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आष्टा । क्षमा आपके पास है और क्रोध उनके पास है। क्षमा वीरों का आभूषण है।कोई क्षमा मांगता है तो क्षमा अवश्य करें, क्रोध नहीं करें। वर्तमान में सम्यक है, दर्शन है लेकिन मोक्ष नहीं है। सामूहिक का आनंद अलग है, सामूहिक पूजा -अर्चना करें।

पूजा व जिनवाणी पूर्ण होने पर ही उठे,बीच में नहीं उठना चाहिए। संवर्ग निर्जरा सामूहिक पूजा अर्चना करने से होती है।आप लोग जीवन को उन्नत व सम्यक प्राप्त करना चाहते हो तो अहम छोड़ दो।आने वाली पीढ़ी को दायित्व सौंपों। युवाओं से ही देश व धर्म की रक्षा होगी।

धर्म आराधना करने के लिए लोगों के पास समय नहीं है। शिखर जी से अच्छा आनंद श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन किला मंदिर पर आता है । उक्त बातें नगर के श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर विराजित पूज्य गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि सागर महाराज ने आशीष वचन देते हुए कहीं।

मुनिश्री ने कहा आप लोगों का मन किला से नीचे लगता है,हमारा मन किला पर लगता है, क्योंकि यह किला मंदिर सम्मेद शिखर से कम नहीं है। हमेशा त्यौहार का माहौल बना रहे। गुरुदेव मुनिश्री भूतबलि सागर महाराज की यहां समाधि से सोना में सुहागा हो गया। सबसे क्षमा सबको क्षमा मांगी। चैत्र मास के पर्यूषण महापर्व के समापन पर क्षमा पर आपने कहा कि दुश्मन से बातचीत कर क्षमा मांगे।


चैत्र माह में दसलक्षण पर्व मनाए। यह महा पर्व है, इसमे भी सार निकाल कर कुछ पाने का प्रयास करे। आपने कहा कि इन सभी पर्वों का सार क्या है । हम लोगो ने मोह महा मद पियो अनादि से सद्गुरु के सानिध्य बिना कुछ सम्भव नही ।गुरु वाणी सुन कर बड़ो की सीख सुन कर ही कल्याण कर एकता से रहे ।


जितने भी हमारे पर्व है भीतर अर्थात मन की सफाई के पर्व है, बाहर की सफाई के नही। मुनि सागर महाराज ने कहा सुनना सरल है जीवन मे उतारना उतना ही कठिन है।दोस्त दुश्मन न बन जाये दुश्मन दोस्त बन जाये ,ऐसे कार्य करें ,ऐसा व्यवहार करें। सोलहकारण भावना के माध्यम से ही तीर्थंकर भगवान ने मोक्ष मार्ग प्रशस्त किया था।

जो छोटे होते है उनको थोड़ा प्यार दे दो।आज क्षमा वाणी पर्व है ,अपने अंदर क्षमा भाव को धारण करें ।अपनी वाणी को संभाले। दैनिक जीवन मे साल में तीन बार आने वाली क्षमा पर्व पर हल्का हो लिया करो ,जिनसे गलती होती हो उनसे क्षमा मांग कर मन को साफ कर लिया करो। क्रोध का भाव छोड़ कर अपना जीवन सफल बना लो। गांठ बना कर मत रखना, इसी लिए यह दसलक्षण पर्व आये है,साल में तीन बार आते है ।पर्व माघ मास में ,चैत्र मास में तथा भादो मास में, इसी तरह मना कर धर्म प्रभावना करते रहे।

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