आष्टा । घमंड का त्याग करने वाला व्यक्ति ही समाज का मुखिया बन सकता है उक्त उद्गार किला मन्दिर में चल रहे नन्दीश्वर द्वीप महामण्डल विधान पूजन के अवसर पर पूज्य मुनि श्री मार्दव सागर महाराज ने कहे उन्होंने बताया कि संसार मे जीवो को बहुत प्रकार की यातनये प्राप्त होती है
संसार दुखो का ही स्थान है दुखो से बचने के लिए व्यक्ति धर्म की ओर आना चाहता है जिनेंद्र भगवान को जानकर उनकी तरह सुखी बनना चाहता है,जिनेंद्र भगवान ही एक ऐसे भगवान है जो यह कहते है तुम भी भगवान बन सकते हो परमात्मा एक नही है परमात्मा एक से है हम लोग एक से है सभी लोग नन्दीभवर विधान कर रहे है समाज की दृस्टि से सभी एक है । समाज को एक रखने का प्रयास करना चाहिए।
समाज का कोई व्यक्ति दुखी नही रह पाए हमारे पास बहुत सारे दुःखी लोग आते है ।
सुनने से भी दुख दूर हो जाया करते है। हमारे यहां सुख साता पूछने का व्यबहार है , बोलना पड़ता है सब ठीक है। घमंड का त्याग करने वाला व्यक्ति ही समाज का मुखिया बन सकता है। समाज के सभी लोगी की मनोभाव लगा कर सुनना चाहिए,अपने साथ रहने वाले व्यक्तियों से हमे सम भाव रखना चाहिए,आपने आप मे लीन रहो स्वयं में लीन रहो यही जीवन का सारभूत तत्व है,परम आनंद की अनुभूति होती है।
सम्राट चन्द्रगुप्त को आगे लाया गया था वे जैन धर्म को जानने वाले थे, जैन धर्म का बहुत बड़े विद्वान रहे है चन्द्रगुप्त जी, लोभी व्यक्ति से धर्म का अपमान होता है ,श्रावकों की त्रेपन क्रियाओं से ब्रम्ह का ज्ञान करना उसे ब्राम्हण कहते है,
हरिवंश पुराण में ज्योतिष,वास्तु आदि शास्त्र का ज्ञान बताया व्य है,उसे जानना चाहिए,समाज मे हर प्रकार की प्रतिभाएं होना चाहिए ।