Spread the love

सीहोर । सीहोर जिले मे अनेक ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्व के स्थल हैं। जो आज भी अपनी वैभवशाली परंपरा को जीवंत किए हुए हैं और शैलानियों के लिए आकर्षण और आस्था के केन्द्र बने हुए हैं। आज भी यहॉं बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। इनमें सारू-मारू की गुफाएं, देवबड़ला, सलकनपुर धाम और चिंतामन गणेश मंदिर शामिल है।

“सारू-मारू की गुफाएं”

सरु मारु एक प्राचीन मठ परिसर और बौद्ध गुफाओं का पुरातात्विक स्थल है। तथागत गौतम बुद्ध के शिष्य महामोद्गलायन और सारीपुत्र के समय की हैं। यह स्थल सीहोर जिले के बुधनी तहसील के ग्राम पान गुराड़िया के पास स्थित है। यह स्थल सांची से लगभग 120 किलोमीटर दूर है। इस स्थल में कई स्तूपों के साथ-साथ भिक्षुओं के लिए प्राकृतिक गुफाएं भी हैं। गुफाओं में कई बौद्ध भित्तिचित्र (स्वस्तिक, त्रिरत्न, कलश ) पाए गए हैं।


मुख्य गुफा में अशोक के दो शिलालेख पाए गए थे, जो अशोक के संपादकों में से एक है, और एक शिलालेख में अशोक के पुत्र महेंद्र की यात्रा का उल्लेख है। अन्य शिलालेख के अनुसार सम्राट अशोक जब विदिशा में निवास करते थे।

उस समय उनके द्वारा इस स्थल की यात्रा की गई थी। सम्राट अशोक के राज्यकाल के पहले की गुफाएं व स्तूप हैं। यहां सम्राट अशोक सम्राट बनने के बाद आए थे। जिसके शिलालेख सांची में सुरक्षित रखे गए हैं।

बुदनी का बुद्धकाल में बुद्धनगरी था, बुदनी के पास तालपुरा नामक स्थान पर भी बुद्ध के स्तूप निर्मित हैं। लगभग 50 एकड़ क्षेत्रफल में फैली इसी पहाड़ी में शैल चित्र एवं 25 से अधिक बौद्ध स्तूप हैं. जिनका रख-रखाव और संरक्षण राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग किया जाता है।

“देवभूमि देवबड़ला”

सीहोर जिले का चिंतामन गणेंश मंदिर और सलकनपुर धाम, आस्था के बड़े केन्द्र के रूप में देश दुनियॉं में प्रसिद्ध हैं। इन दोनों प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के साथ ही अब देवबड़ला भी धार्मिक पर्यटन के रूप में विकसित हो रहा है। यहॉं आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है।

यह नेवज नदी के उदगम स्थल और घने जंगलों में होने के कारण यहॉ का प्राकृतिक वातावण पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा हैं।


देवबड़ला सीहोर जिले की जावर तहसील के ग्राम बीलपान के घने जंगलों की बीच विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पर स्थित है। देवबड़ला का मालवी में अर्थ है जंगल, अर्थात घने जंगलों में देवों की भूमि।

पुरात्व की दृष्टि से यह क्षेत्र अमूल्य धरोहर है। देवबडला में खुदाई के दौरान 11वीं 12 शताब्दी के परमार कालीन शिव मंदिर और अन्य मंदिर मिले हैं। खुदाई में शिव मंदिर के साथ ही 20 से अधिक प्रतिमाएं भी मिली हैं।

इनमें मूर्तियों में ब्रमदेव, विष्णु, गौरी, भैरव, नरवराह, लक्ष्मी, योगिनी, जलधारी, नंदी, और नटराज की प्रतिमाएं शामिल हैं। इस अमूल्य धरोहर को सहेजने का कार्य किया जा रहा है। पुरातत्व विभाग द्वारा वर्ष 2015 में यहॉ खुदाई शरू की गई। मई 2016 में शिव मंदिर के पुर्ननिर्माण का कार्य प्रारंभ किया गया। यह मंदिर 51 फिट उंचा है और इस मंदिर का कार्य पूर्ण हो चुका है। दूसरे मंदिर का निर्माण अभी चल रहा है। इन मंदिरों को मूल स्वरूप देने के लिए मंदिर के अवशेषों को जोड़ने में चूना, गुड़, गांद, उड़द, मसूर, जैसे प्राकृतिक वस्तुओं का उपयोग किया गया है।

यहॉं के मंदिर आक्रमण अथवा प्राकृतिक आपदा के कारण नष्ट हुए हैं। यह स्थान भोपाल तथा इंदौर से 115 किलो मीटर दूर है। भोपाल या इंदौर मध्य आष्टा नगर से देवबड़ला के लिए सड़क मार्ग से जा सकतें हैं। सीहोर जिला मुख्यालय से इसकी दूरी 75 किलोमीटर है।

“300 साल पहले बंजारों ने की थी धाम की स्थापना”

