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आष्टा। मुझे इस नगर में आकर सबसे सुंदर और आकर्षक सभी जिनालय दिखें ।लेकिन उससे अधिक सुंदर भगवान की प्राचीन प्रतिमाएं थी। वही छोटे-छोटे बच्चे गुरुओं की भक्ति में दिव्य घोष लेकर कतार बद्ध चल रहे थे। वह इस बात का सूचक है कि बच्चों में धर्म और गुरु के प्रति अधिक लगाव व भक्ति भाव है। बड़ों में धर्म और गुरु के प्रति भक्ति भाव इन बच्चों से कम नजर आया है ।जीवन उसी का सार्थक है जो धर्म के साथ जीता है ।बिना धर्म के सब बेकार है। आज जो व्यापार-व्यवसाय आपका चल रहा है या आप जैन कुल में जन्म लिया है तो यह आपके पिछले जन्म की पुण्याई है ।अगर आप इस जन्म में भी भगवान के अभिषेक, आराधना करेंगे तो निश्चित आपका जीवन सुधरेगा और अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे ।


उक्त बातें अरिहंत पुरम श्री चंद्रप्रभु दिगंबर जैन मंदिर के धर्म सभा परिसर में धरती के साक्षात देवता आचार्य भगवंत विशुद्ध सागर महाराज के परम प्रभावक शिष्य मुनि प्रणुत सागर महाराज ने आशीष वचन देते समय कहीं।
मुनि प्रणुत सागर महाराज ने आगे कहा कि विद्या बिना विशुद्धी के नहीं आती।

इस देश में सबसे पहले भगवान महावीर स्वामी वैशाली में मंत्री बने थे, तभी से मंत्री का कार्यकाल चला आ रहा है। मंत्री का विशेष महत्व रहता है। हर क्रिया की फिलिंग होती है, उथल-पुथल का नाम विशुद्धि है ।जीवन में बुद्धि और विद्या का तालमेल बैठाने पर ही वैराग्य आपको प्राप्त होगा। धर्म का फल हर कोई चाहता है, लेकिन धर्म करना नहीं चाहता।

पाप का फल कोई नहीं चाहता है, लेकिन पाप करते रहते हैं। यहां तक कि पाप करने की आवश्यकता नहीं वहां भी साधन को जुटा -जुटा के पाप करते हो ।धर्म के प्रति इतना लगाव नहीं है ।धर्म का फल क्या है ,इसे समझना होगा ।अगर कोई व्यक्ति समाज को भोजन कराता है तो उसका सम्मान किया जाता है, लेकिन जो मां आपको रोज भोजन कराती है उसके प्रति आपका सम्मान भाव तो दूर है धन्यवाद तक नहीं देते हैं ।

मुनि प्रणुत सागर महाराज ने कहा आप लोगों को यह फिलिंग नहीं कि भगवान महावीर के शासन में जन्म लिया है ,24 तीर्थंकरों के चरणों में हम नित्य दर्शन करने ,अभिषेक ,शांतिधारा व पूजन करने जा रहे हैं ।धर्म के फल तक नहीं पहुंच पा रहे हैं। धर्म कर रहे हो व्यापार-व्यवसाय पुण्य से हो रहा है। व्यापार करने की कला से अच्छा व्यापार नहीं चलता बल्कि आपकी पुण्याई से चलता है ।प्रकृति की प्रक्रिया को नहीं समझा। देव ,शास्त्र, गुरु के चरणों में समय देकर धर्म आराधना करते हो उसी के फल से व्यापार व्यवसाय चल रहा है ।

मुनिश्री ने कहा जीवन में जब भी धर्म करें पाप कर्म को काटने का सोचे ।देव, शास्त्र, गुरु के चरणों में जितना समय बिता सकते हैं वह बिताएं ,उसी का फल आपको मिलता है ।गुरु सानिध्य मिले तो प्राप्त करें। व्यक्ति की खोपड़ी बहुत खतरनाक होती है, कर्म के क्षेत्र में लाजिक नहीं धर्म के क्षेत्र में लाजिक बताते हैं ।संत के आने पर कौन से गुरु के शिष्य है यह देखते हैं जो गलत है ।कोई भी संत आपके नगर में आए, उनकी सेवा करना चाहिए। मुनिश्री ने कहा परमात्मा का एहसान मानो कि भगवान के रोज दर्शन आपको हो रहे है तथा ऐसे स्थान पर आप रह रहे हैं जहां पर आपको भगवान के मंदिर का सानिध्य मिल रहा है।

अनेक लोग ऐसे हैं कि वह जैन होने के पश्चात भी सप्ताह में एक बार या महीने में एक -दो बार मंदिर जा पाते हैं ।दिमाग में यह कीड़ा बैठा है उसे हटाओ कि हम फलाने गुरु को ही मानते हैं या उनके आने पर हम सेवा करेंगे। पंथबाद में ना चले। देव, शास्त्र, गुरु की कृपा से ही तुम्हें मिल रहा है ।पुण्य के कारण सब कुछ मिल रहा है ।देव ,शास्त्र, गुरु की सेवा करने का अवसर मिले पीछे मत हटना। नियम से देव, शास्त्र, गुरु की सेवा करो और पाप से बचो यह आप लोगों से आह्वान करता हूं। मुनि यत्न सागर महाराज भी मंच पर आसीन थे।

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