आष्टा । आष्टा वालों की आस्था है। आपकी आस्था हमें यहां खींच कर लाई है।नियम सागर महाराज का चातुर्मास सबसे पहले देकर यहां मंगलाचरण आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज ने किया था। वहीं कृपा आष्टा पर बरसाने का नवाचार्य समय सागर महाराज की आप पर है।
मालवा का प्रवेश द्वार सीहोर जिला है। नवाचार्य समय सागर महाराज के बाद आष्टा का युवा मुनि संघ हमसे मिलने आया।चार आराधनाएं सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान, सम्यक चारित्र और सम्यक तप करके आत्म कल्याण करें। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए अनुशासन व मर्यादा जरूरी है। लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन करने पर परिणाम भुगतना पड़ता है।
चाहे राम ,रावण, सीता, लक्ष्मण हो, लक्ष्मण रेखा उलांघने पर दंड भुगतना पड़ता है ।आप सभी की भावना बहुत अच्छी है। उक्त बातें नवाचार्य समय सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य
पूज्य गुरुदेव मुनिश्री निष्पक्ष सागर महाराज ने भव्य एवं ऐतिहासिक नगर प्रवेश के पश्चात श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आशीष वचन देते हुए कहीं।
जुलूस में समाज के बालकों का वीर जयघोष, बैंड़ -बाजा, ढोल ढमाके के साथ समाज जन मुनि संघ के भोपाल नाके से नगर प्रवेश में चल रहे थे। बग्घियों पर बड़े बाबा आदिनाथ भगवान सहित आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज एवं नवाचार्य समय सागर महाराज के चित्र के साथ लाभार्थी परिवार आसीन थे।
आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज के चित्र का अनावरण व दीप प्रज्जवलन पूर्व नपाध्यक्ष डॉ मीना सिंगी, समाज संरक्षक धनरुपमल जैन, दिलीप सेठी, कैलाशचंद जैन, अध्यक्ष आनंद पोरवाल, कमलेश जैन आदि ने किया।
मां जिनवाणी व्रतियों द्वारा मुनि गणों को भेंट की गई।
खातेगांव, भोपाल आदि से पधारे समाज जनों का समाज ने सम्मान किया ।वीर सेवादल ने मधुर संगीत मय बैंड़ बजाया। सभी महिला मंडल अपनी अपनी गणभेष में कलश आदि लेकर नगर प्रवेश के जुलूस में शामिल रहीं। विनंद सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहा जीवन है पानी की बूंद कब मिट जाएं रे।
दो चातुर्मास हो रहें हैं एक नदी के उस पार और एक नदी के इस पार यह चातुर्मास इतिहास रचेगा।
मुनिश्री निष्काम सागर महाराज ने कहा आष्टा वालों पर आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज की असीम कृपा से आठ चातुर्मास और नवां चातुर्मास नवाचार्य समय सागर महाराज ने हमें यहां भेजकर करवा रहे हैं।
बहुत पुण्योदय से मुनि राजों का आना होता है। हमें चातुर्मास हेतु जाना कहीं और था और आपकी भाव रुपी गाड़ी यहां ले आई।आप लोगों ने नगर प्रवेश में टेलर दिखाया। चातुर्मास में पुण्य का संचय करना है तो 105 दिन तक गुरु भक्ति करने का मन बनाना है।
निष्कंप सागर महाराज ने कहा यह चार बादल की टुकड़ियां कुंडलपुर से सागर पहुंची और वहां से विदिशा और भोपाल में कुछ दिनों का प्रवास फिर नवाचार्य भगवंत समय सागर महाराज ने कहा देख लेना आष्टा चातुर्मास हेतु। पुण्य होगा तो आष्टा में बरसेगा,
आप सभी का कल्याण हो जाएगा। आस्था का सैलाब आएगा तो डूबोगे नहीं तर जाओगे। पानी का सैलाब डूबा सकता है ,लेकिन धर्म, आस्था का सैलाब डूबाएगा नहीं।सबसे पहले आष्टा वालों को हमारे दर्शन हुए थे। छोटे बाबा -बडे बाबा की जैसी कृपा होगी वैसा निर्णय लेंगे।
आष्टा आस्था की नगरी है। निष्प्रेह सागर महाराज ने कहा मुश्किलें, मुसीबतें इस खेल में …….। सहजता से वास्ता है और जीत आष्टा की ही होगी।देर से ताला खुलने वालों को फायदा डबल होगा। आचार्य भगवंत विद्यासागर महाराज आष्टा की बातें करते थे वह समीचीन, आस्था आदि देखने को मिली।
