आष्टा। मैना में चल रहे पंच कल्याणक जिन बिंब प्रतिष्ठा महोत्सव के पांचवें दिन रविवार को तीर्थंकरों की प्रतिमा को मंत्रित किया। जय जिनेंद्र का घोष गूंजा और भगवान आदिनाथ जी का समवशरण रचाया गया ।
आज ज्ञान कल्याणक दिवस पर ग्राम स्थित जिनालय से प्राचीन प्रतिमाओं को नवीन जिनालय में विराजमान किया गया । मंत्राराधना के साथ प्रतिमाओं के नेत्रोन्मिलन तथा प्राण प्रतिष्ठा के लिए मुनि श्री द्वारा सूरि मन्त्र दिए गए । दुंदुभि और जयकारों के मध्य कैवल्य ज्ञान ज्योति प्रज्ज्वलित की गई परिसर में श्रद्धालुओं द्वारा प्राण प्रतिष्ठा की पावन क्रियाओं के दौरान दिव्यता के लिए णमोकार महामन्त्र का श्रद्धापूर्वक जाप किया गया ।
ज्ञान कल्याणक पूजन की। समवशरण की रचना आकर्षण का केंद्र बनी रही। वही मुनि ऋषभ कुमार के रूप में
भगवान आदिनाथ की प्रतिमा को अपने मस्तिष्क पर प्रतिष्ठाचार्य वाणी भूषण विनय भैय्या लेकर चल रहे थे। श्रावक -श्राविकाओं ने मुनि के रुप में पधारे भगवान आदिनाथ को आहार हेतु पढगाहन किया।
मुनि अजीत सागर महाराज ने कहा कि भगवान के ज्ञान कल्याणक का विधान बहुत पावन प्रसंग है। ज्ञान के समान संसार में दूसरा कोई सुख नहीं है। ज्ञान चेहरे पर नजर नहीं आता, यह आत्मा का विषय है। आप को भी जिस व्यक्ति से ज्ञान प्राप्त हो उसका उपकार कभी नहीं भूलें। आपने कहा कि सांसारिक कार्य कभी खत्म नहीं होते। यदि एक खत्म होता है तो दूसरा शुरू हो जाता है। मानव जीवन आनंद के लिए मिला है। उन्हाेंने कहा कि हमारे पास जो है, उससे अधिक पाने की चाह न हो और जो नहीं है उसका दुख न हो तो व्यक्ति आनंद से जीवन जी सकता है।
व्यक्ति अपनी कल्पना से सुखी और दुखी होता है। सुबह नित्य नियम अभिषेक के बाद मुनि ऋषभ कुमार की आहार चर्या संपन्न हुई। श्रावकों ने मुनि ऋषभ कुमार को आहार देकर जीवन को धन्य किया। दोपहर में समवशरण में भगवान आदिनाथ जी की दिव्यध्वनि खिरी। मुनि अजीत सागर महाराज ने भगवान की वाणी का उच्चारण करते हुए श्रावकों की जिज्ञासाओं का समाधान किया। प्रतिमाओं को प्रतिष्ठित करने के लिए सूर्य मंत्र दिया गया। रात आरती में श्रावक और श्राविकाएं जमकर झूमे।
ज्ञान कल्याणक विशेष
राज पाट त्याग कर वैराग्य धारण किए तपोरत भगवान आदिनाथ को राजा श्रेयांश द्वारा आहारदान चर्या की क्रियाओं के अलावा भगवान को कैवल्य ज्ञान प्राप्ति की अंतरंग क्रियाएं मुनि श्री अजीत सागर जी महाराज ,एलक गण विवेकानन्द सागर जी , दयासगरजी के सानिध्य में प्रतिष्ठाचार्य ब्रह्मचारी विनय भैय्या द्वारा संपादित की गईं ।
ज्ञान प्राप्ति के बाद भगवान के लगे समवशरण की प्रतिकृति का अनावरण राजेश -मधु जैन एवं मयूर नेहा जैन ने किया । समवशरन में प्रथम आरती का सौभाग्य अमित कुमार अशोक कुमार जैन परिवार मैना को मिला । समवशरण में इंद्र -इंद्राणी ,देवी – देवता और अष्ट कुमारियाँ भक्ति पूर्वक नृत्य करते हुए पहुंचे । इस अवसर पर तत्व चर्चा के साथ ही ज्ञान कल्याणक पूजा और जिनबिम्ब स्थापना भी हुई ।
कैवल्य ज्ञान प्राप्ति के बाद समवशरण में जुटे सभी गतियों के जीव को भगवान के दिव्य संदेश रूप में मुनि अजीत सागरजी महाराज ने प्रवचन देते हुए कहा कि जो लोग ज्ञान की गंगा में नहाते हैं वो सदैव नव चिंतन करते हैं । ज्ञानी होना और राग भाव रखना दुख का कारण है । वीतराग भाव से ज्ञान का उपयोग सुख का कारण बनता है । मुनि श्री ने अपने संदेश में कहा कि मोही जीव दूसरों से अपेक्षा करता है और अपेक्षा पूरी न होने पर दुखी होता है । इसी कारण मोहग्रस्त व्यक्ति ज्ञानी होते हुए भी विश्वासघात करता है और विश्वासघात सहता भी है ।
भगवान के ज्ञान कल्याणक पर्व पर हमें अज्ञान और राग दूर होने की कामना करनी चाहिए ।
शरीर आश्रित होता है आत्मा नही , अशक्त शरीर से उठा भी नही जाता वही आत्मा शरीर से विलग हो कर अनन्त की यात्रा पर निकल जाती है । मुनि श्री ने जिनसूत्रों पर अमल करते हुए सही मार्ग पर चलने का उपदेश भी दिया ।
“सोमवार को पंचकल्याणक महोत्सव का समापन”
सोमवार को भगवान आदिनाथ जी के निर्वाण कल्याणक के साथ पंचकल्याणक का समापन होगा। कार्यक्रम में विशाल प्रतिमा का महा मस्तक अभिषेक होगा।
आज भगवान का मोक्ष कल्याणक,गजरथ फेरी निकलेगी
पंचकल्याणक प्रतिष्ठा,गजरथ महोत्सव एवं विश्वशांति महायज्ञ के अंतिम दिन 30 नवंबर को सुबह 6.30 बजे नित्यमय अभिषेक, शांति धारा,पूजन,जाप तथा नवप्रभात की नव किरण के साथ भगवान आदिनाथ जी को कैलाश पर्वत से निर्वाण प्राप्ति, अग्निकुमार देवों द्बारा नख,केश आदि का विसर्जन,सुबह 8.30 बजे अभिषेक पूजन,मोक्ष कल्याणक पूजन एवं विश्व शांति महायज्ञ,दोपहर 12.30 बजे गजरथ फेरी निकलेगी।