आष्टा। पर्यूषण महापर्व के तीसरे दिन श्री चंद्र प्रभ दिगंबर जैन मंदिर अरिहंतपुरम अलीपुर में आर्जव धर्म के अवसर पर मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने कहा यह मनुष्य पर्याय हमें खोटी पर्याय से बचने के लिए एवं आत्म कल्याण करने के लिए प्राप्त हुई है। अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं होने पर क्रोध आता है हो जाने पर मान उत्पन्न होता है
और यदि हम अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाते हैं पूरा करने के लिए जो गलत राह अपनाते है वहां मायाचारी होती है। अंतरंग और बहीरंग की भिन्नता ही मायाचारी है। साधु जनों के चित्तमें ही जो सरलता पाई जाती हैं ,वही धर्म है ।ठग और चोर के चित्त में कुटिलता पाई जाती हैं, जो स्वयं को गिराना नहीं चाहते तो कपट भरे विचार त्याग देना चाहिए।
विश्वास अगर बनाना है तो वही करो जो मन में है कहां है ।उत्तम आर्जव रीति बखानी रनचक दगा बहुत दुखदानी । मुनिश्री विनंद सागर महाराज ने आगे कहा लाभ की दृष्टि से मृदुभाषी होके विश्वास को जीत लेना फिर उसके साथ धोखा करना दगा करना ऐसा केवल वैश्या एवं चोर ही करते हैं।
गुणीजनों में प्रमोद भाव विपरीत के प्रति माध्यस्थ भाव दुखी जनों में करुणा भाव रखकर ही मलिनता से बचा जा सकता है ,स्वभाव की प्राप्ति केवल सरलता से ही संभव है।वक्रता, कुटिलता हमें स्वभाव से विमुख करती है कुटिल लोग की कथनी और करने में भारी अंतर होता है।
तीनों योग मन वचन काय की जहा सरलता है ,वही आर्जव धर्म है। अनीति का धन जैसा आया है, वैसा ही चला जाता है ।ऐसा धन,
पुलिस ,वकील ,डॉक्टर अथवा चोर के हाथ चला जाता है ।कुटिल लोग नाना प्रकार से ठगने का प्रयास करते हैं ।घर वाले भी स्वार्थ के वशीभूत ही आपको पूछ रहे हैं जिस दिन उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होगा वह आपकी पूछ नहीं होगी। अभिनय करने के लिए नहीं अभिनेता एवं नेता का त्रिलोकी नाथ के दरबार में क्या आवश्यकता वहां तो जैसे हो वैसे ही जाना चाहिए। आपके द्वारा किए गए कार्य का फल भी आपको ही भोगना होगा।
“अपेक्षाएं परतंत्रता का प्रतीक- मुनिश्री विनंद सागर”
मुनि श्री विनंद सागर जी महाराज ने कहा यह आत्म शुद्धि का पर्व है, हमारी आत्मा को कषाय(क्रोध मान माया लोभ) एवं मद(ज्ञान,पूजा,कुल, जाति ,बल, धन, तप,रूप) रूपी मलिनता दूषित किए हुए है।जब हमारी अपेक्षाओं की उपेक्षा होती है तो हमें क्रोध आता है। हम जैसा चाहते हैं वैसा नहीं होता तो क्रोध की ज्वाला भड़क जाती है,
इस ज्वाला को क्षमा के जल से ही शांत किया जा सकता है और अपेक्षाओं की पूर्ति होने पर मान आता है अपेक्षाएं परतंत्रता का प्रतीक है। हमारे जीवन में अहंकार ही दु:ख का कारण है यही अहंकार रोग का कारण भी है, जब हम दूसरे के गुण को स्वीकार नहीं करते हैं एवं दूसरों को नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं समझिए वही अहंकार है।सामाजिक परिवेश में इसे केकड़ा प्रवृत्ति कहते हैं।
अहंकार के विपरीत मार्दव धर्म जो विनम्रता का द्योतक है ।विनयवान,मृदु परिणाम से सहित व्यक्ति मार्दव धर्म को जीता है ।कोमल लोगों का अस्तित्व सदैव बना रहता है ।जैसे की घास कोमल होती है आंधियों में झुक जाती है ,सदैव अस्तित्व में रहती है। किंतु बांस कठोर होता है,झुकता नहीं है अतःआंधियों में उखड़ जाता है ।इसी प्रकार दांत कठोर होने पर देर से आते हैं और जल्दी चले जाते हैं ।
किंतु जिव्हा जन्म से मृत्यु तक साथ निभाती है ।मद से सहित जीव कठोर होने के कारण 84 लाख योनियों में भ्रमण करता रहता है। इन आठ मद के हटने पर ही आत्म कल्याण संभव है ।जो जीव मान के वशीभूत होता है वह नीच गति को प्राप्त करता है।वह प्रत्येक जीव जिससे हमने ज्ञान प्राप्त किया है ,उसके प्रति सदैव विनय एवं सम्मान का भाव होना चाहिए ।नदी जितनी गंभीर गहरी होगी उतना ही जल संग्रहित होगा।जबकि पहाड़ ऊंचा होने पर जल का संग्रह नहीं कर पाता।
विनयवान व्यक्ति ही विद्या प्राप्त कर सकता है। राजा श्रेणिक के आम के बाग से एक भील अदृश्य अवस्था में आम के फलों की चोरी करता था ,सभी चौकीदार काफी परेशान थे एक दिन वह भी पकड़ में आ जाता है। राजा के समक्ष ले जाया जाता है राजा विद्या सीखने के शर्त पर उसे माफ करने का वचन देता है, काफी समय तक राजा को विद्या सिद्ध नहीं हुई क्योंकि राजा ऊपर आसन पर बैठ करके विद्या ग्रहण कर रहा था जब भील को उच्च आसन देकर के राजा विद्या सिद्ध करने के लिए बैठा तो उसे तुरंत विद्या सिद्ध हुई अतः विनयवान व्यक्ति मृदु व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त होता है।मुनिश्री ने कहा जिन जीवों से द्वेष है उन्हें क्षमा करके क्षमा धर्म अंगीकार करना चाहिए।