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आष्टा। परम गौ भक्त , प्रगतिशील कृषक और ग्राम के वसूली पटेल यह पहचान थी किलेरामा के सहज, मिलनसार और निर्मल ह्र्दयी रमेश चन्द्र परमार की । गुरुवार की रात्रि में उनका देहावसान हो गया कोरोना के संक्रमण काल मे उनकी इच्छा और सख्त हिदायत के अनुरूप सादगी, धर्मानुष्ठान और सतर्कता के साथ उनका अंतिम संस्कार किलेरामा के मोक्षधाम में किया गया जहां उनके ज्येष्ठ पुत्र एडवोकेट सुरेन्द्र परमार और भतीजे वीरेंद्र सिंह परमार ने मुखाग्नि दी।
पूर्व नपाध्यक्ष कैलाश परमार के अनुज और पूर्व सरपंच मधुसूदन परमार के अग्रज रमेश चन्द्र परमार को पशुपालन में बड़ी माहिती थी । गौ वंश के प्रति उनके अनुराग और श्रद्धा का ही परिणाम था कि वे गायों से परस्पर संवाद स्थापित कर लेते थे और जानकारी भी इतनी कि पशुओं का क्रय – विक्रय हो या इस अंचल के परिवेश में नई और बाहरी नस्ल के पशुओं के पालन पोषण और विकास की संभावना रमेश चन्द्र परमार की राय ग्रामीणों के साथ ही पशुपालन विभाग के आला अफसरों के लिए खास मायने रखती थी । दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी के लिए उन्होंने पहली चुनोती तब ली थी जब पंजाब और हरयाणवी नस्ल की गायों को मालवा के वातावरण में पालने का जिम्मा सम्हाला और इस नस्ल की गायों के अनुकूलन के लिए पक्के भवन में कूलर और पंखे लगाकर धीरे – धीरे उन्हें स्थानीय परिवेश के हिसाब से विकसित करके ही छोड़ा ।

अक्षय ऊर्जा के इस्तेमाल और निरन्तरता के लिए वे गोबर गैस संयंत्र पर भी खास ध्यान देते थे। यही कारण रहा कि चालीस साल पहले स्थापित अपने घर के गोबर संयंत्र को एक बार लगने के बाद उन्होंने कभी बंद नही होने दिया । दिवंगत रमेश परमार कृषि और पशुपालन को एक दूसरे का पूरक मानते थे । उन्नत खेती के लिए वे नवीनतम जानकारी जुटाते रहते थे लेकिन जैविक खेती के शौक से कभी समझौता भी नही करते थे । परिवार के मंझले भाई तथा बाबूजी के संबोधन से लोकप्रिय स्व. रमेश परमार ने परम्पराओं और आधुनिकता को आत्मसात कर नेपथ्य में रहते हुए सभी की शिक्षा और संस्कार में अहम योगदान दिया वे संयुक्त परिवार व्यवस्था के प्रबल हिमायती थे । उनके निधन पर ग्राम वासियों और नागरिकों ने भावभीनी श्रद्धांजलि दी है।

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