मध्यप्रदेश के सीहोर जिले के सलकनुपर के पास, एक हजार फीट उंचे विन्ध्यापार्वत पर, मता विजयासन देवी का मंदिर है। यह देश के प्रसिद्ध शक्ति पीठों में से एक है। पुराणों के अनुसार देवी विजयासन माता पार्वती का ही अवतार हैं। जिन्होंने देवताओं के आग्रह पर रक्तबीज नामक राक्षस का वध कर सृष्टि की रक्षा की थी। रक्तबीज का संहार कर विजय पाने पर देवताओं ने यहॉं माता को जो आसन दिया, वही विजयासन धाम के नाम से विख्यात हुआ, और माता का यह रूप विजयासन देवी कहलाया।


एक किवदंति यह भी प्रचलित है कि लगभग 300 साल पहले बंजारे अपने पशुओ के साथ जब इस स्थान पर विश्राम करने के लिए रूके तब अचानक उनके सारे पशु गायब हो गए। बहुत ढूंढने के बाद भी पशु नहीं मिले। तभी एक बुर्जुग बंजारे को एक बालिका दिखाई दी। उस बुजुर्ग ने उस बालिका से पशुओं के बारे में पूछा तो उसने कहा कि, इस स्थान पर पूजा-अर्चना कीजिए आपको सारे पशु वापस मिल जाएंगे। और हुआ वैसा ही।

अपने खोए हुए पशु वापस मिलने पर बंजरों ने उस स्थान पर मंदिर का निर्माण किया। तभी से यह यह स्थल शक्ति पीठ के रूप में स्थापित हो गया। देशभर से हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन माता विजयासन के दर्शन एवं पूजा अर्चना के लिए आते हैं। नवरात्रि में यहॉं विशाल मेला लगता है।

शारदीय नवरात्रि पर लाखों श्रद्धालु मता के दर्शन के लिए आते हैं। यह भोपाल से 75 किलोमीटर दूर सीहोर जिले के सलकनपुर नामक गांव के में स्थित है। मंदिर परिसर तक रोप वे और सड़क मार्ग के साथ ही सीढ़ी मार्ग से भी जाया जा सकता है। मंदिर परिसर तक लगभग 1400 सौ सीढ़ियॉं हैं।

“सीहोर का चिंतामन गणेश मंदिर”

सीहोर का चिंतामन गणेश मंदिर देशभर में गणपति के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह चिंतामन गणेश भारत में स्थित चार स्वयंभू मूर्तियों में से एक माने जाते हैं। सीहोर के गणपति के बारे में कहा जाता है कि भगवान गणपति आज भी यहां साक्षात मूर्ति रूप में निवास करते हैं। इस मंदिर की स्थापना दो हजार साल पहले महाराजा विक्रमादित्य ने की थी।

यह किवदंती प्रचलित है कि महाराजा विक्रमादित्य को गणपति की यह मूर्ति स्वयं गणेश जी ने ही दी थी। यह भी मान्यता है कि भगवान गणेश विक्रमादित्य के पूजन से प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए और मूर्ति स्वरूप में स्वयं यहां स्थापित हो गए।
चिंतामन गणेश की देशभर में चार प्रतिमाएं एक राजस्थान के रणथंभौर में, दूसरी उज्जैन में, तीसरी गुजरात के सिद्धपुर में तथा चौथी सीहोर में स्थित है। स्वयंभू प्रतिमा जमीन में आधी घंसी हुई है। चिंतामन गणेश मंदिर भोपाल से 40 किमी दूर सीहोर जिले में पार्वती नदी के किनारे में गोपालपुर गांव में स्थित है।

चिंतामन सिद्ध गणेश मंदिर 84 गणेश सिद्ध मंदिरों में से एक है। गणेश मंदिर पेशवाकालीन श्रीयंत्र के कोण पर बना हैं। जिसमें गर्भगृह में भगवान शिव बिराजे है वहीं भव्य शिखर के साथ अंबिका मां दूसरे शिखर पर दुर्गा मां और मां शारदा आरूढ़ है। भगवान राधाकृष्ण जी के साथ ही वैदिक मंगल कलश, ऊपर पवित्र सुन्दर सभा मंडप, नीचे सभा मंडप और परिक्रमा व्यवस्था है, बगल में विशाल वट वृक्ष पर अनेक देवी देवता विराजे है, वहीं पीछे शीतला माता भैरवनाथ सामने हनुमान जी का मंदिर है।

जनश्रुति के अनुसार जब भी महाराजा विक्रमादित्य पर कोई संकट आता था तब वे सिद्धपुर गणेश जी की शरण में आया करते थे और भगवान गणेश उन्हें सभी संकटों से मुक्त कर देते थे। तभी से निरंतर लोग यहां अपनी समस्याओं, परेशानियों को लेकर आते हैं। वे गणेश जी से अपनी चिंता दूर करने की मन्नत मांगते हैं। यहां आने वाले श्रद्धालु मंदिर के पिछले हिस्से में उल्टा स्वाष्तिक बनाकर मन्नत रखते हैं और पूरी हो जाने पर दोबारा आकर उसे सीधी बनाते हैं। गणेश उत्सव के बाद भी यहां सालभर देश-विदेश से आने वाले भक्तों का तांता लगा रहता है। सीहोर में हर साल गणेश उत्सव गणेश चतुर्थी से शुरू होकर दस दिनों तक यहां विशाल मेला लगता है।

देवेन्द्र ओगारे
जिला जनसंपर्क
सीहोर

error: Content is protected !!