सभी नगर वासी नगर प्रवेश में सहभागी बने,दो मुनि संघों का मिलन हुआ ।भोपाल नाके पर मुनि निष्पक्ष सागर महाराज ससंघ की अगवानी करने विनंद सागर महाराज अपने संघ के साथ उपस्थित थे ।
दोनों मुनि संघों का यहां मंगल मिलन हुआ, उसके पश्चात दोनों मुनि संघों का समाज जनों ने नगर प्रवेश का ऐतिहासिक जुलूस निकाला। श्वेतांबर जैन समाज सहित अन्य समाज के लोग भी इस नगर प्रवेश में शामिल हुए।
महिलाओं ने जैन समाज की धर्म ध्वजा एवं मंगल कलश लेकर चल रही थी। नगर के प्रमुख मार्गो से जुलूस होता हुआ किला मंदिर पर पहुंचा।
“मुनिश्री विनंद सागर महाराज एवं ऐलक विनमित सागर महाराज का हुआ नगर प्रवेश, कदम – कदम पर पग प्रक्षालन किया
चातुर्मास के दौरान पुण्य बढ़ाना है –मुनिश्री विनंद सागर महाराज”
आष्टा।कुछ लोग भाग्यशाली और कुछ लोग सौभाग्यशाली होते हैं। कुछ लोग दुकान पर बैठे- बैठे ही अपने सामने आए भगवान की शोभायात्रा एवं गुरुजनों के दर्शन कर लेते हैं ,वह भाग्यशाली हैं और जो भगवान की शोभायात्रा में शामिल होने के साथ ही पाग प्रक्षालन कर साथ चलते हैं ।
वह परम सौभाग्यशाली होते हैं,वे अपना पुण्य अर्जन और बढ़ाते हैं। आष्टा धरा का पुण्य है, इसलिए गुरु ने आष्टा चातुर्मास हेतु भेजा है। हम कितना भी चाहे वही कदम बढ़ते हैं, जहां का दाना पानी और पूज्य गुरुदेव का आदेश लिखा है।आप सभी को चातुर्मास के दौरान पुण्य बढ़ाना है।
उक्त बातें आचार्य 108 विनम्र सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनिश्री 108 विनंद सागर महाराज ने चातुर्मास हेतु नगर प्रवेश के पश्चात श्री अरिहंत पुरम अलीपुर स्थित श्री चंद्र प्रभ मंदिर परिसर में आशीष वचन देते हुए कहीं।
मुनिश्री ने कहा घर में बहू रुपी लक्ष्मी आने पर वह सौभाग्यशाली हो जाती है। धर्म में आगे बढ़ाने वाली धर्मपत्नी कहलाती है। आपने चेलना का उदाहरण दिया,कि उसने अपनी भक्ति व तपस्या से पति का कोढ़ रोग ठीक किया।
मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने कहा गुरुदेव के चरण आपके घर पढ़ें और आहार हो जाएं आपके अहो भाग्य,गुरु की जुबान पर आपका नाम आए वह सौभाग्यशाली रहते हैं।
पावन चातुर्मास के पुण्य की बैला में अधिक से अधिक पुण्य अर्जन करें, गुरुदेव की कृपा -अनुकंपा से हम आष्टा आएं हैं, हमारी इच्छा भोपाल में चातुर्मास करने की थी, लेकिन आष्टा वालों के भाग्य प्रबल थे। चातुर्मास में ज्ञान की गंगा बहाएंगे।जिनवाणी और पिच्छिका कमंडल के अलावा हमारे पास कुछ नहीं है, जिनवाणी श्रवण कराएंगे।
मुनिश्री ने कहा ज्ञानी जीव की सोच अलग रहती है,वह किसी के जाने या वस्तु समाप्त होने पर सोचते हैं कि इतना ही संयोग था। भक्ति की गंगा बहाने अरिहंत पुरम आएं हैं। प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ भगवान की जिस भक्ति से मानतुंगाचार्य के 48 ताले खुल गए थे।
उसी भक्तांबर पाठ का शुद्ध उच्चारण कराया जाएगा। जिसने भक्तांबर जी पाठ संस्कृत में सीख लिया वह सभी पाठों आदि का शुद्ध उच्चारण कर लेते हैं।भगवान की सच्ची स्तुति से सारे पाप एक क्षण में नष्ट हो जाते हैं।ऐसी भक्ति चातुर्मास के दौरान होगी।
सौभाग्य को महासौभाग्य में बदलना है। बड़े बाबा आदिनाथ भगवान,संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज आदि के चित्र के समक्ष दीप प्रज्जवलन समस्त व्रतियों द्वारा किया गया।इस अवसर पर समाज के काफी संख्या में श्रावक -श्राविकाएं उपस्थित थे।
बायपास से नगर प्रवेश मुनि संघ का हुआ और अलीपुर के प्रमुख मार्गो से होते हुए जुलूस अलीपुर मंदिर पहुंचा। कदम-कदम पर पग प्रक्षालन किया गया।