आष्टा। वर्तमान समय में लोगों की बुराई और उनके अवगुणों को व्यक्ति देखना चाहता है।इस तरह का एक ट्रेंड बन गया है ।किसी व्यक्ति द्वारा किए गए कार्य की उसके पीठ पीछे निंदा करना एवं उसकी आलोचना करते हुए चुगलखोरी आदि की आदत हमारे जीवन में ऐसे संस्कार डाल देती है, जिससे नीच गोत्र कर्म का बंध होता है। हमें हमेशा गुणग्रही का भाव रखना चाहिए एवं गुणों पर दृष्टि रखनी चाहिए। गुणीजनों की आराधना करते रहना चाहिए।यहां गुणीजन से तात्पर्य पंचपरमेष्ठि भगवान से है ,जिनके गुणों की आराधना एवं उनको नमस्कार करने से उच्च गोत्र की प्राप्ति होती है।
उक्त बातें नगर के श्री अरिहंत पुरम अलीपुर के श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर में चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने श्री भक्तांबर विधान के दौरान आशीष वचन देते हुए कहीं।
मुनिश्री ने कहा जो लोग श्रेष्ठ कार्य करते हैं, वही कार्य हम भी करें तो हम सबकी नजरों में सम्मान के पात्र हो सकते हैं।कहां भी है कि बहुत आलीशान मकान बना लेना आसान है लेकिन सभी के दिलों में जगह बना लेना आसान नहीं है।प्रशंसा करना एक ऐसा सद्गुण है जिससे शत्रु भी मित्रता को प्राप्त होते हैं ।जबकि किसी भी जीव से द्वेष रखकर के चुगलखोरी करना, उसकी बुराई करना यह सबसे निंदनीय और अपयश नाम कर्म के बंध का कारण होता है।मुनिश्री ने कहा
चुगलखोरी यह ऐसी द्विधारी तलवार है जो रिश्तों का नाश करती है।
जो राखे प्रशंसा का गुण सब जन उसको प्यार करें ।मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने दान की अचिंत महिमा बताते हुए कहा कि दान देने से भोगों की प्राप्ति होती है। आप जितना उत्तम, मध्यम और जघन्य पात्र को दान करोगे इसके फल से सुख, ऐश्वर्य, वैभव एवं भोग भी प्राप्त करते हैं । किंतु यदि किसी के नर्क आयु का बंध हो गया है तो वह व्यक्ति श्री सम्मेद शिखरजी की वंदना करने में समर्थ नहीं होता, इस प्रकार मुनियों का आहार देने के भाव भी उस जीव के नहीं बनते हैं। यदि हम नित्य पूजा करते हैं ,गुणों की पूजा करते हैं वे गुण हमारे अंदर भी विकसित हो इसी भाव से यदि हम पूजा करें तो उन गुणों की हमें भी प्राप्ति होती है। यदि पूजा करते-करते आप पूज्यता को प्राप्त हो जाओ यही पूजा का फल है।भगवान के सामने हमें बुद्धि लगानी होती है ,जबकि गुरुओं के सामने हमें बुद्धि प्राप्त होती हैं ।भगवान साक्षात नहीं, लेकिन अचेतन बिम्ब है ।किंतु गुरु चेतन और साक्षात हैं ,इसलिए गुरु को प्राथमिकता दी गई है।कहां भी गया है गुरु ब्रह्मा,गुरु विष्णु,गुरु देवोमहेश्वरा ।
