही बनाया ।संसार सागर बहुत बड़ा है, एक बार उन गुरुओं का उपदेश अपनी आत्मा में सत्य को अपनी अनुभूति में नही लाते इस लिए हम भव -भव में जन्म ले रहे है ।
यह प्रक्रिया अनादिकाल से चल रही है, यह बात का हमको स्वीकार नही हुई, इस लिए हम आज तक मोक्ष गति में नही पहुंचे। सत्य के साथ रहना नही स्वीकारा हमने। उत्तम सत्य धर्म हमें यही सिखाने आया है,
अपने मार्ग को सही दिशा दे। सही दिशा में चलने पर ही अंतिम लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। जब व्यक्ति का पुण्य का उदय आता है तब सभी लोग उसका साथ देते है। अशुभ कर्म जब उदय में आते है तो घर वाले सगे सम्बन्धी भी साथ छोड़ देते है। सत्य धर्म यही सिखाता है, जहाँ सत्य होता वहां सब लोग रहते है।
बहुत सारे लोग कहते है काल लब्धि आएगी जब धर्म करेंगे काल लब्धि कुछ नही कर पायेगी। हमको स्वयं को पुरूषार्थ करना पड़ेगा। सत्य परेशान हो सकता है, पर पराजित नही होता। धर्म तुम्हारी परीक्षा लेता है ,सत्य को तुमने परेशान किया है झूठ का सहारा ले रखा है ।हमने वाणी संयम को वीणा बनाना है वाणी को बाण नही बनाना है।जीभ की लगी चोट ओर जीभ पर लगी चोट शब्द का हेरफेर है ,बस अच्छी समझ की आवश्यकता है ।
जरूरी नही हम किसी से बोले, बस एक बार मुस्करा के देख लो, जब हमारी वाणी बोली अच्छी होती है तो सब काम हल कर सकते है। हम असत्य का सहारा ले रहे है।मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज ने कहा कि चारों कषायों के उपसम क्षयोप्सम के बाद आता है। उत्तम सत्य धर्म सत्य कहना अलग बात है और सत्य का आचरण करना अलग बात है।
अरिहन्तपुरम में शास्त्र भेंट करते हुए
सत्य को हम कभी स्वीकार करते नही है, असत्य में ही जी रहे है ।सत्य को स्वीकार करना ही बहुत बड़ा सत्य है ।आचार्यो ने कहा कि हजारों वर्ष तक असत्य के साथ रहने के बाद एक पल भी सत्य को स्वीकार कर लिए तो इसे जीवन की बहुत बड़ी घटना मानो। मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहा बोलने की शैली अच्छी होना चाहिए ,हमेशा अपने पास एक निंदक को अपने पास रखो वही आपको हमेशा आपकी गलती बताएगा, कमी बताएगा और आप उस पर ध्यान देकर अमल करोंगे तो आपकी जिंदगी संवरेगी।
जिस व्यक्ति पर कषाय हावी हो जाती है, वह किसी भी स्थिति में जा सकता है ।तीव्र पाप कर्म के उदय के कारण वह सही क्या गलत क्या सब कुछ भूल जाता है ।व्यक्ति सत्य को भी स्वीकार भी नही करता है ,तुम्हारे जिस शरीर मे आत्मा निवास कर रही वह भी इस पुद्गल मय शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर मे चली जाएगी ।यह एक सत्य है आपके अंदर भी उत्तम सत्य धर्म प्रवेश हो यही मंगल भावना है।