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आष्टा। प्रत्येक व्यक्ति में कोई ना कोई कला होती है। जब भी लड़ाई- झगड़े होते हैं तो शब्दों के कारण होते हैं ।आगम में कहा है हित -मित प्रिय बोलो, कम शब्दों में अपनी बात कहें तथा शॉर्ट एंड स्वीट बोलें ।राम को जिसने छोड़ दिया वह डूब जाएगा ।सूर्योदय के पहले नहा लो, फिर फ्रेश हो जाओ, जीवन में परिवर्तन आएगा। कुछ पाना है तो कुछ खोना भी पड़ेगा। बिना जुनून के कोई सफलता नहीं मिलती है। संस्कार है तो बहू को पलकों पर बैठा देंगे, अन्यथा कार लाने पर भी उसकी कोई पूछ परख नहीं रहेगी ।

पाषाण की मूर्ति भी संस्कार के बाद ही पूज्यनीय होती है। उक्त बातें गणाचार्य विराग सागर जी महाराज के परम प्रभावक शिष्य प्रख्यात प्रवचनकार वात्सल्य स्वभाव के धनी आचार्य भगवंत विहर्ष सागर महाराज ने श्री पार्श्वनाथ दिगंबर जैन दिव्योदय अतिशय तीर्थ क्षेत्र किला मंदिर पर आशीष वचन देते हुए कहीं। आपने कहा कि सीता हरण के पश्चात जब लंका के लिए श्री राम ,हनुमान सहित सेना जा रही थी तो बीच में बड़ा समुद्र पड़ा ,उसे पार करने के लिए नल और नील दो ऐसे वानर थे जो इस कला को जानते थे कि अगर पत्थर पानी में डालेंगे तो वह तीर जाएगा डूबेगा नहीं ।

वह दोनों नदी में पत्थर डालकर पुल बनाने लगे, काफी समय लगता। हनुमान जी ने सोचा मैं भी पत्थर डाल दूं उनके मन में विचार आया कि अगर मैंने पत्थर डाला और डूब गया तो हंसी का पात्र बनूंगा, काफी विचार के पश्चात उन्होंने पत्थर उठाया उस पर श्रीराम लिखा और समुद्र में डाला तो वह तीर गया, उन्होंने अपनी पूरी टीम को बुलाकर श्रीराम लिखकर पत्थर समुद्र में डालना प्रारंभ कर दिया।

उक्त आवाज सुनकर श्रीराम बाहर आए और उन्होंने देखा तो उनके मन में बात आई कि मैं भी पत्थर डाल दूं ,लेकिन डूब गया तो सब क्या कहेंगे ,यह सोच कर श्रीराम एकांत वाले स्थल पर पहुंचे और वहां उन्होंने पत्थर उठाकर चारों तरफ देखकर समुद्र में डाला तो वह डूब गया। उन्होंने नजर घुमाई तो पीछे हनुमान खड़े थे। हनुमान से कहा कि यह बात किसी को मत बताना, तो हनुमान मुस्कुरा कर बोले अरे प्रभु यह तो पूरे जग को बताना होगी, हंस-हंसकर बताऊंगा। राम ने पूछा क्या बताओगे तो हनुमान ने जवाब दिया यही बताऊंगा कि जिसने श्री राम को पकड़ लिया वह भव से पार लग जाएगा और जिसने श्रीराम को छोड़ दिया वह डूब जाएगा।

आचार्य विहर्ष सागर महाराज ने आगे कहा कि प्रकृति का नियम है भूखे को कोई रोटी नहीं देता है। जिस प्रकार की भक्ति हनुमान में राम के प्रति थी, वह भक्ति सभी के मन में अपने प्रभु के प्रति रहे। गुरु तो सभी को मिल जाते हैं लेकिन सदगुरू किसी -किसी को मिलते हैं ।हनुमान जी को राम जैसे सदगुरू मिले थे। हनुमान एक सच्चे राम भक्त थे। सूर्य दो संदेश देता है जब लालिमा के साथ सूर्योदय होता है तो मंदिरों में घंटियां बजती है ,बच्चे स्कूल जाने की तैयारी करते हैं, पूजा-अर्चना, अभिषेक का सिलसिला प्रारंभ हो