गुरु साक्षात परम ब्रम्हा तस्मै श्री गुरुवे नमः।ऐसे गुरुओं की प्रशंसा करने से, उनकी भक्ति करने से यश कीर्ति और सुंदर रूप की प्राप्ति होती है और निंदा करने से कुमरण होता है ।जिनेंद्र भगवान के अष्ट प्रतिहार्य होते हैं, इसमें से एक छत्र है ।जिनेंद्र भगवान तीनों लोकों के स्वामी हैं, इसलिए उनके ऊपर तीन छत्र होते हैं। जो जिनेंद्र भगवान के ऊपर छात्र लगाते हैं वे राजकीय सम्मान प्राप्त करते हैं। श्री भक्तांबर महामंडल विधान के मध्य 31 श्लोक का आज मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने शुद्ध उच्चारण करवाया एवं उसके अर्थ में बताया हे भगवान सूर्य के ताप को रोकते हुए मोतियों की लड़ियों से सुसज्जित चंद्र कांति के समान यह तीन छत्र तीनों लोको की आपकी ईश्वरता को प्रकट कर रहे हैं। जो प्रतिमाएं जितनी पुरानी होगी उनसे उतनी ही अधिक एनर्जी मिलती है। झुकने से व्यक्ति ऊंचा उठता है ,जो नमता है वह भगवान को भी जमता है।
अपने माता-पिता और बुजुर्गो के नित्य चरण स्पर्श करें।संकटों को हरने वाले भगवान है। किला मंदिर में मूल नायक पार्श्वनाथ भगवान एवं बड़े बाबा आदिनाथ भगवान की प्रतिमा को उचित स्थान पर विराजमान करें।भगवान के अभिषेक का बहुत महत्व है। नियमित और निमित्त से अभिषेक करते हैं। बच्चे को सबसे पहले जिस दिन मंदिर ले जाकर भगवान के दर्शन कराने वाले दिन को याद रखना चाहिए, उस दिन को कभी भी भूले नहीं। उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर चातुर्मास हेतु विराजित पूज्य गुरुदेव संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।
आपने कहा भगवान मंगलकारी है। भगवान के प्रतिहार्य की क्या आवश्यकता है। भगवान के अष्ट प्रातिहार्य को चढ़ाने का महत्व है,यह मंगल स्वरुप है। जिनेंद्र भगवान तो मंगल स्वरुप है ही।जैन दर्शन की एक एक क्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। आवश्यकता है हम विधि अनुसार करें।जो व्यक्ति बाहर और अंदर जितना निर्मल होगा वह उतना ही प्रभावशाली रहेगा।देव, शास्त्र और गुरु भी मंगलकारी है, इनमें अपार शक्ति है।इनका सदुपयोग करें, दुरुपयोग नहीं करें।
मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहा दो प्रकार के मंगल एक लौकिक और दूसरी धार्मिक। मंगलकारी अर्थात जिनेंद्र भगवान के सबसे पहले दर्शन करने से आपका दिन भी अच्छा जाता है। मां कभी भी अमंगल कारी नहीं होती है,वह मंगलकारी है उनका आशीर्वाद लेकर ही अपने काम करें। पुरुष भगवान के अभिषेक पूजा-अर्चना के लिए धोती दुपट्टा पहनकर जाएं तो वह भी मंगलकारी हो जाता है।
पाश्चात्य संस्कृति में हम अच्छी परम्पराओं को भूलते जा रहे हैं। पूजन घरों में नहीं मंदिर में ही होती है। वास्तु हर वस्तु में है।आठ वर्ष के पहले सम्यकदर्शन नहीं आता है। बाल्यकाल में दिए गए संस्कार ही बच्चे की जिंदगी बनाते हैं। बच्चे के टेम्पल डे को याद रखें। मुनि गण अपने दीक्षा दिवस को भूले नहीं। जीवन का सबसे अच्छा दिन मानते हो उस दिन बुरा काम नहीं करें। होटल में नहीं जाएं, भगवान की आराधना ,पूजा -अर्चना करे। अदभूत पल अच्छे लोगों के साथ करें , भगवान की आराधना करे।जो दिन अच्छा मानते हैं उस दिन बुरे काम नहीं करें। जिनके हाथों में भगवान के अभिषेक के लिए कलश रहता है, उसके हाथों में कभी भी शराब की बोतल नहीं आएगी।