आष्टा। आष्टा नगर व आसपास के छोटे बड़े गांव के लोगो से वर्ष 1991 से मेरा नाता है। भारत के हृदय प्रदेश मध्यप्रदेश में सबसे पहले रामकथा व श्रीमद भागवतकथा आस्था की नगरी आष्टा से ही प्रारंभ हुई थी, इसके पीछे सम्पूर्ण आष्टा क्षैत्र के लोगो की धर्म के प्रति आस्था ही कारण थी। प्रदेश के हृदय स्थल में बसा यह आष्टा नगर मेरे भी हृदय में बसा हुआ है, इस अचंल के भक्तो की निष्काम भक्ति, अगाध आस्था, प्रभु के प्रति समर्पण, निश्चलता, सरलता, सहजता अदभुत है।
आस्था का नगर आष्टा मालवा स्थित मोक्षदायिनी उज्जैयिनी का प्रवेश द्वारा है, आष्टा और वहा के लोगो की आस्था को विस्मृत नही किया जा सकता। आष्टा में जब भी प्रभुप्रेमी संघ के तत्वाधान में धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किया जाता है उसमें सभी धर्मो के लोग बढ़चढ कर हिस्सा लेते है। जैन समाज का भी इसमें तन मन धन से विशेष योगदान रहता है जो कि सबके लिए अनुकरणीय है।
पुण्यशलीला पार्वती तट पर बसी इस आस्थावान नगरी के सभी लोगो को मेरा सदैव आर्शीवाद है, आष्टा मेरा घर है और मेरा गांव है। इस आशय के उद्गार जुनापीठाधीश्वर आचार्य महामण्डलेश्वर पूज्य स्वामी अवधेशानंद गिरि जी महाराज द्वारा हरिहर आश्रम हरिद्वार में आष्टा से पहुचे जैन समाज के प्रबुद्धजनो के मध्य व्यक्त किये।
प्रभुप्रेमी संघ के संस्थापक महिला सदस्यगण डॉ. बेला सुराणा, उषारानी सुराणा, कमल कुमार जैन, लता जैन, कर सलाहकार अभिषेक सुराणा, राहुल सुराणा, डॉ. दीपा सुराणा, महिमा सुराणा ने पर्युषण पर्व पर चल रहे अनैक वृत उपवास, त्याग तपस्या से भी पूज्य स्वामीजी को अवगत कराया जिस पर उन्होने बहुत प्रसन्न होकर अपना आर्शीवाद प्रदान किया
और कहा कि जैनत्व मे त्याग और तप की परंपरा है, जैन यतियों और श्रावको द्वारा आत्म कल्याण हेतु की जाने वाली कठोर तपस्चर्या और साधना अनुमोदनीय है और अनुकरणीय भी है। अंचल में चल रही प्रभुप्रेमी संघ की धार्मिक गतिविधियो से भी संघ के लोगो ने अवगत कराया और आष्टा शीघ्र ही पधारने का आग्रह किया गया। स्वामीजी ने प्रतिनिधी मण्डल के सभी सदस्यो को अपना विशेष स्नेह प्रदान किया और अपने साथ स्वल्पहार का सौभाग्य भी प्रदान किया।