जाता है। शाम को लालिमा लेकर सूर्य अस्त होता है तो पाप प्रवृत्ति प्रारंभ हो जाती है। पंचम काल में युवाओं के हाथ में धर्म का रथ रहेगा, वही रथ को खिंचेगे। इसीलिए युवा लोगों को समाज का दायित्व एवं युवा साधु- संत भी अधिक बन रहे हैं। जब मैंने अपने घर माता से कहा कि मुझे मुनि बनना है तो मां ने कहा घर में खाने में नौटंकी करते हो, महाराज बनोगे तो अंजलि में जो श्रावक- श्राविकाएं आहार देंगे वही खाना पड़ेगा, वह भी एक बार।

लेकिन मैंने मन में ठान ली थी तो मुनि दीक्षा ली । केशलोंच भी किया , केशलोंच करना मामूली बात नहीं है। मोक्षमार्ग के लिए जुनून चाहिए। आईएएस अधिकारी बनना है तो जुनून चाहिए, वैज्ञानिक बनना है तो भी जुनून जरूरी है। बिना जुनून के कोई सफलता नहीं मिलती। संस्कार के अभाव में पाषाण की मूर्ति भी पूज्यनीय नहीं होती है। आचार्य श्री ने कहा कि सदा प्रसन्न रहो ,स्माइल फेस होना चाहिए। संस्कारों से अच्छे-अच्छे, सुंदर- सुंदर विचारों की उत्पत्ति होती है ।

संस्कारों से विचार और विचार से सुंदर व्यवहार उत्पन्न होता है ।मधुर व्यवहार से व्यापार भी अच्छा चलेगा ।सारे वास्तु नियम दुकानों के लिए है लेकिन शराब की दुकान के लिए कोई वास्तु की आवश्यकता नहीं। किसी भी कोने में यह दुकान चलती है ,तो आदमी शराब पीने के लिए पहुंच जाता है ।इस अवसर पर मुनि श्री विजय सागर महाराज ने कहा कि इस आष्टा के किले मंदिर पर दो ऋषभदेव भगवान की शानदार प्रतिमा विराजमान है ।

संस्कारी समाज आष्टा की है। जहां भूगर्भ से भगवान निकल रहे हैं, यहां से महाराज निकल रहे हैं ,बच्चों में यहां संस्कार दिए जा रहे हैं ।संस्कारों की आज बहुत ही आवश्यकता है ।संस्कार हमें उस और प्रेरित करते हैं जहां ज्ञान प्राप्त होता है। दौलत राम जी ने कहा था गुण- दोष पता चलेगे तभी क्या ग्रहण करना है और क्या छोड़ना है, इसकी जानकारी होगी। णमोकार मंत्र बहुत शक्तिशाली है ।णमोकार मंत्र में 5 पद है ।

चार घातियां का नाश कर दिया तभी अरिहंत बने। पांचो पदो का ज्ञान होने पर श्रद्धा बढ़ जाती है ।वीतरागी का दर्शन करते ही मिथ्या चकनाचूर हो जाता है। मुनि राज सहज ,सरल स्वभाव के होते हैं ।कोई छल -कपट नहीं करते हैं। संतों में सरलता होती है । मंदिरों में पूजा-पाठ, आराधना ऐसी करें कि किसी को डिस्टर्ब ना हो।आर्जव- मार्दव धर्म को प्राप्त करें ।पाठशाला हमेशा चलती रहना चाहिए। बचपन में दिए गए संस्कार बुढ़ापे में काम आते हैं।

