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आष्टा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्र के संबंध में आचार्य विद्यासागर महाराज से चर्चा करते थे। आचार्य श्री के निधन के पश्चात श्री मोदी ने विनयांजलि सभा में कहा था कि हमने एक महान देश के बहुत बड़े चिंतक को खो दिया है।केंद्र सरकार ने आचार्य विद्यासागर महाराज की शिक्षा नीति को दूसरे नंबर पर रखा है।

गुरु जीवन को साक्षर नहीं सार्थक बनाते हैं।देश की स्वतंत्रता में मातृ भाषा का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मातृभाषा ही हमारे सांस्कृतिक ,सामाजिक और आर्थिक विकास की धुरी है ।

शिक्षा को प्रखर राष्ट्रवाद से जोड़ने के लिए सर्वप्रथम हमें भाषाई विकास और उसकी उपयोगिता का वर्धन करना होगा।सांस्कृतिक मूल्यों के साथ ही आत्मनिर्भरता को बढ़ाने के लिए अंग्रेजों द्वारा स्थापित लार्ड मैकाले की पद्धति को हटा कर प्राचीन गुरुकुल पद्धति को आधुनिक ढंग से अपनाने की जरूरत है ।

यह प्रसन्नता की बात है कि शासन तंत्र प्राचीन भारतीय संदर्भ के अनुसार नवीन शिक्षा प्रणाली को लागू करने के लिए प्रतिबद्ध है । यह भी हर्ष का विषय है कि नई शिक्षा नीति 2020 पर आचार्य गुरुवर विद्यासागरजी के विचारों और प्रेरणा का प्रभाव है ।

अंग्रेजी ने हमारी संस्कृति का मडर कर दिया है। उक्त बातें नगर के मानस भवन परिसर में दिगंबर जैन शिक्षक संघ आष्टा द्वारा आयोजित जिला स्तरीय शिक्षक सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने कहीं।

मुनिश्री ने कहा सत्ता शीर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने युग प्रेरक गुरुवर विद्या सागरजी के कृतित्व और व्यक्तित्व से प्रभावित होकर उनकी प्रेरणा से संचालित प्रकल्पों को भी रोजगार मूलक शिक्षा से जोड़ने में रुचि दिखाई है । पूज्य मुनि निष्कंप सागरजी एवं निष्काम सागर महाराज के पावन सानिध्य में आयोजित हुए

इस कार्यक्रम में मुनिश्री ने कहा कि स्वतंत्रता में सत्य अहिंसा और स्वावलम्बन के सफल प्रयोग के साथ ही महात्मा गांधी ने ग्राम स्वराज्य की स्थापना और मातृभाषा के महत्व को रेखांकित किया था ।

मुनि निष्कंप सागर महाराज ने बताया कि आजादी के पूर्व लन्दन में गोलमेज सम्मेलन में शामिल होने के बाद से ही महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्रता पोषित शिक्षा नीति अपनाने पर ध्यान देना शुरू किया था।

अपने प्रभावी उद्बोधन में अंग्रेजों द्वारा थोपी गई शिक्षा पद्धति , शब्दावली और कान्वेंट संस्कृति के कुप्रभावों से अवगत कराया ।

उन्होंने शिक्षकों को अपनी महत्ता और दायित्व बोध खुद ही तय करने का आव्हान करते हुए कहा कि पीढ़ियों के परिवर्तन का साक्षी शिक्षक से अच्छा कोई नही होता ।उन्हें स्वयं भी अपने अनुभवों को साझा करते हुए शिक्षा पद्धति में परिवर्तन के सार्थक सुझाव देना चाहिए ।

महाराज श्री ने अपने उपदेश में शिक्षकों को व्यसन त्यागी होने का निर्देश देते हुए यह भी कहा कि साक्षरता और सार्थकता प्रदान करने में शिक्षक की महत्ता सर्वोपरि है। मुनिश्री निष्कंप सागर महाराज ने भारत की शिक्षा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि

अंग्रेज भारत में नहीं आते तो यहां की शिक्षा प्रणाली सही नहीं होती। भारत की अलग ही शिक्षा नीति थी। बच्चों को लौकिक शिक्षा के साथ भारत के इतिहास से अवगत कराएं। आचार्य विद्या सागर महाराज जैनों के नहीं जन -जन के आचार्य भगवंत थे।वह धर्म की ही नहीं राष्ट्र की बात करते थे।


भारत को पुनः गुलाम बनाना चाहते थे अंग्रेज, भारत महासंपन्न देश है।सूरत बहुत ही आर्थिक रूप से संपन्न है। भारत की रीढ़ की हड्डी यहां की शिक्षा प्रणाली है, उसे तोड़ना अंग्रेज चाहते थे।

भारत में पहले 7 लाख 32 हजार गुरुकुल थे। शिक्षक को गुरु का दर्जा था, उन्हें कर्मचारी की श्रेणी में डाल दिया सरकार ने।जैनी भी राम को मानते हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की इस दुनिया में पूजा होती है।राम नाम से नहीं उनके गुणों से आप राम बन सकते हैं।

