आष्टा।जिनेंद्र भगवान के बताएं राह पर चलने से लक्ष्य मिल जाता हैं। बाहर का रास्ता मानव भटक जाते हैं,अंदर की राह न भटके। भारत में सम्प्रदाय के कारण भटक रहे हैं। धर्म में भटकाव है लक्ष्य बनाकर कार्य करने से सफलता मिलेगी।होटल का भोजन अभक्ष रहता है।भजन जिनेंद्र भगवान का करें।जिनको भजन,पूजन, अभिषेक की जरूरत नहीं उनका कर रहे हैं। शांति रखने के लिए इंद्रियों व कषायों को जीतना होगा। सत्य पर संसार टिका है सत्य बोलने वाला कभी पराजित नहीं होता है।
उक्त बातें श्री दिगंबर जैन समाज के दसलक्षण पर्यूषण महापर्वाधिराज के पांचवें दिन पंचमेरू के समापन अवसर पर श्री चंद्रप्रभु गंज मंदिर की जलयात्रा के दौरान गोकुलधाम परिसर में मुनि श्री मार्दव सागर महाराज ने कहीं। मुनिश्री ने कहा कि व्यक्ति के पास परिग्रह का भंडार है। तृष्णा में भाई -भाई का दुश्मन हो जाते हैं। चक्रवर्ती छः खंड को जीतकर अपना राज्य स्थापित करते हैं। धर्म प्रभावना करते हैं। पर्यूषण महापर्व के दसों दिनों जलयात्रा निकालना चाहिए ।धर्म आराधना में पीछे नहीं रहना चाहिए। श्रीराम- श्रीकृष्ण के जमाने में असंख्यात गायें रहती थी।गाय अमृत देती है। घर- घर में गौशाला होना चाहिए। गौशाला जाकर मूक मवेशियों की सेवा करना चाहिए। पशुपालन करना चाहिए। मनुष्य को परिग्रह रहता है, मवेशियों को नहीं। मुनि मार्दव सागर महाराज ने कहा भगवान का जो विहार कराते हैं उनका भगवान विहार करते हैं, अर्थात भगवान की कृपा उन पर बनी रहती है।
भगवान के बताएं मार्ग पर चलें, संसार का सारा वैभव उनके आगे फीका है। धर्म की राह पर चलें। सही आचरण करें। श्रीजी की यात्रा में उत्साह पूर्वक शामिल हो। सही ज्ञान और सही आचरण मिलें। भारत परतंत्र हुआ था। सत्य पर संसार टिका हुआ है। चोरी करना हिंसा की श्रेणी में आता है। अहिंसा धर्म की प्रसिद्धि के लिए झूठ नहीं बोलना चाहिए। झूठ बोलने वाले दर-दर भटकते है। मुनिश्री ने कहा सत्य बोलने से प्रतिष्ठा होती है।न्याय एवं नीति का ध्यान रखें।किसी दूसरे का पेट न काटें। भगवान ऋषभदेव ने 16 नियम व बातें बताई।मानव दिगंबर अवस्था में पैदा होता है और दिगंबर ही मरता है।
दया मय जैन धर्म है। श्रीकृष्ण बहुत गंभीर थे। सत्य से परे होंगे तो पतन होगा। पूरे विश्व का ध्यान जैन धर्म रखेगा। शनिवार की दोपहर को चंद्र प्रभु मंदिर गंज से मुनि मार्दव सागर महाराज के पावन सानिध्य में जल यात्रा निकाली गई, जो नगर के प्रमुख मार्गो से होती हुई वापस गंज मंदिर पर पहुंची। गोकुलधाम एवं गंज में मंदिर के बाहर भगवान के अभिषेक एवं शांति धारा कर पूजा -अर्चना की गई।