सरस्वती ज्ञान की अजब भंडार है , ज्ञान को जितना लूटाओगे उतना ही ज्ञान बढ़ता रहेगा ।जिसका पुण्य होता है, उसे ही मुनिराज के दर्शन होते हैं ।साधु की संगति ,भगवान की संगति मिल जाए तो जीवन में परिवर्तन अवश्य आएगा, मोक्ष मार्ग प्रशस्त होगा। आचार्य श्री के आशीष वचन के पूर्व संत शिरोमणि आचार्य विद्यासागर महाराज के चित्र का अनावरण अतिथियों ने किया ।इस अवसर पर इंदौर सुदामा नगर से पधारे जैन समाज के लोगों ने आचार्यश्री को इंदौर पधारने हेतु श्रीफल भेंट किया।

“सेवा और समर्पण से जीवन निखरता है- आचार्य विहर्ष सागर जी
पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार ने आचार्य संघ की मंगल अगवानी की”

आष्टा । अच्छे संस्कार और स्माइली फेस ही जीवन की के आधार होने चाहिए । सेवा और समर्पण से जीवन निखरता है । हमे संस्कारों की नींव पर अच्छे विचार आत्मसात कर सदैव मुस्कराते हुए सुसंगति से अपने कार्य व्यवसाय को आगे बढ़ाना चाहिए । अच्छे कर्म का प्रचार भी अच्छे ढंग से होना चाहिए ।

यह संदेश दिगम्बर जैन आचार्य विहर्ष सागर जी महाराज ने ग्राम किलेरामा में व्यक्त किये । पूज्य आचार्य श्री एवम संघस्थ मुनिगण विश्वहर्ष सागर जी एवम विजय सागर जी की ग्राम किलेरामा में पूर्व नपाध्यक्ष एवम प्रदेश कांग्रेस महासचिव कैलाश परमार ने दिगम्बर जैन सकल समाज के अध्यक्ष यतेंन्द्र श्रीमोढ ,महामंत्री कैलाश जैन , पूर्व सरपंच मधुसूदन परमार , श्रीराम परमार, लक्ष्मीनारायण परमार, एडवोकेट सुरेंद्र परमार , वीरेंद्र परमार , सूर्य प्रकाश परमार, जैन समाज के पूर्व अध्यक्ष पवन जैन ,

व्रती महेंद्र जैन जादूगर , शिक्षक निर्मल जैन , धर्मेंद्र श्रीमोड , वीरम श्रीमोड आयूष जैन , अंकित रामपुरा
रमेश रामपुरा , वैभव जैन आस्थास आदि के साथ चरण पखार कर अगवानी की ।


पूज्य विहर्ष सागरजी ने धार्मिक मान्यताओं और साझा संस्कृति को पुष्ट करने में संतो की भूमिका का उल्लेख करते हुए सनातन समाज के ज्येष्ठ आचार्य स्वामी अवधेशानन्द जी महाराज की प्रशंसा की । आचार्य श्री ने बताया कि स्वामी अवधेशानन्द जी की अध्यक्षता में मेरठ में हुए धर्म सम्मेलन में संघ प्रमुख मोहन भागवत एवम अन्य मनीषियों के साथ मंच साझा कर हमने प्राचीन भारतीय संस्कृति के उत्थान पर गहन विचार विमर्श किया था ।


आचार्य श्री ने पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार की गुरु भक्ति और जैनत्व के प्रति उनके परिवार की आस्था पर प्रसन्नता व्यक्त कर सभी ग्रामवासियों एवम श्रावकों को मंगल आशीर्वाद दिया । बाद में आचार्य संघ ने नगर प्रवेश किया । किला मन्दिर पर पूज्य आचार्य श्री की धर्मसभा के बाद आहार चर्या सम्पन्न हुई ।
ज्ञातव्य है कि मुनि संघ का इंदौर की तरफ़ मंगल विहार हो रहा है ।

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