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आष्टा । जिसको हम दुनिया को बांटते हैं वह है त्यौहार और पर्व हमें जोड़ने नहीं गलत कामों , कर्मों को छोड़ने का संदेश देते हैं।पर्व के दिन आनंद देते हैं। क्षमा वीरों का आभूषण है। संसार में हर व्यक्ति अपने स्वभाव में रहना चाहता है।सदाचारण को धारण करने वाला क्षमा भाव रखता है। मेरी भावना हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए।यह संसार सागर है जो मोतियों से भरा है। व्यक्ति की दृष्टि सुधर जाए तो सृष्टि स्वयं सुधर जाती है। क्रोध को त्यागें बिना क्षमा भाव नहीं आ सकता है।

जीवन में क्रोध आए तो उसे जीतने का साधन मौन है। जिव्हा की चोट निकलने वाली नहीं है। अनेक बार याद आती है कहीं गई बात। क्षणिक गुस्से में बड़े बड़े अपराध कर देता है व्यक्ति। उत्तम क्षमा उनसे करें जिनसे बोल-चाल बंद है।राग-द्वेष से नहीं क्षमा धर्म में जियो। सोना जितना तपाओगे उतना ही उसमें निखार आता है।उसी प्रकार जितनी तपस्या करोगे उतना अधिक पुण्य अर्जन होता है।मात्र एक शब्द ने महाभारत खड़ी कर दी। परिणाम निर्मल नहीं, क्षमा भाव नहीं तो सभी बेकार


उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज एवं मुनिश्री निष्काम सागर जी महाराज ने कहीं। मुनि श्री निष्कंप सागर जी महाराज ने कहा कि अगर कोई बाहर जाता है तो त्योहार के दिन घर आ ही जाता है।पर्व हमें त्यागने का समादेश देते है, पर्व के दिन हमारे लिए आनंद देने के लिए आते है। आज उत्तम क्षमा धर्म का दिन है ,क्षमा ही आत्मा का स्वभाव है। वह प्राणी है जो अपने स्वभाव में नही रहना चाहता है, कभी -कभी व्यक्ति अपने कर्म के उदय के कारण अपने मूल स्वभाव को छोड़ देता है।

मेरी भावना हर व्यक्ति के लिए गहरा अर्थ छुपा हुआ है ,जिसने यह मेरी भावना की दो पंक्ति अंगीकार कर ली उसका भाव मंगल होने से नही रहेगे। संसार सागर में से राग द्वेष के परिणामों को छोड़ कर कषायों को छोड़ कर अपने परिणामों को छोड़ सकते है ।जहां विषय वासना की नाली हमने बहाई है राग द्वेष ही इस संसार में ठस -ठस भरा हुआ है ।हमारी दृष्टि में सुधार होना जरूरी है हमारे जीवन मे ।मेरे अपने स्वयं के कर्मो के कारण ही इस संसार सागर में भटक रहा हूं ,सही क्षमा के धारी तो हमारे केवलज्ञानी भगवान ही है

हमारा सुख और दुख हमारे हाथ मे नही है जो व्यक्ति पर के आधीन है वह सम्यकदृष्टि नही हो सकता है ।सुबह से शाम तक हम अपने परिणामों में निर्मलता नही ला पा रहे है ।क्रोध हमेशा छोटो के ऊपर ही आता है हम पर के प्रति क्रोध कर अपना ही अहित कर लेते है जिस समय हमारे परिणाम विकृत हो रहे हो उस समय मोन हो जाओ यही क्रोध को जीतने की दवा है चार इंच की जीभ से चोट लगी तो बहुत बड़ी चोट लग सकती है गुस्से को नियंत्रण रखे क्रोध का परिणाम बहुत खतरनाक है जीवन तबाह कर देता है।

जो हमारे शत्रु है, उन्हीं से क्षमा मांगना चाहिये ।दुनिया मे सज्जन बहुत कम है दुर्जन हर पग पग पर मिलेंगे। साधुओं के उपदेश सुनने के बाद हमारे जीवन मे परिवर्तन आना चाहिये। राग द्वेष के विषय भोग को छोड़ना ही है जिंदगी भर क्षमा धारण करो ,उसकी कोई लिमिट नही होती है। सम्यकदृष्टि के जीवन मे जितनी प्रतिकूलता आती है उतना ही वह अपने जीवन मे निखार लाता है ,यही उसकी पहचान होती है।
मुनिश्री ने कहा कि आचार्यो ने कहा है कि इस भव से पर होने का एक ही मार्ग है राग द्वेष से दूरी बनाओ ।

राग द्वेष ही अनादि काल के संस्कार है पार्श्वनाथ भगवान को देखे कितनी क्षमा भाव को रखा उन्होंने उपसर्ग करने वाले के प्रति करुणा भाव रखा और सद्धर्म वृद्धि रस्तु का आशीर्वाद दिया, महापुरुषों की यही पहचान हुआ करती है ।सभी के प्रति दया भाव रखते है ,क्षमा धर्म को अपनाओ उसका हर समय ही प्रति क्षण पालन करना चाहिए।द्रव्य से मुनि नही बनना, भाव लिंगी मुनि बनने का प्रयास करना चाहिए ।क्षमा ओर धैर्य दोनों एक ही पर्यायवाची शब्द हैं।

“पहले अपनी आत्मा से फिर प्रभु से उसके बाद सर्व जीवो से क्षमा याचना करे”

श्री श्वेतांबर जैन समाज मे स्थानकवासी श्रावक संघ के चल रहे पर्युषण महापर्व के अंतिम दिन आज महावीर भवन स्थानक में विराजित पूज्य महासती साध्वी श्री किरणबाला जी महाराज साहब ने क्षमा पर्व पर कहा की जिस पर्व का सभी को इंतजार था आज वो पर्व आ गया।

आज हम सबको जो किसी से भी राग द्वेष बैर की गांठ बांधी है उससे हल्का होना है। संवत्सरी के प्रतिक्रमण में 84 लाख जीवा जोनी से क्षमा याचना करना है। क्षमा याचना पहले अपनी आत्मा से,उसके बाद प्रभु से एवं अंत मे सर्व जीवो से क्षमा याचना करना है,तभी आज का क्षमा दिवस मानना सार्थक होगा।
स्वयं के लिये की गई आराधना ही सर्व श्रेष्ठ आराधना है।

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