अंग्रेजों की नीति के कारण भारत के गुरुकुल समाप्त हो गए। शिक्षा और चिकित्सा नीति को अंग्रेजों ने बिगाड़ा। मुनिश्री ने कहा देश के गृह मंत्री अमित शाह एक बार कुंडलपुर में पहुंचे थे और उन्होंने आचार्य श्री और बड़े बाबा के दर्शन किए और राष्ट्र के संबंध में चर्चा की।

देश के सैनिक अपनी जान की बाजी लगाकर देशवासियों की रक्षा करते हैं।आप अपने आपको गौरवान्वित महसूस करें कि भारत देश में जन्म लिया। मातृ भाषा हिन्दी है तो हिन्दी में बात चीत करनी चाहिए। स्वप्न भी हिन्दी में आता है।

कण कण और रोम -रोम में हिन्दी बसी हुई है। हमारी भाषा बहुत शक्तिशाली है।शिक्षा और शिक्षित होना जरूरी है। पाश्चात्य संस्कृति को क्यों अपना रहे हो, अपनी भाषा का ही उपयोग करें।

प्रतिभास्थली को गुरुकुल पद्धति के अनुसार प्रारंभ किया है,आचार्य विद्यासागर महाराज ने। बच्चों को संस्कारित करें। स्कूलों में अंडे को नहीं आने देवें। मध्यप्रदेश में गायों को पूजा जाता है,गाय का दूध पीते हैं तो स्कूलों में नानवेज नहीं दे।

आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज कहते थे हमारे अतीत को देखों,भारत सोने की चिड़िया था ।पिच्छ लग्गू मत बनो अंग्रेजों के। भारत की सोने की चिड़िया उड़ना नहीं भूली है, फिर भारत सोने की चिड़िया होगी। मुझे गौरव है कि इस भारत देश में जन्म हुआ है और मुनि बना, नहीं तो आज मुनि नहीं होता।

विदेशी भारत के खंडहर देखने आते हैं। बहुभाषी बच्चा बहुत अधिक ग्रौथ करता है ।शिक्षक सम्मान समारोह का आरम्भ शिक्षाधिकारी और प्रमुख जनप्रतिनिधियों ने आचार्य विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलित कर किया।

मुनिद्वय निष्काम सागरजी एवं निष्कंप सागरजी को शाला प्राचार्यो ने शास्त्र भेंट किये । उपस्थित शिक्षक – शिक्षिकाओं का आयोजन समिति के संजय जैन ,मनोज जैन , युवराज जैन , राजेश जैन , दिनेश जैन , श्रीमती नीता संजय जैन किला , उषा कल्याण जैन ,रक्षा रितेश जैन

,रेखा संतोष जैन , बरखा अनुराग जैन ने तिलक लगाकर स्वागत पट्टिका और श्रीफल भेंट करके सम्मान किया।कार्यक्रम के आरम्भ में दिगम्बर जैन पाठ शाला की बालिकाओं ने नृत्य मंगलाचरण किया । प्रभु प्रेमी संघ के महासचिव प्रदीप प्रगति एवं ज्ञान सिंह मेवाड़ा ने स्वागत गीत प्रस्तुत किया ।

शुजालपुर दिगम्बर जैन समाज के अध्यक्ष सचिन जैन ने संचालन किया तथा आभार कार्यक्रम के संयोजक संजय जैन शिक्षक ने किया । उपस्थित शिक्षकों को मुनिद्वय ने आशीर्वाद दिया । कार्यक्रम में पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ,श्रीमती मीना सिंगी , नपाध्यक्ष प्रतिनिधि रायसिंह मेवाड़ा,पूर्व विकास खंड शिक्षा अधिकारी अजबसिंह राजपूत,

प्रेमनारायण शर्मा,पार्षद तेजसिंह राठौर , रवि शर्मा , सुभाष नामदेव , व्यापार महासंघ अध्यक्ष रूपेश राठौर ,सकल हिंदू समाज अध्यक्ष अनिल श्रीवास्तव, सुरेश सुराणा, रामेश्वर प्रसाद खंडेलवाल,पूर्व पार्षद शैलेष राठौर ,नरेंद्र कुशवाह, सुनील प्रगति,दिगम्बर जैन समाज के पूर्व महामंत्री नरेंद्र जैन उमंग,सकल हिन्दू समाज सहित बड़ी संख्यां में समाजजन आदि भी उपस्थित थे ।

“श्रावकों ने श्री चंद्र प्रभु मंदिर में मूर्ति मंजन किया , सभी श्रावकों में उत्साह दिखा”

श्री दिगंबर जैन समाज के महापर्व दस लक्षण पर्यूषण पर्व के पहले परम्परा अनुसार मंदिरों में मूर्ति मंजन का कार्य किया जाता है। जिसके चलते श्री चंद्र प्रभु दिगंबर जैन मंदिर गंज में रविवार 1 सितंबर की दोपहर को मूर्ति मंजन किया गया। जिसमें काफी संख्या में श्रावकों ने शामिल होकर पुण्य अर्जित किया गया ।

दस लक्षण पर्यूषण महापर्व के पूर्व श्री चंद्र प्रभु मंदिर गंज में भगवान की प्रतिमाओं का मूर्ति मंजन का कार्य सभी श्रावकों ने उत्साह पूर्वक किया। पर्यूषण महापर्व के पहले मूर्ति मंजन की वर्षों पुरानी परंपरा है,जिसका निर्वहन आज भी किया जा रहा है।

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