Spread the love

आष्टा। हम कल से उत्सव- महोत्सव मना रहे हैं। आष्टा वालों के हिस्से में चार माह तक पर्व ही पर्व है।धर्म, आराधना ,ज्ञान अर्जन में बीते। जिनवाणी,देव शास्त्र गुरु की शरण में रहेंगे। आत्मा को उत्थान के पथ पर अग्रसर करते हैं। भगवान महावीर का युग इस सृष्टि में आज के दिन शुरू हुआ।

कल गुरु की बात थी।आज जिनवाणी मैय्या की बात है। हम लोग घर को छोड़कर बेघर होने के लिए आतुर रहें,घर- परिवार छोड़ा। बहुत सारे संबंधों का जाल मकड़ी के जाल की तरह उलझे हुए हैं आप। यही संसार है।आप सभी भी मूल लक्ष्य को प्राप्त करें, सभी प्राणियों का कल्याण हो यही कामना, भावना करते हैं।

महावीर व गुरु की बात ग्रहण कर रहे हैं।दिन में एक माला अवश्य जपें। परमार्थ की बात आप सभी को सुनना पसंद नहीं। अनादिकाल के संस्कार थारी -म्हारी का जंजाल में उलझे हैं।हम स्वयं को संबोधित कर रहे हैं, आप तो माध्यम है।

संबंधों के विज्ञान में उलझे हुए हैं ,उससे ऊपर नहीं उठ पा रहे हैं। त्याग करने का महत्व है। संसार की वस्तुएं धन, सम्पत्ति वैभव त्यागना चाहिए।जितना आनंद त्याग में है,वह जोड़ने में नहीं। दिशा और दशा सुधारने के निर्देश भगवान महावीर की वाणी कह रही है।

आज मां की क्या दशा है। माता-पिता प्रथम गुरु है। कहानी घर -घर की नित्य सुनते हैं।एक मां का त्याग भूल गए।एक माता का त्याग और साधुओं को आठ मां मिली है।उनकी शरण से आपका उत्थान हो, धर्म -ध्यान में लगाएं।यहां से कुछ सीखकर, अर्जित करके जाएं।

उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य पूज्य निष्पक्ष सागर महाराज ने जिनशासन जयंती के अवसर पर आशीष वचन देते हुए कहीं।मुनि श्री निष्पक्ष सागर जी महाराज ने कहा कि संसार के आकर्षण बिंदु हमें अपनी ओर आकर्षित करते है।

जो यथार्थ है उससे परिचित होना चाहिए। संबंधों के विज्ञान में ही हम सब उलझे हुए है ,उससे ऊपर ही नही उठ पा रहे है।परम पूज्य मुनि श्री निष्प्रह सागर जी महाराज ने कहा कि आज ही के दिन भगवान महावीर स्वामी को गौतम स्वामी जैसे शिष्य मिले थे। गणधर,प्रतिगणधर और आचार्य ही उपदेश देते हैं।

हम तो उनकी वाणी को आप सभी के सामने प्रस्तुत कर रहे हैं। तीर्थंकर की ध्वनि समीचीन रुप से गणधर ही झेलते हैं। अपात्रों और कुपात्रों को शिक्षा नहीं दी जाती है। ज्ञान दान सामने वाले की क्षमता अनुसार दिया जाता है। मुनिश्री ने कहा महान तीर्थंकरों को मौन होकर ही सुनना पड़ता है। पढ़ाई की पद्धति चाहे स्कूल, कालेज या धर्म की हो उसे व्यवस्थित रूप से अध्ययन करना होता है।जिस विषय को पढ़ना है, उसका एक बार घर से अध्ययन करके जाना चाहिए।

ज्ञान सभी जीवों के पास होता है।विज्ञान वरदान भी और अभिशाप भी है। समीचीनता से अहिंसा को समझों, वीर शासन जयंती है। जिसमें जिनवाणी का बहुत महत्व है। तेज आवाज, ध्वनि हमें पसंद नहीं और जिनशासन को भी। मंदिर में पूजा भक्ति करते हैं वह धीमी आवाज में करें। सहनशीलता गौतम स्वामी में बहुत थी।

महापुरुष कभी भी यदवा, तदवा नहीं बोलते। जितना धीमा बोलेंगे उतना ही अच्छा लगता है। हित मित वचन बोले। माता-पिता, गुरु ऊपर से कठोर रहते हैं और अंदर से नरम। जिनवाणी की ध्वनि आपके लिए कल्याण का मार्ग प्रशस्त करती है।

आप लोगों को वैराग्य उत्पन्न नहीं हो रहा है, श्रद्धा जिनवाणी के प्रति हो, गुरु और आचरण समझ में आ रहा है। वर्तमान शिक्षा पन्ना पलटने और डिग्री की हो गई है। आचरण को आचार्य ज्ञानसागर महाराज ने समझा। स्वाध्याय से जी नहीं चुराएं। सही समय पर बच्चों को स्टेडी करना चाहिए।

मुनिराज रात 9 से 12 बजे तक शयन करते हैं।काल,वास्तु का असर होता है। सुबह 4-5 बजे पढ़ाई का अच्छा समय। बच्चों को रात्रि में जल्दी सुलाएं। नीट के परिणाम उजागर हुए हैं। व्यवहार और निश्चित जरूरी है।चामुंडराय राजा जैसे महान व्यतित्व हुए है ,हमारे यहां जिनका जीवन हमे प्रेरणा देता है।

error: Content is protected !!