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आष्टा । भगवान कृष्ण का प्रकट मथुरा के कारावास में हुआ जब भगवान मध्य रात्रि में देवकी और वासुदेव के सामने प्रकट हुए तब भगवान चतुर्भुज रूप धारण किए हुए थे । लेकिन जब देवकी और वसुदेव में भगवान से शिशु रूप में परिणित होने का आग्रह किया । तब भगवान जो ना स्थूल, ना अणु है,ना विराट है, हां सूक्ष्म है ।

वह सर्वव्यापी परमात्मा एक शिशु के रूप में पधार कर देवकी की गोद में विराजमान हो गए । वसुदेव के द्वारा भगवान गोकुल लाए गए गोकुल में नंद बाबा और यशोदा के जीवन को सार्थक करने के लिए भगवान गोकुल में पधारे । उक्त उदगार यशोदानन्दन महिला मंडल द्वारा आयोजित भागवत कथा में आज व्यास गादी से पं अजय पुरोहित ने कहे,उन्होंने कहा की भगवान के प्राकट्य के छठवें दिन पूतना गोकुल में आई पूतना का अर्थ जो पवित्र ना हो उसका नाम गंदा है ।

उसका उद्देश्य हीन है फिर भी भगवान ने उसको उत्तम गति प्रदान की । क्योंकि पूतना ने आज बड़ा सुंदर श्रृंगार किया है और यह श्रंगार केवल भगवान कृष्ण के लिए किया है । यह पूतना विरोधाभास से आज गोपी बनकर आई है । पूतना ने भगवान के समक्ष 3 भोग रखें पहला विष, दूसरा दूध, और तीसरा अपने प्राण ।

भगवान कृष्ण करुणामई है इसलिए भगवान ने पूतना को उत्तम गति प्रदान की । भगवान अपने हाथ पर 7 दिनों तक गोवर्धन पर्वत को ब्रजमंडल की रक्षा करने के लिए धारण करते हैं । 84 कोस का ब्रजमंडल 84 अंगुल का हमारा शरीर है ।

गो का अर्थ है ज्ञान, गो का अर्थ है इंद्रियां, जो कथा हमारी इंद्रियों को पुष्ट करके हमे ज्ञान प्रदान करे वो ही प्रभु की गोवर्धन लीला है। आज कथा श्रवण करने जिला पंचायत अध्यक्ष इंजी गोपालसिंह, पूर्व नपा अध्यक्ष कैलाश परमार आदि भी पहुचे।

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